नए कृषि कानून के विरोध में केंद्र सरकार के खिलाफ आर-पार के मूड में किसान और विपक्ष, प्रदर्शन जारी


इस नये कानून में किसानों के उत्पादों को सरकार जो पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य देकर खरीदती थी उसके बारे में कुछ आश्वासन नहीं दिया गया है जिसको लेकर किसानों में रोष हैं। किसानों का कहना है कि मोदी सरकार ने किसानों को पूंजीपतियों को हवाले कर दिया है। वे चाहेंगे तो किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलेगा और नहीं चाहेंगे तो नहीं मिलेगा। 


मंज़ूर अहमद मंज़ूर अहमद
देश Updated On :

नई दिल्ली। मोदी सरकार द्वारा बनाए गये नये कृषि कानून के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन बढ़ता ही जा रहा है। किसान मोदी सरकार के किसी भी मौखिक आश्वासनों पर विश्वास के मूढ में नहीं हैं। दूसरी तरफ नए कृषि कानून को राज्यसभा में बिना वोटिंग हुये ही विधेयक को केवल ध्वनि मत से पास करा कानूनी जामा पहनाने पर भी विपक्षी दल और देश के किसान खासे नाराज हैं।

ऐसी में मोदी सरकार के कई मनमाने कानून को अपने संख्या बल के दम पर बिना किसी बहस के पास करवा लेने से सालों से खार खाये बैठे विपक्ष को सालों बाद इसस बिल के विरोध के रूप में एक बड़ा जनसमर्थन मिलता दिखाई दे रहा है जिसको वह किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहते है। और यही कारण है कि विपक्षी दल कृषि बिल पर सरकार से आर-पार की मुद्रा में आ गए हैं।

नए कृषि कानून खिलाफ मंगलवार को पंजाब और हरियाणा के कई हिस्सों में भारी विरोध प्रदर्शन किया गया और रैलियां निकाली गईं। इसके अलावा पश्चिम उत्तर प्रदेश के  किसान भी नये कृषि कानून के विरोध में रैलिया निकाल रहे हैं। और अगले दो दिनों में कई किसान संगठन रैलियां निकलने की तैयारी कर रहे हैं।

पानीपथ में किसानों ने निकाली विशाल रैली
नये कृषि कानून के विरोध में हरियाणा के पानीपथ में हजारों किसानों ने रैली निकालकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और बिल को वापस लेने की मांग की। किसानों की कहना है कि सरकार ने नये कृषि बिल में न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी) का कोई जिक्र नहीं किया है इसका मतलब यही है किसानों को उनकी फसलों का कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया जाएगा और सरकार जब तक बिल में यह संसोधन नहीं करती है तब तक वह विस्वास नहीं करेंगे।

राष्ट्रपति ने विपक्षी नेताओं को मिलने को बुलाया
विपक्ष के भारी विरोध को देखते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों के नेताओं को इस मुद्दे पर बात करने के लिए शाम को बुलाया है। अब देखना है कि राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद नये कृषि कानून को लेकर विपक्ष के रूख में क्या बदलाव आता है।

पूंजीपतियों के हवाले किसान ?

उल्लेखनीय है कि आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम को 1955 में बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र की सरकार ने  बड़े पैमाने पर बदलाव कर दिया है। इस नए कृषि बिल के बाद अब खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्‍पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है। बहुत जरूरी होने पर जैसे कि राष्‍ट्रीय आपदा, सूखा जैसी अपरिहार्य स्थितियों पर स्‍टॉक लिमिट लगाई जाएगी। प्रोसेसर या वैल्‍यू चेन पार्टिसिपेंट्स के लिए ऐसी कोई स्‍टॉक लिमिट लागू नहीं होगी। उत्पादन, स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन पर सरकारी नियंत्रण खत्म होगा।

इस कानून को 1955 में इसलिए बनाया गया था कि पहले व्यापारी फसलों को किसानों से औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और बाद में उन्हीं फसलों और खाद्य पदार्थों का कालाबाजारी करते हुए उच्च दाम पर बेचते थे। उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गई थी।

वहीं इस नये कानून में किसानों के उत्पादों को सरकार जो पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य देकर खरीदती थी उसके बारे में कुछ आश्वासन नहीं दिया गया है जिसको लेकर किसानों में रोष हैं। किसानों का कहना है कि मोदी सरकार ने किसानों को पूंजीपतियों को हवाले कर दिया है। वे चाहेंगे तो किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलेगा और नहीं चाहेंगे तो नहीं मिलेगा।



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