नेशनल हेराल्ड मामले पर सोनिया गांधी के वकील का ED से सवाल

नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की ओर से पैरवी कर रहे वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने शुक्रवार (04 जुलाई, 2025) को कहा कि यह वास्तव में एक अजीब मामला है। यह मनी लॉन्ड्रिंग का कथित मामला है, जिसमें किसी भी तरह का पैसा या संपत्ति नहीं डायवर्ट की गई है। संपत्ति का कोई उपयोग या बदलाव नहीं किया गया है। AJL के पास पूरे देश में संपत्ति है, एजेएल के पास दशकों से संपत्ति है, उनमें से एक भी संपत्ति का स्वामित्व नहीं बदला गया और एक इंच भी नहीं।

वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एजेएल को कर्ज मुक्त बनाना था, जो कर्ज लेकर उसे किसी और को सौंपने की वजह ऐसा ही है, जैसा एक सामान्य कॉर्पोरेट कंपनियों मे होता है, ताकि कर्ज से मुक्ति मिल जाए। यह एक नॉन प्रॉफिट कंपनी है, ये लाभांश आदि शेयर नहीं कर सकते। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष, वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष और अन्य नेता कंपनी का हिस्सा हैं, क्योंकि कांग्रेस के बिना नेशनल हेराल्ड का कोई औचित्य नहीं है।यह एक विरासत है।

किसी भी कांग्रेस नेता को नहीं मिली संपत्ति

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि AJL से यंग इंडियन में संपत्ति का एक मिलीमीटर भी मूवमेंट नहीं हुआ। किसी भी कांग्रेस नेता को कोई पैसा या कोई संपत्ति नहीं मिली, फिर भी इसे मनी लॉन्ड्रिंग कहा जा रहा है। 2021 में ED में इसे मामला बनाया गया। अब ईडी ने इतने सालों तक क्या किया। 2013 में शिकायत दर्ज की गई थी। जब शेयर यंग इंडियन को ट्रांसफर किए जाते हैं, तो संपत्ति का स्वामित्व भी AJL के पास रहता है। बस इतना हुआ कि यंग इंडियन को AJL का 99% हिस्सा मिल गया।

50 साल पहले के कानून का दिया हवाला

सिंघवी ने आगे कहा, ‘यंग इंडिया के पास AJL के 100% शेयर हैं। 1954 से वोडाफोन केस के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखें तो यंग इंडिया के पास AJL की कोई संपत्ति नहीं है। जब स्वामित्व AJL के पास ही रहता है तो यह मनी लॉन्ड्रिंग कैसे हुआ।’

सिंघवी ने एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि 50 साल पहले कानून ने जो मान्यता दी थी, उसे अब मनी लॉन्ड्रिंग माना जा रहा है। यह एक ऐसा मामला है, जिसमें कंपनी के बंद होने पर भी मनी लॉन्ड्रिंग की जाती है और मौजूदा कानून के मुताबिक, अगर कंपनी बंद हो जाती है तो उसकी संपत्ति सेक्शन 8 के तहत कंपनी के पास रहेगी, ना कि उसके शेयरधारकों के पास।

‘ना तो FIR और ना ही जांच’

वकील सिंघवी ने आगे कहा कि यह एक ऐसी कार्यवाही है, जिसका अस्तित्व ही नहीं है, जिसका अदालत को संज्ञान लेना है। ईडी की चार्जशीट पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता, क्योंकि न तो कोई एफआईआर है और न ही जांच के लिए जिम्मेदार व्यक्ति की तरफ से कोई शिकायत है। अभियोजन को शुरू करने के लिए दस्तावेज किसी ऐसे व्यक्ति से आना चाहिए, जिसके पास इसका अधिकार हो।

ईडी को भी लेकर कही ये बात

सिंघवी ने पैरवी करते हुए आगे कहा, ‘दरअसल ईडी ने 2010 से 2021 तक कुछ नहीं किया, लेकिन फिर अचानक जाग गया। आज भी उसने कुछ नहीं किया, बल्कि एक निजी शिकायत को उठाकर ले आए। राजनीतिक मामलों में इमोशनल बातें अक्सर कानून से आगे निकल जाती हैं।

हर रोज हजारों शिकायतें दर्ज की जाती हैं। BNSS के तहत मौखिक शिकायत भी दर्ज की जा सकती है। अचानक एक दिन ईडी ने इस शिकायत को चुना, चार्जशीट दाखिल किया और अदालत से संज्ञान लेने को कहा। ईडी ने एक भी ऐसा उदाहरण नहीं दिया है, जहां उसने किसी ऐसे व्यक्ति की तरफ से दायर मामले की जांच की हो, जिसके पास जांच करने का अधिकार ही नहीं था।’

गैर-लाभकारी कंपनी के साथ मनी लॉन्ड्रिंग क्यों?

उन्होंने कहा कि ईडी चुनिंदा रूप से शिकायत लेने के लिए नहीं है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ और अभियोजन पक्ष की शिकायत इस बारे में चुप है। किसी कंपनी को पुनर्जीवित करने के लिए सब कुछ लंबे समय तक किया जाता है। उन्होंने शेयर होल्डिंग प्राप्त करने के लिए ऋण ट्रांसफर किया। कोई भी गैर-लाभकारी कंपनी के साथ मनी लॉन्ड्रिंग क्यों करेगा।

सिंघवी ने कहा कि मान लीजिए कि AJL का कर्ज टाटा या बिरला ने लिया होता, तो कौन ऐसी कंपनी है, जो गैर-लाभकारी कंपनी को लेना चाहेगी। यह तो मूर्खतापूर्ण काम है तो बिना किसी संपत्ति के मनी लॉन्ड्रिंग कैसे होगी। गैर-लाभकारी कंपनी के निदेशक पैसे को छू नहीं सकते। बता दें कि कल भी रॉउज एवन्यू कोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी।

First Published on: July 5, 2025 2:03 PM
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