साहित्य अकादेमी ने मंगलेश डबराल की स्मृति में किया श्रद्धांजलि सभा का आयोजन

प्रख्यात लेखिका चित्रा मुद्गल ने कहा कि वे केवल हिंदी के नहीं बल्कि भारतीय भाषाओं के कवि थे और उन्होंने एक नई पीढ़ी को प्रेरणा देते हुए तैयार किया। उनकी कविताओं में पहाड़ का ही दर्द नहीं बल्कि वहाँ के पत्थर का दर्द व्यक्त हुआ था। उनकी कविता भाषा अतुलनीय थी और उनकी असहमति में एक ताकत थी।

नई दिल्ली। 16 दिसंबर 2020; साहित्य अकादेमी द्वारा आज प्रख्यात कवि एवं साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त मंगलेश डबराल की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।

आभासी मंच पर आयोजित इस श्रद्धांजलि सभा के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव एवं अन्य अधिकारियों ने मंगलेश के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि व्यक्त की। सचिव के. श्रीनिवासराव ने श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा कि मंगलेश डबराल की अपनी एक स्पष्ट आवाज और विनम्र काव्यभाषा थी, जिसकी वजह से उनकी वैश्विक स्तर पर पहचान थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में जनपक्षधरता को प्राथमिकता दी।

प्रख्यात लेखिका चित्रा मुद्गल ने कहा कि वे केवल हिंदी के नहीं बल्कि भारतीय भाषाओं के कवि थे और उन्होंने एक नई पीढ़ी को प्रेरणा देते हुए तैयार किया। उनकी कविताओं में पहाड़ का ही दर्द नहीं बल्कि वहाँ के पत्थर का दर्द व्यक्त हुआ था। उनकी कविता भाषा अतुलनीय थी और उनकी असहमति में एक ताकत थी।

आनंद स्वरूप वर्मा ने कहा कि डबराल जी ने विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य के साथ-साथ विदेशी साहित्य के साथ भी संपर्क का एक बड़ा सेतु तैयार किया। प्रख्यात नाटकार एवं लेखक असगत वजाहत ने युवा अवस्था में उनके साथ बिताए गए समय को याद करते हुए कहा कि वे अपनी जवानी के दिनों में भी अपने आस-पास के लोगों की चिंता उसी तरह करते थे जैसे कोई बुजुर्ग आस-पास के लोगों का ध्यान रखता है इसलिए कई बार हम उन्हें जवान बूढ़ा कहकर बुलाते थे। वे इंसानियत पर अटूट विश्वास करने वाले कवि थे।

प्रख्यात कवि अरुण कमल जी ने कहा कि वे ऐसे कवि थे जिन्होंने पहाड़ का ही नहीं बल्कि जो भी कहीं हाशिए पर था उसे अपनी कविता में लाकर गरिमा प्रदान की। प्रख्यात मराठी कवि चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि वे मराठी साहित्य के बारे में बहुत सजग थे और हमेशा उसमें रुचि लेते थे। प्रख्यात मलयाळम कवि के. सच्चिदानंदन ने उन्हें सामाजिक रूप से जागरूक कवियों की परंपरा का अंतिम प्रतिनिधि मानते हुए कहा कि वे साधारण होते हुए भी अपने आप में असाधारण थे। उन्होंने अपनी कविता, अपना मान हमेशा कायम रखा।

कवि लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने आकाशवाणी के कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी को याद करते हुए कहा कि उनका जाना कविता में जनपक्षधरता के एक मजबूत स्वर का जाना है। कवि बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि उन्होंने हिंदी कविता को लयात्मकता प्रदान की। मराठी के युवा साहित्यकार बलवंत जेऊरकर ने कहा कि मंगलेश जी जितने हिंदी के कवि थे उतने ही मराठी के भी।

मंगलेश के परिवार से श्रद्धांजलि सभा में शामिल हुई उनकी बेटी अल्मा और प्रमोद कौंसवाल ने साहित्य अकादेमी और श्रद्धांजलि सभा में शामिल सभी के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि सभी के सहयोग से मंगलेश के अधूरे रहे कार्य को पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। अंत में साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि उन्होंने पहाड़ के लालित्य को नहीं बल्कि वहाँ की बदहाली को गहरे तक महसूस किया और इसको अपनी आवाज दी।

First Published on: December 16, 2020 10:41 PM
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