नई दिल्ली। संजय राय ‘शेरपुरिया’ यूपी एसटीएफ की गिरफ्त में है। शेरपुरिया के कारनामों पर अब चर्चा हो रही है। यूपी एसटीएफ रोज उसके संपर्कों-संबंधों की कुंडली खंगाल रही है। इस कड़ी में जो सच सामने आ रहे हैं वो हैरान करने वाले हैं। उसके पीछे गुजरात से लेकर दिल्ली तक बड़े-बड़े पदों पर आसीन और उसके द्वारा उसे शातिर ‘ठग’ बता रहा है तो कुछ लोग उसके संपर्कों, संबंधों, पहुंच और समाजसेवा की मिसाल दे रहे हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि पीएमओ, संघ-भाजपा, डालमिया समूह और जिन केंद्रीय मंत्रियों के साथ फोटो खिंचाकर या मंच शेयर करके वह प्रभावशाली लोगों के नाम और पद का गलत इस्तेमाल कर रहा था, उनकों कोई शिकायत नहीं है। आखिर यूपी एसटीएफ ने शेरपुरिया को किसकी शिकायत पर गिरफ्तार किया?
जिस ‘यूथ रूरल एंटरप्रेन्योर फाउंडेशन’ ट्रस्ट में उद्योगपतियों से करोड़ों रुपये लेने का आरोप है, उस ट्रस्ट में भी शेरपुरिया नहीं है। शीर्ष सत्ता और मंत्रियों-उद्योगपतियों से उसके संबंध-संपर्क कोई एक दिन की बात नहीं थी। समय-समय पर मीडिया में ऐसे नटवरलालों की खबरें आती रहती है। जो चंद दिनों में ही समृद्धि के शिखर पर होते हैं, लेकिन जब उनका भांडा फूटता है तो कुछ और ही सच सामने होता है। चंद दिनों में समृद्धि के शिखर पर पहुंचना उनकी प्रतिभा और हाड़तोड़ मेहनत का नतीजा नहीं बल्कि हमारे शासनतंत्र और अर्थतंत्र की असफलता का प्रतीक है। नब्बे के दशक में आई नई आर्थिक नीतियों के बाद जिस तरह सफलता को सर्वोपरि मानने का रिवाज बना, और अपनी सरकार बनाने-चलाने के लिए हर स्तर पर षडयंत्र होते रहे, उसमें ऐसे लोग बहुत उपयोगी साबित हुए। सत्ता के इर्द-गिर्द एक खास तरह के लोगों का जमावड़ा होने लगा। और इस खास प्रजाति के लोगों को सत्ता-नौकरशाही-उद्योगपतियों के गठजोड़ ने संरक्षण दिया। ऐसे लोग जब तक सत्ता के लिए फायदेमंद साबित होते रहे तब तक उसका इस्तेमाल किया गया, और जैसे ही वह काम का नहीं रहा दूध में मक्खी की तरह बाहर निकाल फेंका गया। कुछ तो शेरपुरिया की तरह सत्ता संघर्ष के मोहरे बन जाते हैं। फिलहाल, पहले शेरपुरिया के उत्थान पर एक नजर डालते हैं।
पूर्वांचल के गाजीपुर जिले के एक गांव का बहुत कम पढ़ा-लिखा नौजवान अपने भविष्य को संवारने के लिए गुजरात के कच्छ जाता है। जीवन चलाने के लिए वह सुरक्षा गार्ड की नौकरी करता है। लेकिन कुछ वर्षों में ही वह एक सफल उद्योगपति बना जाता है। और नरेंद्र मोदी के बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ने और प्रधानमंत्री बनने के बाद, अपने गृह जनपद में समाजसेवी के रूप में ‘अवतार’ लेता है, जो दिल्ली से जाकर गाजीपुर और बनारस में रोजगार मेला लगवाता है और केंद्रीय सत्ता का बेहद करीबी होने का अहसास दिलाता है।
दरअसल, शेरपुरिया हमारे देश के वर्तमान राजनीतिक-आर्थिक मॉडल का एक प्रतीक भर है। दिल्ली में ऐसे हजारों शेरपुरिया हैं। शेरपुरिया द्वारा संचालित ट्रस्ट ‘यूथ रूरल एंटरप्रेन्योर फाउंडेशन के सलाहकार बोर्ड में सेवानिवृत्त आईएएस, आईपीएस और सशस्त्र बलों के अधिकारी शामिल रहे हैं। यह अलग बात है कि अब वह कह रहे हैं कि मुझे यह याद नहीं है कि हमने उसके ट्रस्ट के सलाहकार बोर्ड में शामिल होने की कब सहमति दी। आश्चर्य की बात यह भी है कि सिर्फ शेरपुरिया के ट्रस्ट के सलाहकार बोर्ड में शामिल कुछ पूर्व नौकरशाह पीएमओ का फर्जी अधिकारी बताने पर गिरफ्तार किरण पटेल से भी जुड़े हैं। ऐसे एक सवाल यह भी है कि क्या शेरपुरिया और किरण पटेल एक ही गैंग के सदस्य हैं, जिसे गुजरात कैडर के वरिष्ठ नौकरशाहों का भी संरक्षण प्राप्त था।
मार्च के महीने में जम्मू-कश्मीर में गुजरात का एक शख्स किरण पटेल अपने को पीएमओ का अधिकारी बता अधिकारियों और सेना के अधिकारियों से स्पेशल ट्रीटमेंट लेता रहा। शक होने पर सेना के अधिकारियों ने उसे श्रीनगर से गिरफ्तार कर लिया था। तब यह मुद्दा बहुत चर्चित हुआ था। कोई उसे पीएमओ का तो कोई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का ‘खास’ आदमी बता रहा था। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाली इस घटना पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और पीएमओ का कोई खंडन नहीं आया।
शेरपुरिया के ट्रस्ट के सलाहकार बोर्ड में शामिल एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी किरण पटेल के साथ जुड़ा हुआ है। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के रिकॉर्ड के अनुसार, YREF को 30 अक्टूबर, 2019 को शामिल किया गया था, और जबकि इसका पंजीकृत कार्यालय वाराणसी में है, यह गाजीपुर से संचालित होता है। YREF के सलाहकार बोर्ड में छह व्यक्ति हैं, और छह अतिरिक्त निदेशक हैं। इसके अतिरिक्त निदेशकों में से एक, प्रदीप कुमार राय हैं जो दिल्ली एनसीआर की एक कंपनी, निवेश वेंचर्स में “नामित भागीदार” हैं। इस कंपनी में दूसरे पार्टनर कुशाग्र शर्मा हैं, जो गुजरात कैडर के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एके शर्मा के बेटे हैं। रिकॉर्ड दिखाते हैं कि निवेश वेंचर्स 16 नवंबर, 2017 को दिल्ली राइडिंग क्लब नंबर 1, सफदरजंग रोड, नई दिल्ली में पंजीकृत था। यह संजय राय का पता है, जैसा कि यूपी पुलिस द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों में उल्लेख किया गया है।
2018 में तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच सीबीआई के भीतर युद्ध चरम पर था, अस्थाना ने तत्कालीन कैबिनेट सचिव को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि प्रदीप कुमार राय सरकार द्वारा बनाए गए “अवांछित संपर्क पुरुषों की सूची” में हैं। एके शर्मा तब सीबीआई में ज्वाइंट डायरेक्टर थे। प्रदीप राय के वकील ने तब इन आरोपों का खंडन किया था। शर्मा अब YREF के सलाहकार बोर्ड में हैं।
इसके अलावा, वाईआरईएफ के सलाहकार बोर्ड में गुजरात कैडर के 1978 बैच के आईएएस अधिकारी (सेवानिवृत्त) एसके नंदा हैं। नंदा ने किरण पटेल के भी मददगार रहे हैं। उन्होंने ठग किरण पटेल की गुजरात में जी20 से संबंधित सम्मेलन आयोजित करने में मदद की थी।
सलाहकार बोर्ड के अन्य लोगों में वाइस एडमिरल सुनील आनंद, एवीएसएम, एनएम (सेवानिवृत्त), एयर कमोडोर मृगिंदर सिंह, वीएसएम (सेवानिवृत्त), 1982 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
पूर्व आईएएस एसके नंदा ने कहा कि वह राय से “दो बार मिले थे क्योंकि वह कच्छ के एक निर्माता थे … और शायद वाइब्रेंट गुजरात के दौरान” और “बस इतना ही”।
वह कहते हैं “मुझे नहीं पता कि उसने मुझे सलाहकार बोर्ड में कैसे सूचीबद्ध किया है। मैंने कभी किसी मीटिंग में हिस्सा नहीं लिया। शायद वह युवाओं के लिए मेरी गतिविधियों से प्रभावित थे।”
एयर कमोडोर मृगेंद्र सिंह ने कहा, ‘मैं उन्हें तब से जानता हूं जब मैं सेवा में था। मैं पिछले चार सालों में उनसे नहीं मिला हूं, लेकिन हम संपर्क में हैं। वह एक अच्छे व्यक्ति के रूप में सामने आया जो सत्ता से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ था। हो सकता है कि उन्होंने उस समय एडवाइजरी बोर्ड के लिए मेरी सहमति ली हो, मुझे याद नहीं है। लेकिन मेरा एनजीओ से कोई सक्रिय जुड़ाव नहीं है।’
वाइस एडमिरल सुनील आनंद ने भी वाईआरईएफ के साथ सहयोग से इनकार किया। मैं संजय राय को जानता हूं और उनसे मिला हूं। लेकिन मुझे याद नहीं है कि उसने मुझे एनजीओ के सलाहकार बोर्ड का हिस्सा बनाने के लिए कहा हो। मेरा इस एनजीओ से कोई लेना-देना नहीं है।
सही अर्थों में संजय प्रकाश राय ‘शेरपुरिया’ वाइब्रेंट गुजरात की उपज है। और राजनीति के गुजरात मॉडल के मंत्र को अपनाते हुए वह शासन-सत्ता के प्रभावशाली लोगों तक पहुंचा। गुजरात मॉडल का मंत्र जपते हुए वह ‘शीर्ष सत्ता’ का दुलारा बना। लेकिन सत्ता का चरित्र हमेशा एक जैसा नहीं होता। सत्ता में पक्ष-विपक्ष और गुट होते हैं। ऐसे में क्या शेरपुरिया भाजपा की अंदरूनी राजनीति का ‘शिकार’ बन गया।
इसको समझने के लिए यूपी की वर्तमान राजनीति को समझना होगा। यूपी की राजनीति को जानने-समझने वालों का मानना है कि योगी आदित्यनाथ मोदी-शाह की पसंद नहीं है। 2017 में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा को बहुमत मिला तो मोदी-शाह की पसंद केशव प्रसाद मौर्य थे। लेकिन केशव प्रसाद मौर्य के अति उत्साह ने उनकों मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर कर दिया। और आरएसएस के समर्थन से योगी आदित्यनाथ सीएम बन गए। लेकिन तब पार्टी हाईकमान ने योगी को अंकुश में रखने के लिए दो उप-मुख्यमंत्री बना दिये। पांच साल तक योगी केंद्रीय सत्ता की आंख की किरकिरी बने रहे और पार्टी हाईकमान से उनकी दूरी के झूठे-सच्चे किस्सों पर राजनीतिक गलियारों में चर्चा होती। 2022 विधानसभा चुनाव के पहले से ही हाईकमान उनकों बदलने का संकेत देता रहा। लेकिन योगी ने बुल्डोजर का नारा और सांप्रदायिक कार्ड खेलकर फिर यूपी की सत्ता पर काबिज हो गए।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा आम है कि आरएसएस 2024 के बाद मोदी के विकल्प के रूप में योगी को देख रहा है, औऱ उनकों इसके लिए तैयारी करने का संकेत भी देता रहा है। असली लड़ाई यहीं से शुरू होती है। केंद्र में नंबर दो की हैसियत रखने वाले मंत्री अपने को पीएम मोदी का विकल्प मानते हैं। ऐसे में वह एक उप-मुख्यमंत्री के माध्यम से योगी सरकार को कमजोर करने की चाल चलते रहते हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि प्रयागराज में उमेश पाल ही हत्या के बाद से यूपी में कानून-व्यवस्था पर सवाल उठने लगा। योगी ने माफियाओं को मिट्टी में मिलाने की घोषणा कर दी। इसके बाद यूपी पुलिस उमेश पाल हत्या में शामिल कई आरोपियों और अतीक अहमद के बेटे असद को एनकाउंटर में मार गिराया। असद के एनकाउंटर के बाद कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाने वाले चुप हो गए। लेकिन इसी बीच अस्पताल ले जाते अतीक और अशरफ की हत्या ने फिर यूपी में कानून-व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया। योगी के समर्थकों का कहना है कि अतीक-अशरफ की हत्या के पीछे बहुत गहरी साजिश है। जिसमें एक स्थानीय मंत्री और उप-मुख्यमंत्री की मिलीभगत होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
इस घटना के बाद योगी आदित्यनाथ ने अपनी छवि पर लगे बट्टे को साफ करने के लिए संजय राय ‘शेरपुरिया’ को चुना, जिसके गिरफ्तार होने के बाद से ही केंद्र सरकरा और शीर्ष सत्ता पर सबसे अधिक सवाल उठ रहे हैं।