सुचेता स्मृति व्याख्यान 2024: सुचेता कृपलानी में था विपरीत परिस्थितियों में काम करने का माद्दा


सुचेता जी ने महिला संगठन बनाकर महिलाओं की समानता की नींव रखी, नोआखली यात्रा का जोखिम उठाया, महात्मा गांधी का साथ देने के लिए अगवा की गई भारतीय महिलाओं को पाकिस्तान से वापस लाने का प्रयास किया, उन्हें पुनर्वासित किया, राजनीति में अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई।


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नई दिल्ली। सुचेता कृपलानी महिला चेतना से भरपूर एक जबरदस्त एक्टिविस्ट थीं। वह कहती थीं कि मैं जब तक जेल नहीं गई एहसासे कमतरी का शिकार रही। ऐसा एक एक्टिविस्ट ही सोच सकता है, यह एक्टिविस्ट के ही सपने हो सकते हैं।

यह बात डॉ. तारा नेगी ने ‘महिला चेतना एवं सुचेता कृपलानी’ विषयक सुचेता स्मृति व्याख्यान- 2024 के दौरान स्थानीय हिंदी भवन में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कही।

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र की प्राध्यापक रही डॉक्टर तारा नेगी ने आगे कहा कि सुचेता कृपलानी एक कुशल संगठनकर्ता थीं। आज हम सुचेता जी को अखिल भारतीय महिला कांग्रेस के संस्थापक के रूप में भी याद करना चाहेंगे। सुचेता जी महिलाओं को राजनीति में और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करती थीं। 1940 में सुचेता जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महिला संगठन बनाने की जिम्मेदारी ली। यह एक ऐसा संगठन है जो आजादी के बाद आज भी कायम है।

डॉ. नेगी ने आगे बताया कि महिला संगठन बनाने के लिए सुचेता कृपलानी को एक राज्य से दूसरे राज्य में जाना पड़ा। विभिन्न प्रादेशिक नेताओं से मिलना पड़ा। महिलाओं की छोटी-छोटी इकाइयां बनानी पड़ी। सुचेता जी को यकीन था कि जैसे संगठन के बिना भारत की आजादी हासिल नहीं की जा सकती उसी तरह महिलाओं के संगठन के बिना महिलाओं की बराबरी का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। जबकि कांग्रेस महिला संगठन के कार्यक्रमों के लिए फंड देने में बहुत आना-कानी करती थी। फलस्वरुप संगठन का काम बाधित होता था। उन्होंने महिलाओं के संगठनात्मक पक्ष पर बहुत जोर दिया और विभिन्न इकाइयों के बीच प्रभावी तालमेल बिठाकर एक महिला संगठन खड़ा करने का काम बखूबी किया।

मुख्य वक्ता ने आगे कहा कि महिलाओं की सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक स्थिति से सुचेता जी अनभिज्ञ नहीं थीं। इस स्थिति को बदलने के लिए महिलाओं के संघर्ष और आंदोलन की जरूरत को बखूबी पहचानती थीं और इसके लिए वह सतत प्रयासरत रहीं।

डॉ. नेगी का आगे कहना था कि 1946 में उन्होंने नोआखली में विभाजन से जुड़े दंगा-पीड़ितों की मदद का बड़ा काम किया। सुचेता जी ने महिला संगठन बनाकर महिलाओं की समानता की नींव रखी, नोआखली यात्रा का जोखिम उठाया, महात्मा गांधी का साथ देने के लिए अगवा की गई भारतीय महिलाओं को पाकिस्तान से वापस लाने का प्रयास किया, उन्हें पुनर्वासित किया, राजनीति में अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई और उससे आगे अपनी पूरी संपत्ति को समाज सेवा के लिए अर्पित कर दिया और समाज कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया।

स्मृति व्याख्यान के दौरान वृंदावन में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही एकाकी महिलाओं के कल्याण से जुड़े मुद्दे को सुश्री राखी गुप्ता ने उठाया।

व्याख्यान को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक अरविंद मोहन ने कहा कि 1917 में जब चंपारण सत्याग्रह हुआ तब वहां काम करने वाली महिलाएं नहीं मिली। महात्मा गांधी को महिलाओं के बीच जाने और उनसे बात करने के लिए अंततः कस्तूरबा को ही बुलाना पड़ा। लेकिन 1930 में नमक सत्याग्रह के समय पूरे देश में 25000 महिलाओं ने जेल यात्रा की जो अब तक के इतिहास में किसी एक आंदोलन में दुनिया के किसी देश में नहीं हुआ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पद्मश्री राम बहादुर राय ने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में काम करने का माद्दा सुचेता कृपलानी के जीवन के हर हिस्से में दिखाई देता है।

कार्यक्रम में ढेर सारे बुद्धिजीवी प्राध्यापक पत्रकार लेखक आदि शामिल हुए। स्मृति व्याख्यान का आयोजन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से किया गया था। कार्यक्रम का संचालन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्ट्री अभय प्रताप ने किया तथा सभी अतिथियों के प्रति आभार सुरेंद्र कुमार ने प्रकट किया।