रीवा। उत्तराखंड में भाजपा सरकार के द्वारा समान नागरिक कानून के बहाने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को बढ़ा दिया गया है। यह बात किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। बाल विवाह पर नियंत्रण करना सरकार का काम है लेकिन शादी की उम्र को बढ़ाना नागरिक आजादी पर हमला है।
समता संपर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक लोकतंत्र सेनानी अजय खरे, नारी चेतना मंच की वरिष्ठ नेत्री मीरा पटेल, नजमुननिशा, डॉ श्रद्धा सिंह, डॉ मधु दुबे, गीता महंत ने कहा है कि सरकार को बाल विवाह रोकने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए लेकिन लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़कर 21 वर्ष किया जाना सरासर गलत है। लोग बुढ़ापे में शादी करते हैं लेकिन उसे रोकने के लिए कोई कानून नहीं है वहीं शादी के लिए निर्धारित न्यूनतम उम्र में वृद्धि करने के लिए कानून बनाया जाना नैसर्गिक अधिकारों पर कुठाराघात है। जानकारी दी गई कि जर्मनी में विवाह की औसत आयु 32 वर्ष से ऊपर है लेकिन जर्मन नागरिक संहिता की धारा 1303 के अनुसार वहां विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है। जर्मनी एक विकसित देश है लेकिन वहां विवाह की न्यूनतम उम्र में बदलाव नहीं किया गया है। लड़कियां शादी करें या न करें, यह उनकी मर्जी है लेकिन सरकार विवाह की एक निश्चित निर्धारित उचित न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर उनके शादी करने के अधिकार को नहीं छीन सकती है।
मोदी सरकार के द्वारा दिसंबर 2021 को लड़कियों की शादी की निर्धारित न्यूनतम कानूनी उम्र 18 वर्ष को बढ़ाकर लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष के बराबर करने का फैसला लिया गया था, इसी को आधार बनाकर उत्तराखंड भाजपा सरकार के द्वारा लड़कियों की शादी की उम्र को बढ़ाया जाना बेतुका और अत्यंत गैर जिम्मेदाराना बात है। सरकार के इस फैसले को यह कहकर प्रगतिशील नहीं कहा जा सकता कि दुनिया में लड़कियो की शादी की उम्र के मामले में भारत सबसे आगे हो गया है। लड़कियों के भरण पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सुरक्षा आदि बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने की जगह सरकार के द्वारा उनकी शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ा देने मात्र से कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं आएगा। इस तरह के फैसले के चलते भारत की विवाह जैसी पवित्र सामाजिक व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी , वहीं देश में सामाजिक अराजकता का दुर्भाग्यपूर्ण माहौल निर्मित हो सकता है। यह मनमाना फैसला विवाह जैसे पवित्र बंधन, लड़कियों की आजादी एवं सामाजिक व्यवस्था के लिए भी गंभीर चुनौती है। इससे विवाह जैसी सभ्य, पवित्र, नैतिक एवं प्राकृतिक व्यवस्था जो परिवार समाज और राष्ट्र की आधारशिला रखती है, बुरी तरह कमजोर होगी।
लड़कियों की विवाह की उम्र बढ़ाने वाले फैसले के चलते खास तौर से गरीब एवं निम्न मध्यम वर्ग के लोग सबसे अधिक परेशान होंगे, जिनकी आबादी सर्वाधिक है। देश में बालिग मताधिकार है।18 वर्ष की लड़की को भी सरकार चुनने का अधिकार है। शारीरिक मानसिक विकास की दृष्टि से भी पूरी दुनिया में 18 साल की लड़की को परिपक्व माना गया है, ऐसी स्थिति में लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष को बढ़ाने की बात सरकार का बुनियादी समस्याओं के निराकरण करने की जिम्मेदारियों से पलायन करना है । भारतीय समाज के वर्तमान दौर में उच्च एवं मध्यम वर्ग में आमतौर पर उच्च शिक्षा और रोजगार की तैयारी के चलते लड़कियों की विवाह की उम्र स्वाभाविक रूप से 21 वर्ष से अधिक हो गई है । सरकार यदि गरीब वर्ग के बीच में शिक्षा और रोजगार के संबंध में ठोस पहल करेगी तो निश्चित रूप से परिवार नियोजन के कार्यक्रम को काफी मजबूती मिलेगी।
यह बराबर देखने को मिल रहा है कि दहेज प्रथा के चलते लड़कियों की शादियों में भारी दिक्कतें आ रही हैं जिससे समय पर उनकी शादियां नहीं हो पा रही हैं। सरकार अभी तक दहेज प्रथा को खत्म नहीं कर पाई है बल्कि दहेज का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। बहुत सारी लड़कियां इसके चलते आजीवन कुंवारी रह जाती हैं। दहेज कुप्रथा के चलते दहेज प्रताड़ना, दहेज हत्या और पारिवारिक विघटन की घटनाओं और सामाजिक अपराधों को भी बढ़ावा मिल रहा है।
दुनिया के अधिकांश देशों एवं विकसित देशों में विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष ही है। केवल चीन जैसे साम्यवादी देश में लड़कियों की विवाह की न्यूनतम आयु 20 वर्ष है। भारत जैसे देश में बाल विवाह जैसी कुरीतियों को अभी तक नियंत्रित नहीं किया जा सका है। भारत में आज भी हर वर्ष लाखों की संख्या में लड़के लड़कियों की शादियां निर्धारित न्यूनतम कानूनी आयु से पहले हो जाती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2020 को लाल किले की प्राचीर से अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान लड़कियों की शादी की उम्र को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष किए जाने संबंधी प्रस्ताव का ऐलान किया था। उन्होंने इसके पीछे की वजह बताते हुए कहा था, ”सरकार बेटियों और बहनों के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से चिंतित रही है। बेटियों को कुपोषण से बचाने के लिए, ये जरूरी है कि उनकी शादी सही उम्र में हो।” यह भारी विडंबना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 7 साल से भी अधिक के शासनकाल में देश को कुपोषण की समस्या से निजात नहीं दिला पा रहे हैं। बाल विवाहों पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है ऐसी स्थिति में लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाकर कुपोषण समस्या का हल ढूंढना अत्यंत चिंताजनक, आपत्तिजनक एवं गैर जिम्मेदाराना हास्यास्पद कृत्य है।
देश में महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले थम नहीं रहे हैं। नाबालिक लड़कियों के साथ बलात्कार के मामले हो रहे हैं।विवाह की उम्र बढ़ाकर इसका समाधान नहीं किया जा सकता है। बलात्कार तो किसी भी उम्र की महिलाओं के साथ हो रहे हैं। बच्ची से लेकर बूढ़ी तक सुरक्षित नहीं है। आजीवन कारावास और फांसी जैसे कड़े कानूनी दंड के प्रावधान के बावजूद बिगड़ी सामाजिक व्यवस्था एवं नैतिक मूल्यों के पतन के चलते बलात्कार जैसी अत्यंत चिंताजनक, शर्मनाक, वीभत्स वारदातों पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। परिवार नियोजन के कार्यक्रम के अपने लक्ष्य से सरकार काफी दूर है। सामान्य तौर पर महिलाओं के गर्भधारण करने की एक निश्चित प्राकृतिक समय सीमा है जिस दौर में उन्हें प्रसव के लिए सिजेरियन ऑपरेशन की जरूरत नहीं होती है। लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाते समय सरकार को इन सब बातों पर भी गौर करना चाहिए।
जारी विज्ञप्ति ने कहा गया कि लड़कियों के कुपोषण और बढ़ती आबादी के नाम पर लड़कियों के लिए निर्धारित विवाह की न्यूनतम आयु को 18 वर्ष से 21 वर्ष कर देने की बात कतई उचित नहीं है। सरकार को विवाह की उम्र बढ़ाने की जगह लड़कियों का कुपोषण दूर करना चाहिए और वहीं परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के लिए देश के अंदर दो जीवित संतान के कानूनी प्रावधान को लागू किया जाना चाहिए।