पिछले दिनों श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़ी और कांग्रेस की सरकार गिर गई। यह बेहद दुखद घटनाक्रम है जिसने न सिर्फ़ कांग्रेस कार्यकर्ताओं बल्कि उन सभी नागरिकों की आशाओं और संघर्ष पर पानी फेर दिया, जो कांग्रेस की विचारधारा में यक़ीन रखते हैं। मुझे बेहद दुख है कि श्री सिंधिया उस वक़्त BJP में गए, जब BJP खुलकर आरएसएस के असली एजेंडा को लागू करने के लिए देश को पूरी तरह बांट रही है। कुछ लोग यह कह रहे हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस में उचित पद और सम्मान मिलने की संभावना समाप्त हो गई थी, इसलिए वो BJP में चले गए।
लेकिन ये ग़लत है। यदि वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनना चाहते थे,तो ये पद उन्हें 2013 में ही ऑफ़र हुआ था और तब उन्होंने केंद्र में मंत्री बने रहना पसंद किया था। यही नहीं, 2018 में चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस पार्टी ने उन्हें उपमुख्यमंत्री पद संभालने का न्यौता भी दिया था। लेकिन उन्होंने स्वयं इसे अस्वीकार कर अपने समर्थक श्री तुलसी सिलावट को उपमुख्यमंत्री बनाने की पेशकश कर दी थी। श्री कमलनाथ श्री तुलसी सिलावट को उपमुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार नहीं हुए और हाल के घटनाक्रम ने ये साबित भी कर दिया है कि वे सही थे। श्री तुलसी सिलावट न सिर्फ़ BJP में गए, बल्कि ऐसे वक़्त में गए, जब राज्य में कोरोना वायरस की महामारी से निपटने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी स्वास्थ्य मंत्री के नाते उन्हीं की थी। श्री सिंधिया ऐसे व्यक्ति को कांग्रेस सरकार का उपमुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, जो न सिर्फ़ कांग्रेस विचारधारा के प्रति बेईमान निकला, बल्कि पूर्ण रूप से ग़ैर ज़िम्मेदार भी साबित हुआ है। कांग्रेस की राजनीति केवल सत्ता की राजनीति नहीं है।आज कांग्रेस की विचारधारा के सामने संघ की विचारधारा है । ये दोनों विचारधाराएँ भारत के अलग अलग स्वरूप की कल्पना करती है।
आज कांग्रेस की सरकार जाने का दुख उन सभी को है,जो कांग्रेस की विचारधारा में यक़ीन रखते हैं। इसमें कांग्रेस के कार्यकर्ता ही नहीं, वो सभी भारत के आम नागरिक शामिल हैं, जो RSS की विचारधारा के ख़िलाफ़ हर रोज़ बिना किसी लोभ के संघर्ष कर रहे हैं। ये सब कांग्रेस के साथ इसलिए हैं क्योंकि देश आज एक वैचारिक दोराहे पर खड़ा है। ऐसे मोड़ पर श्री सिंधिया का BJP में जाना यही साबित करता है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं और समर्थकों के संघर्ष और वैचारिक प्रतिबद्धता को वो केवल अपनी निजी सत्ता के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे। जब तक कांग्रेस में सत्ता की गारंटी थी,कांग्रेस में रहे और जब ये गारंटी कमज़ोर हुईं तो BJP में चले गए।
श्री सिंधिया के वैचारिक विश्वासघात को सम्माननीय बनाने के लिये सहानुभूति की आड़ लेने की कोशिश हो रही है। कहा जा रहा है कि श्र्री कमलनाथ और दिग्विजय ने पार्टी में उनका स्पेस छीन लिया था। इसीलिए पार्टी में वो घुटन महसूस कर रहे थे। ऐसा कहने वाले या तो पार्टी के इतिहास को नहीं जानते या फिर जानबूझकर पार्टी पर निराधार हमले कर रहे हैं। वे भूलते हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी हमेशा से मज़बूत नेताओं की सामूहिक पार्टी रही है। मेरे 10 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में श्री अर्जुन सिंह, श्री श्यामाचरण शुक्ल, श्री विद्याचरण शुक्ला, श्री शंकरदयाल शर्मा , श्री माधवराव सिंधिया, श्री मोतीलाल वोरा, श्री कमलनाथ, श्री श्रीनिवास तिवारी जैसे सम्मानित और बड़े जनाधार वाले नेता कांग्रेस पार्टी में थे। इन सभी को मेरी ओर से सदैव मान सम्मान मिला था।
सभी मिलकर कांग्रेस पार्टी में अपनी-अपनी जगह को सहेजते भी थे और पार्टी को मज़बूत भी करते थे। यही कारण है कि 1993 के बाद 1998 में कांग्रेस को दोबारा जनादेश मिला था। घर को बचाने के लिए घर में आग लगा देने को समझदारी तो नहीं कहा जाता है! श्री सिंधिया देश में कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च नेताओं में से थे। वह एआईसीसी के महामंत्री के पद पर नियुक्त हुए थे। वो प्रियंका गांधी के साथ उत्तर प्रदेश के प्रभारी बनाए गये थे। पार्टी से उन्हें बहुत कुछ मिला था।आज पार्टी को उनकी ज़रूरत थी और उनका कर्तव्य पार्टी को मज़बूत बनाना था।
पार्टी को केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम समझना कितना उचित है। 2003 में जब मेरे नेतृत्व में पार्टी मध्य प्रदेश में चुनाव हार गई थी, तब मैंने प्रण लिया था कि दस वर्ष तक मैं कोई सरकारी पद ग्रहण नहीं करूँगा और पार्टी को मज़बूत बनाने के लिए कार्य करूँगा।इन 10 वर्षों में से 9 वर्ष UPA की सत्ता थी। श्री सिंधिया की तरह सत्ता का लोभ ही मेरी राजनीति का ध्येय होता, तो कांग्रेस के शासन वाले इन वर्षों में मैं सत्ता से दूर नहीं रहता। लेकिन राजनीति में जन सेवा का रास्ता हमेशा सत्ता की गली से नहीं गुज़रता है।
मैंने 1971 में जब कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की थी तो ये एक वैचारिक निर्णय था। राजमाता सिंधिया मुझे जनसंघ में ले जाना चाहती थी,लेकिन RSS की विचारधारा से मैं एकमत नहीं था और १९७१ में मैं कॉंग्रेस में शामिल हो गया। 1979 में, श्री संजय गांधी के निर्देशन में, श्री अर्जुन सिंह और मैं स्वयं स्वर्गीय श्री माधव राव सिंधिया को कांग्रेस पार्टी में लेकर आए थे।मैं पूरे सुकून के साथ और आत्मविश्वास से कह सकता हूँ कि श्री माधव राव के दुखद देहांत तक उन्हें किसी प्रकार की शिकायत का कभी भी मौक़ा नहीं दिया था। कांग्रेस पार्टी ने भी उन्हें असीम प्यार दिया था और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में उनके लिए अटूट स्नेह और सम्मान था।इसलिए उनके दुखद निधन के पश्चात श्रीज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी में और गांधी परिवार में बहुत प्यार और सम्मान मिला। उनके क्षेत्र के सभी निर्णय, चाहे वो राजनैतिक हों या प्रशासनिक हों, उन्हीं की सहमति से होते थे।
ये कहना ग़लत है कि पार्टी उन्हें राज्य सभा का टिकट नहीं देना चाहती थी, इसीलिये वो BJP में चले गए। जहाँ तक मेरी जानकारी है,किसी ने इसका विरोध नहीं किया था। कांग्रेस के पास दो राज्य सभा सीट जीतने के लिए ज़रूरी विधायक संख्या थी। इसलिए मुद्दा सिर्फ़ सीट का नहीं था। मुद्दा केंद्र सरकार में मंत्री पद का था,जो सिर्फ़ श्री नरेंद्र मोदी और श्री अमित शाह ही दे सकते थे। मोदी शाह की इस जोड़ी ने पिछले 6 साल में इसी धनबल और प्रलोभन के आधार पर उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, बिहार और कर्नाटक में सत्ता पर क़ब्ज़ा किया है। मध्य प्रदेश के जनादेश की नीलामी श्री सिंधिया स्वयं करने निकल पड़े, तो मोदी शाह तो हाज़िर थे ही। लेकिन अपने घर की नीलामी को सम्मान का सौदा नहीं कहा जाता।
श्री सिंधिया ने कांग्रेस अध्यक्ष को लिखे अपने त्याग पत्र में कहा है कि वे जनता की सेवा करने के लिए कांग्रेस छोड़ रहे हैं। लेकिन जनता की सेवा करने के लिए कांग्रेस को छोड़ने की ज़रूरत आख़िर क्यों पड़ी? वो कांग्रेस के महामंत्री थे। राज्यों में पार्टी को जन सेवा के लायक बनाने के लिए यह सर्वोच्च पद है। इस पद पर रह कर कांग्रेस को मज़बूत करने में उनकी रुचि क्यों नहीं रही?
मैं स्वयं महामंत्री के पद पर रहा हूँ और इसकी गरिमा समझता हूँ। कांग्रेस अध्यक्ष ने मुझे कांग्रेस महामंत्री तब नियुक्त किया था, जब मैंने 10 वर्ष सत्ता से दूर रहने का फ़ैसला किया था। यह निर्णय लेते वक़्त ऐसा नहीं था कि कांग्रेस पार्टी से मुझे कोई शिकायत थी या पार्टी को मुझसे शिकायत थी। यह फ़ैसला इसलिए था कि जिस पार्टी ने और जिस विचारधारा ने मुझे इतना कुछ दिया था, मैं उसे मज़बूत करने में अपना योगदान देना चाहता था और मुझे सुकून है कि मैं ऐसा करने में सफल भी हुआ था। मेरे ही प्रभार में असम में दो बार, 2006 और 2011 में कांग्रेस सरकार चुनी गई। महाराष्ट्र में मुझे 2004 और 2009 में पार्टी अध्यक्ष ने चुनाव प्रभार सौंपा और दोनों ही बार कांग्रेस की सरकार बनाने में हम सफल हुए। 2004-2007 के बीच मैं आँध्र प्रदेश का प्रभारी महामंत्री भी रहा था। इस दौरान श्री राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी।
मेरे कार्यकाल में संगठन पूरी तरह एकजुट था, और कांग्रेस को सभी लोकल और उप चुनावों में भारी सफलता मिली थी। पार्टी को मज़बूत करने की एक बड़ी चुनौती मुझे 2007 में उत्तर प्रदेश में दी गई थी। पार्टी में किए गए कामों की वजह से ही 2009 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस 22 सीटों पर विजयी हुई थी। 2012 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में भी कॉंग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा और हमें 29 सीटें मिलीं। इसी तरह जब 2005 में मुझे बिहार का प्रभार दिया गया तब भी RJD से गठबंधन में पार्टी की सीट और मत प्रतिशत दोनों में बढ़ोतरी हुई थी।
2007 में जब मुझे गुजरात की 42 सीटों की ज़िम्मेदारी दी गई तब वहाँ भी विधानसभा चुनावों में इन सीटों पर पिछली बार के मुक़ाबले दोगुनी विजय हासिल हुई थी। 2008 में जब राजस्थान ने मुझे स्क्रीनिंग कमेटी का चेयरमैन बनाया गया तब भी हम राजस्थान में सरकार बनाने में स17 हो गई थी, लेकिन BJP ने धन-बल का इस्तेमाल करते हुए सरकार हथिया ली थी।
श्री सिंधिया चाहते तो वे भी कांग्रेस महामंत्री रहते हुए पार्टी को मज़बूत करने के लिए काम कर सकते थे। ये कहना ग़लत है कि उनको सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिली इसलिए वो दुखी थे। जनता की सेवा की मनोकामना सिर्फ़ अच्छे दिनों से जुड़ी हो,ये ज़रूरी नहीं है। मैं इसे न सिर्फ़ दिल से मानता हूँ, बल्कि इस पर अमल भी करता हूँ। मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों से पूर्व मैंने यह घोषणा की थी कि मैं मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं हूँ।
इससे पूर्व २०१७ से मैं कांग्रेस पार्टी के किसी पद पर भी नहीं था। मेरे पास पार्टी की ना तो कोई ज़िम्मेदारी थी और न ही मेरा सत्ता का कोई लक्ष्य था। तो क्या मुझे दुखी होकर घर बैठ जाना चाहिए था या फिर पार्टी से नाराज़ हो जाना चाहिए था? मैं यह मानता हूँ कि पार्टी सिर्फ़ हमारी सत्ता का साधन नहीं है।
पार्टी देश की वैचारिक संरचना का माध्यम भी होती है। देश को RSS के विघटनकारी रास्ते पर फिसलने से रोकने के लिए ही मैंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर जी तोड़ मेहनत की थी।
सपत्नीक अपनी नर्मदा यात्रा से मैंने खुद को प्रदेश की आध्यात्मिक ज़मीन से जोड़ा और फिर एकता यात्रा की मार्फ़त प्रदेश के कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में पिरोने की सफल कोशिश की थी। हम सबका एक ही लक्ष्य था कि मध्य प्रदेश में BJP को हराया जाए। यह लक्ष्य सिर्फ़ सत्ता प्राप्ति के लिए नहीं था। हमारा सपना प्रदेश में धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक संवैधानिक मूल्यों में विश्वास रखने वाली सरकार बनाने का था। हम यह भी जानते थे कि मोदी-शाह के प्रभुत्व के वर्तमान दौर में यह सपना देखना और उसे साकार करने की कोशिश करना आसान नहीं होगा।
हम यह भी जानते थे कि यदि सत्ता हासिल करना ही एकमात्र लक्ष्य हो तो आज के वक़्त में इसका सबसे आसान रास्ता स्वयं BJP ही है। आज केवल वही नेता BJP के साथ मुक़ाबला कर सकते हैं जिनका वैचारिक कमिटमेंट हो या फिर जिनका इतिहास भ्रष्ट और दाग़दार न हो। BJP से वैचारिक समानता वालों के लिए और भ्रष्ट नेताओं के लिए उस पार्टी के दरवाज़े हमेशा खुले हैं। पिछले छह साल का अनुभव इस बात की पुष्टि करता है कि ऐसे नेताओं के लिये BJP के पास अकूत धनबल, छलबल और सत्ता-बल है।
नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दरबार में उन सभी के लिए जगह है, जो उनकी शर्तो पर झुककर दरबारी बनने को तैयार हैं। सच्चे कांग्रेसगण उनकी शर्तों और उनकी विचारधारा के आगे झुकने के लिए तैयार नहीं है। हम सब जो गांधी नेहरूवादी विचारधारा से जुड़े हैं, हम सब लड़ेंगे, बेहतर भारत के लिए, सबके भारत के लिए, संवैधानिक मूल्यों के लिए और सभी नागरिकों के बराबर अधिकारों के लिए। हमें पद की लालसा नहीं है हमें देश की विविधता में एकता के रास्ते से ही चल कर भारत को विश्व का सर्व श्रेष्ठ देश बनाना है।
सत्यमेव जयते। भारत माता की जय