श्रीनगर। जम्मू के राजौरी जिले के धनगरी गांव में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने दो नाबालिगों सहित छह लोगों की हत्या कर दी। इससे पूरे जम्मू-कश्मीर में आक्रोश व्याप्त है। आतंकवादियों ने 1 जनवरी को हिंदू समुदाय के सदस्यों के तीन घरों पर गोलीबारी की। इससे चार लोगों की मौके पर ही मौत हो गई और नौ अन्य घायल हो गए। 2 जनवरी को दो नाबालिगों की उस समय जान चली गई, जब आतंकवादियों द्वारा हमला किए गए घरों में से एक में रखे गए आईईडी में विस्फोट हो गया।
इस जघन्य हत्याकांड ने सभी को झकझोर कर रख दिया। मुसलमानों ने हिंदू समुदाय के सदस्यों की लक्षित हत्याओं की निंदा की और डोडा, किश्तवाड़ और राजौरी जिलों में पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शनों में शामिल हुए।
नागरिकों की हत्या के खिलाफ बंद का आह्वान मुस्लिम संगठनों के एक समूह मजलेस-ए-शौरा व हिंदू संगठनों द्वारा किश्तवाड़ और डोडा जिलों में किया गया था।
बंद के आह्वान के जवाब में डोडा, किश्तवाड़, रामबन और राजौरी जिलों में दोनों समुदायों के व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे।
जामिया मस्जिद किश्तवाड़ के इमाम फारूक अहमद किचलू सहित मुसलमानों ने आतंकवादियों द्वारा निर्दोष हिंदुओं की बर्बर हत्याओं की एक स्वर से निंदा की। उन्होंने पाकिस्तान और उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवादियों को स्पष्ट संदेश दिया कि जम्मू-कश्मीर के लोग चुनिंदा हत्याओं को अंजाम देकर दोनों समुदायों के बीच खाई पैदा करने के अपने मंसूबे को सफल नहीं होने देंगे।
किश्तवाड़, डोडा और रामबन जिलों में मुस्लिम विद्वानों ने आतंकवादियों को याद दिलाया कि इस्लाम शांति का धर्म है और यह निदोर्षों की हत्या करने का उपदेश नहीं देता है। उन्होंने हत्यारों के लिए सख्त सजा की मांग की।
चुनिंदा हत्याएं :
5 अगस्त, 2019 के बाद, जब केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के अपने फैसले की घोषणा की, आतंकवादियों ने चुनिंदा हत्याओं को अंजाम देकर हिंदुओं और मुसलमानों को विभाजित करने के कई प्रयास किए।
कश्मीर में आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों और गैर-स्थानीय हिंदुओं की लक्षित हत्याओं को अंजाम दिया। जम्मू क्षेत्र में भी वे ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं।
जब आतंकवादियों ने 2021 में कश्मीर में कश्मीरी पंडितों और गैर-स्थानीय लोगों पर हमला किया, तो स्थानीय मुस्लिमों ने हिंदुओं और पंडितों के साथ एकजुटता व्यक्त की। मुसलमानों ने आतंकवादियों के कार्यों की भर्त्सना की और बेगुनाहों का खून बहाने के लिए उन्हें फटकार लगाई।
जम्मू क्षेत्र में उन्हें एक बार फिर करारा जवाब दिया गया है, क्योंकि लोगों को यह समझ में आ गया है कि पाकिस्तान और नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार बैठे आतंकियों के आका शांति भंग करने के लिए दोनों समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना चाहते हैं।
पाक के दुष्प्रचार को लोगों ने समझ लिया है
जम्मू-कश्मीर के लोगों ने आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों की ओर से मुंह मोड़ लिया है, क्योंकि उन्हें एहसास हो गया है कि पाकिस्तान केवल उनका खून बहाने में दिलचस्पी रखता है और यह उनका सबसे बड़ा दुश्मन है। पड़ोसी मुल्क को यह हजम नहीं हो रहा है कि जम्मू-कश्मीर में उनके दुष्प्रचार का असर नहीं हो रहा है।
1990 में में आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाकर की गई हत्याओं के बाद घाटी से बड़े पैमाने पर हिंदुओं का पलायन हुआ।
2021 में उन्होंने एक बार फिर हिंदुओं को लक्षित करके 1990 की स्थिति को बनाने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षा बलों की त्वरित कार्रवाई से आतंकवादियों का सफाया हो गया।
1990 के दशक के विपरीत मुस्लिम समुदाय के सदस्यों ने आतंकवादियों और उनके आकाओं की निंदा की।
कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के साथ खड़े स्थानीय मुसलमानों ने आतंकी आकाओं को हताश कर दिया। अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को मुसलमानों द्वारा प्रदान की गई सहायता और आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों ने हिंदुओं में कश्मीर में वापस रहने के लिए विश्वास पैदा किया।
सॉफ्ट टारगेट चुन रहे हैं आतंकी :
पिछले तीन वर्षों के दौरान आतंकवादी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने और आतंक को जीवित रखने के लिए आसान लक्ष्य चुनते रहे हैं। हर कश्मीरी को आतंकवादी के रूप में लेबल करने की उनकी कोशिश काम नहीं कर रही है, क्योंकि देश भर के लोग पाकिस्तान और आतंकी आकाओं की नापाक हरकतों को समझ चुके हैं। देश भर के लोगों ने महसूस किया है कि कश्मीरी चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान, पड़ोसी देश द्वारा पीड़ित किए गए हैं और जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों पर हमले कश्मीरी मुसलमानों को हिंसा फैलाने वाले के रूप में लेबल करने की एक चाल है।
बेनकाब हो गया है पाक :
पड़ोसी देश बेनकाब हो गया है। पाकिस्तान ने अपने कार्यों से बिना किसी संदेह के यह साबित कर दिया है कि वह एक आतंकवादी देश है और आतंकवाद उसकी राज्य नीति का हिस्सा हैं। उन्हें बेगुनाहों को मारने और भारत का खून बहाने के लिए तैयार किया गया है।
जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं और मुसलमानों का एक साथ आना चरमपंथी और कट्टरपंथी तत्वों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि उनकी हरकतें जम्मू-कश्मीर के लोगों को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को उसके तार्किक अंत तक ले जाने से नहीं रोकेंगी।
जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने के बारे में पाकिस्तान की झूठी कहानी की हवा निकल गई है।
पिछले 30 वर्षों से पड़ोसी देश आतंकवादियों के माध्यम से छद्म युद्ध लड़ रहा है और उसने जम्मू-कश्मीर के लोगों को तोप के गोले के रूप में इस्तेमाल किया है।
अब पाकिस्तान मुद्दे को छोड़ने और हिंसा को ना कहने के लिए जम्मू-कश्मीर के लोगों को दंडित कर रहा है। दूसरी तरफ से भेजे जा रहे आतंकवादियों को कोई स्थानीय समर्थन नहीं मिल रहा है, क्योंकि लोग सुरक्षा बलों की आंख और कान के रूप में काम कर रहे हैं। आतंकवादी रैंकों में स्थानीय भर्ती शून्य हो गई है। नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ मजबूत काउंटर घुसपैठ ग्रिड घुसपैठियों को इस तरफ पार करने की इजाजत नहीं दे रहा है। पाकिस्तान के लिए हार स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद खत्म होने वाला है।
आतंक का कोई धर्म नहीं होता
राजौरी आतंकी हमले ने एक बार फिर आतंक के चेहरे से पर्दा उठा दिया है और साबित कर दिया है कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता। एक महत्वपूर्ण मोड़ पर एकजुट रहकर हिंदुओं और मुसलमानों ने दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़काने के प्रयासों को विफल कर दिया है।
नागरिकों पर बर्बर हमले के बाद केंद्र ने जम्मू क्षेत्र के सीमावर्ती क्षेत्रों में अतिरिक्त सशस्त्र बलों को भेजा है और ग्राम रक्षा समितियों को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है।
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने राजौरी हमले में शामिल आतंकवादियों के बारे में जानकारी देने वाले को 10 लाख रुपये इनाम देने की घोषणा की है।
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने धंगरी गांव में शोक संतप्त परिवारों से मुलाकात की। उन्होंने पीड़ितों के परिवार के सदस्यों के लिए 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि और सरकारी नौकरी की घोषणा की। उन्होंने हत्याओं का बदला लेने का संकल्प भी लिया।