अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि दूध, ब्रेड, नोट, अखबार से भी यह वायरस फैलता है और इस भ्रामक प्रचार के चलते मुम्बई की कई हाऊसिंग सोसाइटियों की कमेटी ने अखबार बंद कर दिया है। इन अफवाहों और गलत खबरों पर सरकार के मीडिया प्रभाग को तुरंत स्पष्टीकरण देना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। देश के कुछ हिस्सों में अखबारों के बंद होने से अब लोग विश्वसनीयता के मामले में पहले से ही संदिग्ध सोशल मीडिया की सूचनाओं पर पूरी तरह से निर्भर होकर रह गए हैं।
वहीं देखा जाय तो संक्रमण की बीमारी के चलते अखबारों के प्रबंधन भी समाचारों के संकलन में अपने रिपोर्टर्स और पत्रकारों को कठिनाईयों में डालना चाहते थे और सरकार भी जल्दबाजी और घबराहट में कोई सही उपाय करने में असमर्थ रही जिसका नतीजा रहा कि आज कई अखबारों को अपने एडीशन बंद करने पड़े हैं। सरकारी प्रयास और माध्यम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं, लेकिन इसकी कोशिश अभी दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही है।
वहीं देखा जाय तो संक्रमण की बीमारी के चलते अखबारों के प्रबंधन भी समाचारों के संकलन में अपने रिपोर्टर्स और पत्रकारों को कठिनाईयों में डालना चाहते थे और सरकार भी जल्दबाजी और घबराहट में कोई सही उपाय करने में असमर्थ रही जिसका नतीजा रहा कि आज कई अखबारों को अपने एडीशन बंद करन् पड़ा है। सरकारी प्रयास और माध्यम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं, लेकिन इसकी कोशिश अभी दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही है।देश के कुछ हिस्सों में अखबारों के बंद होने से अब लोग विश्वसनीयता के मामले में पहले से ही संदिग्ध सोशल मीडिया की सूचनाओं पर पूरी तरह से निर्भर होकर रह गए हैं।