राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन का सप्तदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला एवं प्रदर्शनी


प्रोफेसर सच्चिदानन्द जोशी ने अपने बीज वक्तव्य में कार्यशाला की प्रासंगिकता और महत्ता को दर्शाते हुए शास्त्र और इतिहास के संरक्षण और पोषण में समायोजित किया और यह कहा कि हमें अपने स्वर्णिम भविष्य के लिए भूत को सुरक्षित करना ही होगा।


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नई दिल्ली। “भारतीय ज्ञान परम्परा” के मूलभूत घटक-तत्त्व को संरक्षित करने के लिए और आने वाली पीढ़ी को इसके लिए तैयार करने के लिए संस्कृत विभाग, मिरांडा हाउस, राजधानी महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन, इन्दिरा गांधी कला केन्द्र, संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार के संयुक्त तत्त्वावधान में सप्तदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन मीरांडा हाउस के सभागार में  किया गया। 1 जुलाई तक चलने वाली इस कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर सच्चिदानंद जोशी की उपस्थिति रही।

कार्यक्रम स्थल पर राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन के द्वारा पांडुलिपियों की भव्य प्रदर्शनी आयोजित की गई जो बहुत ही आकर्षक रहा। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ, साथ ही संस्कृत स्तोत्रों की प्रसिद्ध गायिका माधवी मधुकर झा के द्वारा मंगलाचरण के रूप में सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी गयी।  प्रो. राजेश गिरि, प्राचार्य, राजधानी कॉलेज एवं डॉ. अनिर्बाण दाश निदेशक, राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन, ने मुख्य एवं विशिष्ट अतिथियों सहित सभी का स्वागत किया और अपने उद्बोधन में एक मत से स्पष्ट किया कि हम सभी साथ मिलकर भारतीय ज्ञान परम्परा के संरक्षण, पोषण एवं संवर्धन के निमित्त आने वाले दिनों में एक MoU पर भी हस्ताक्षर करेंगे और भारत सरकार के उद्देश्यों की पूर्ति में सहयोगी बनेंगे।

प्रोफेसर सच्चिदानन्द जोशी ने अपने बीज वक्तव्य में कार्यशाला की प्रासंगिकता और महत्ता को दर्शाते हुए शास्त्र और इतिहास के संरक्षण और पोषण में समायोजित किया और यह कहा कि हमें अपने स्वर्णिम भविष्य के लिए भूत को सुरक्षित करना ही होगा। इन्होंने स्पष्ट रूप से यह कहा कि इस प्रकार की कार्यशाला राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन के उद्देश्य का शुभारम्भ मात्र है। साथ ही इन्होंने लिपि और भाषा के अन्तर एवं महत्त्व पर प्रकाश डाला। डॉ. अनिर्बाण दाश ने यह बताया कि इस कार्यशाला में देशभर से लगभग 260 प्रतिभागियों ने भाग लिया है।

इस कार्यशाला का उद्देश्य दूसरी पीढ़ी को तैयार करना है, जिससे पांडुलिपियों का लिप्यन्तरण एवं प्रकाशन सहज सम्भव हो सके। विशिष्ट अतिथि प्रो. ओम नाथ बिमली, अध्यक्ष संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय ने कार्यशाला की महत्ता को बताते हुए अनेक प्रकार की पांडुलिपियों और अभिलेखों का उल्लेख किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में आये हुये दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलानुशासक डॉ. सौरभ ने विभिन्न प्रकार की लिपियों और उनकी उपयोगिता पर बल दिया। राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन से आए हुए डॉ. अवधकिशोर चौधरी ने पांडुलिपियों की चिंताजनक स्थिति को एक बहुत ही सुन्दर गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया।