नई दिल्ली। देश कई हिस्सों में बच्चियों के साथ हुई दरिंदगी के बाद ऐसे आरोपियों को फांसी की सजा की मांग के लिए देश भर में आवाज उठाई गई। जिसके बाद साल 2018 में केंद्र की मोदी सरकार ने 12 साल तक की बच्ची के साथ रेप के मामले में फांसी की सजा का प्रावधान किया।
इसके बावजूद इस तरह के मामलों में कुछ खास कमी नहीं देखने को मिल रहा हैं इसको लेकर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी ने साल 2020 के आकड़ों को जारी किया हैं।
गैर सरकारी संगठन ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ आकड़ों के विश्लेषण के मुताबिक पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज 99 फीसद से अधिक अपराध के मामलों में पीड़ित लड़कियां थीं, जो दर्शाता है कि हमारे समाज़ में लड़कियों के प्रति सोच में बदलाव की सख्त जरुरत हैं। यह बात एक गैर सरकारी संगठन के विश्लेषण में सामने आई है।
समाचार एजेंसी पीटीआई की ख़बर के मुताबिक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ (क्राय) द्वारा किए गए एनसीआरबी के आंकड़ों के विश्लेषण में पाया गया कि पॉक्सो के तहत दर्ज 28,327 मामलों में से 28,058 में पीड़ित लड़कियां थी। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों के गहन विश्लेषण में पता चला कि 16 से 18 आयु वर्ग की किशोरियों के खिलाफ सबसे अधिक 14,092 अपराधों को और उसके बाद 12 से 16 आयु वर्ग की लड़कियों के खिलाफ 10,949 अपराधों को अंजाम दिया गया।
लड़के और लड़कियां दोनों ही लगभग समान रूप से दुर्व्यवहार का शिकार हुए, हालांकि एनआरसीबी के आंकड़ों के अनुसार सभी आयु-वर्ग में लड़कों की तुलना में लड़कियां अधिक यौन अपराधों का शिकार हुईं।
‘अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस’ के मौके पर ‘क्राय’ ने कहा कि दुनियाभर में लड़कियों के अधिकारों की बात की जाती है, लेकिन फिर भी एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार वे अब भी समाज के सबसे संवेदनशील तबकों में से एक का हिस्सा हैं। एनसीआरबी की ओर से पिछले महीने जारी किए गए अद्यतन आंकड़ों के अनुसार, पॉक्सो अधिनियम के तहत 2020 में दर्ज किए गए 99 प्रतिशत से अधिक मामलों में पीड़ित लड़कियां थीं।
‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ में ‘पॉलिसी रिसर्च एंड एडवोकेसी’ की निदेशक प्रीति महारा ने कहा, ‘‘ यह समझना महत्वपूर्ण है कि सुरक्षा संबंधी चुनौतियों के साथ-साथ शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, गरीबी आदि से जुड़े पहलू भी महत्वपूर्ण हैं और लड़कियों के सशक्तिकरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इन पहलुओं पर कोविड-19 वैश्विक महामारी के प्रभाव का आकलन भी जरूरी है।’’
पॉक्सो (POCSO) अधिनियम क्या हैं?
पॉक्सो अधिनियम की बात की जाय तो, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने के लिए पोक्सो का कानून बनाया गया था। जिसका पूरा नाम है। The Protection Of Children From Sexual Offences Act अधिनियम बनाया गया है। इस अधिनियम (कानून) को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने साल 2012 पोक्सो एक्ट-2012 के नाम से बनाया था। इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है।
यहां पर यह बताना जरूरी है कि वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग प्रकृति के अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है, जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है। बावजूद इसके, जब नाबालिगों के प्रति जारी यौन हिंसा में कमी नहीं आई तो ठीक छह साल बाद साल 2018 में मोदी सरकार ने इस कानून संशोधन करके यह स्पष्ट कर दिया गया कि 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म करने के दोषियों को फॅासी सज़ा का प्रवाधान है।