राहुल गांधी का हिन्दू धर्म बनाम आरएसएस का हिंदुत्व


संघ ने हिंसा को अपनी विचारधारा का हिस्सा बना लिया है और नागपुर स्थित उसके मुख्यालय में तरह-तरह के हथियारों का संकलन हैं, जिनकी दशहरा के दिन पूजा की जाती है।


राम पुनियानी
देश Updated On :

लोकसभा के हालिया (2024) चुनावों के परिणामों ने संसद को बहस और चर्चा का सार्थक मंच बना दिया है। वहां अब प्रतिपक्ष की आवाज़ भी सुनाई देती है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद ज्ञापन पर हुई चर्चा के दौरान विपक्ष के नेता राहुल गाँधी ने अपने भाषण में देश के समक्ष प्रस्तुत विभिन्न चुनौतियों और समस्यायों पर चर्चा की। उनके भाषण के एक हिस्से में उन्होंने हिन्दू धर्म की प्रकृति और चरित्र पर भी बात की। उनके भाषण का यह हिस्सा शायद सदन की कार्यवाही से विलोपित कर दिया गया है। राहुल गाँधी ने कहा कि हिन्दू धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। “भारत, अहिंसा का देश है, भय का नहीं। हमारे सभी महापुरुषों ने अहिंसा का आचरण करने और भय पर विजय प्राप्त करने की बात कही है।” फिर, भाजपा सदस्यों की ओर इशारा करने हुए उन्होंने कहा, “जो लोग स्वयं को हिन्दू कहते हैं, वे दिन-रात हिंसा और नफरत की बात करते हैं और असत्य बोलते हैं।”

उसके बाद से राहुल के कथन के खिलाफ साधुओं ने कई विरोध प्रदर्शन किए और अहमदाबाद में कांग्रेस के कार्यालय पर हमला हुआ। संघ परिवार यह झूठ फैला रहा है कि राहुल ने सभी हिन्दुओं को हिंसक कहा है। राहुल ने इसके उलट यह साफ़ किया है कि उनकी दृष्टि में हिन्दू धर्म सत्य, अहिंसा और प्रेम पर आधारित है। संघ के नेता कह रहे हैं कि नेहरु से लेकर राहुल गाँधी तक सभी की विचारधारा का ज़मीनी यथार्थ से कोई लेनादेना नहीं रहा है। उनके अनुसार, नेहरु-गाँधी परिवार के सभी नेता केवल अपना वोट बैंक बचाने की जुगत में अल्पसंख्यकों से जुड़े मसले उठाते रहे हैं।

इंडिया गठबंधन के कई नेताओं ने हिन्दू धर्म को मानवतावाद से जोड़ने के राहुल गाँधी के प्रयास का समर्थन किया है। कई सालों से देश में हिन्दू धर्म और हिंदुत्व ये दोनों शब्द इस्तेमाल किये जा रहे हैं। उद्धव ठाकरे ने कहा कि राहुल गाँधी का हिन्दू धर्म ही उनका हिंदुत्व है। आरएसएस ने कर्ताधर्ता नेहरु की इसलिए भी आलोचना करते हैं क्योंकि उनके द्वारा शुरू किये गए साम्प्रदायिकता विरोधी अभियान के निशाने पर आरएसएस था। वे नेहरु के इसलिए भी खिलाफ हैं क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के हाथों सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन का विरोध किया है। संघ कहता है कि उसका हिंदुत्व, दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय एवं श्यामाप्रसाद मुख़र्जी के विचारों पर आधारित है। सच यह है कि संघ की विचारधारा का दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद के विचारों से कोई लेनादेना नहीं हैं। संघ केवल उन दोनों के नामों का इस्तेमाल लर अपनी विचारधारा को स्वीकार्य बनाने की कोशिश कर रहा है।

हिन्दू धर्म किसी पैगम्बर पर आधारित नहीं है और इसलिए उसकी अलग-अलग ढंग से व्याख्याएं की जाती रही हैं। हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथों में ‘हिन्दू’ नहीं है। वेदों, उपनिषदों, गीता और मनुस्मृति में कहीं भी यह शब्द नहीं है। इस शब्द का इस्तेमाल सिन्धु नदी के पश्चिम में रहने वाले इस विशाल नदी के पूर्व में रहने वालों के लिए प्रयुक्त करते थे। चूँकि वे ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ करते थे इसलिए सिन्धु शब्द हिन्दू बन गया। अतः हिन्दू शब्द का मूल अर्थ था सिन्धु नदी से लेकर समुद्र तक की भूमि पर रहने वाले सभी लोग। इस विशाल भूभाग में मुख्यतः वैदिक धर्म (जिसे हम ब्राह्मणवाद भी कह सकते हैं), आजीवक, तंत्र, नाथ, शैव, बौद्ध व जैन परम्पराएं प्रचलित थीं।

बाद में जैन व बौद्ध धर्मों को छोड़कर, इन सभी परम्पराओं का मिश्रण हिन्दू धर्म कहलाने लगा। ब्राह्मणवाद के अलावा अन्य सभी परम्पराएं ‘श्रमण’ कहलाती थीं। ब्राह्मणवाद और श्रमणवाद में मुख्य अंतर यही था कि ब्राह्मणवाद में जाति प्रथा थी जबकि श्रमणवाद में नहीं थी। हिन्दू धर्म शब्द के उदय के बारे में इतिहासविद डी।एन। झा ने भारतीय इतिहास कांग्रेस, 2006, में अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा था कि, “यह बिलकुल सही है कि यह शब्द (हिन्दू), पूर्व-औपनिवेशिक भारत में प्रचलित था। मगर ब्रिटिश अध्येताओं ने 18वीं सदी के अंत या 19वीं सदी की शुरुआत में इस शब्द का उपयोग करना शुरू किया और धीरे-धीरे यह व्यापक रूप से प्रयुक्त होने लगा। हिन्दू शब्द भारतीय उपमहाद्वीप के उन सभी रहवासियों के लिए प्रयुक्त किया जाता था जो मुसलमान, ईसाई, सिक्ख या जैन नहीं थे।

चूँकि हिन्दू धर्म के कोई निश्चित ग्रन्थ और सिद्धांत नहीं थे इसलिए ब्राह्मणवादियों ने वेदों और मनुस्मृति को पवित्र ग्रन्थ घोषित कर दिया। हिन्दू धर्म की समझ में भी अंतर हैं। अम्बेडकर के दृष्टि में ब्राह्मणवाद और जाति प्रथा ने हिन्दू धर्म को जकड रखा है। यही कारण है कि उन्होंने मनुस्मृति का दहन किया। दूसरी ओर महात्मा गाँधी स्वयं को सनातनी हिन्दू कहते थे। उन्होंने ‘यंग इंडिया’ के 6 अक्टूबर 1921 के अंक में लिखा, “हिन्दू धर्म सभी से कहता है कि वे अपनी-अपनी आस्था और धर्म के आधार पर ईश्वर की आराधना करें और इस प्रकार वह अन्य धर्मों के साथ शांतिपूर्ण सहअस्तित्व बनाये रख पाया है।” यही तो बहुवाद है। यही तो अंतर्धार्मिक रिश्तों की बुनियाद होनी चाहिए। और अब राहुल गाँधी ने कहा है कि सत्य, प्रेम और अहिंसा हिन्दू धर्म का मूल आधार हैं।

हिंदुत्व शब्द को 1892 में चंद्रकांत बसु ने गढ़ा था और इसे आध्यात्मिक ऊंचाईयां अर्जित करने के आदर्शवादी लक्ष्य से जोड़ा था। राजनीति के सन्दर्भ में हिंदुत्व शब्द के इस्तेमाल की शुरुआत सावरकर ने अपनी पुस्तक ‘एस्सेनशियल्स ऑफ़ हिंदूइस्म” (1923) में इसे परिभाषित कर की थी। सावरकर का हिंदुत्व आर्य नस्ल, सिन्धु से समुद्र तक की पवित्र भूमि एवं ब्राह्मणवादी संस्कृति तक सीमित है। सावरकर, बौद्ध धर्म के अहिंसा के सिद्धांत के कड़े आलोचक थे और मानते थे कि बुद्ध द्वारा अहिंसा का प्रचार करने से ही भारत कमज़ोर बना। यह कहना इतिहास की गलत समझ पर आधारित है। उस समय आधुनिक अर्थ में भारत जैसा कोई राष्ट्र नहीं था। और अगर हम राजाओं के साम्राज्यों को राष्ट्र मानें तो हमें यह याद रखना चाहिए कि सम्राट अशोक, जिन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था, का साम्राज्य प्राचीन भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य था। सावरकर के अनुसार हिन्दू केवल वही है जिसकी पितृभूमि और पवित्रभूमि दोनों भारत में हैं।

सावरकर से सीख लेकर आरएसएस इस्लाम और ईसाईयत को विदेशी धर्म मानता है और प्राचीन धर्मग्रंथों (मनुस्मृति आदि) का अनुमोदन करते हैं। संघ ने हिंसा को अपनी विचारधारा का हिस्सा बना लिया है और नागपुर स्थित उसके मुख्यालय में तरह-तरह के हथियारों का संकलन हैं, जिनकी दशहरा के दिन पूजा की जाती है। आरएसएस की शाखाओं में मुस्लिम शासकों जैसे बाबर और औरंगजेब का दानवीकरण कर और हिन्दू राजाओं जैसे राणाप्रताप, शिवाजी और पृथ्वीराज चौहान का महिमामंडन कर नफरत फैलाई जाती है। आरएसएस राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन को भी पसंद नहीं करता क्योंकि उसमें सभी धर्मों के लोगों ने भाग लिया था।

संघ का दावा है कि वह हिन्दुओं का प्रतिनिधि है और वह मंदिरों के विध्वंस, बीफ और जबरिया धर्मपरिवर्तन जैसे भावनात्मक मसले उठाता रहता है। संघ नफरत फैलता है, यह बात सरदार वल्लभभाई पटेल ने 1948 में संघ पर प्रतिबन्ध लगाने के बाद कही थी। उन्होंने कहा था, “उनके सभी भाषण, सांप्रदायिक जहर से भरे रहते थे जिसके अंतिम नतीजे में देश को गांधीजी के बेशकीमती जीवन के बलिदान की पीड़ा से गुजरना पड़ा।”

जहाँ महात्मा गाँधी और राहुल गाँधी जैसे नेता हिन्दू धर्म के मानवीय पक्ष पर जोर देते हैं वही सावरकर से प्रेरित आरएसएस नफरत और हिंसा की राह पर चलते रहे हैं। अम्बेडकर ने भी हिन्दू धर्म पर ब्राह्मणवादियों के वर्चस्व की खिलाफत की थी। राहुल गाँधी, हिन्दू धर्म को समावेशी और अहिंसक चरित्र देने का प्रयास कर रहे हैं।

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया। लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)