मौजूदा दौर में बढ़ता तकनीकी साम्राज्यवाद सबसे बड़ा संकट है, जिसने मानवता के सभी हिस्सों को प्रभावित किया है, ऐसे में मीडिया की भूमिका को ज्यादा संवेदनशील और तटस्थता के साथ समझने की आवश्यकता है। आज पत्रकारिता के गांधीवादी मूल्यों को पुनः अपनाने की आवश्यकता है। वर्तमान दौर पत्रकारिता के लिए भी संक्रमण का दौर है जहां झूठी, जाली तथा भ्रामक खबरों के माध्यम से जनमानस निर्मित करने का प्रयास किया जा रहा है। यह विचार वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक रामबहादुर राय का है। वे “कोरोना संकट और परिवर्तनकारी मीडिया: संवाद एवं प्रतिवाद का विमर्श” विषय पर दो दिवसीय ऑनलाइन संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बीज वक्ता थे। ऑनलाइन संगोष्ठी डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय,सागर के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के द्वारा आयोजित था।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरपी तिवारी ने वेबिनार की विषयवस्तु को बतलाते हुए महामारी जैसे संकट के समय में मीडिया की बढ़ती भूमिका और संभावनाओं पर प्रकाश डाला। विषय प्रवर्तन करते हुए मीडिया के संदर्भ में महात्मा गांधी के विचार को उद्धृत करते हुए बताया कि बापू ने अख़बार के तीन प्रमुख दायित्व को बताया पहला, लोगों कि भावना जानना और उन्हें जाहिर करना दूसरा, लोगों में जरूरी भावनाएं पैदा करना और लोगों के दोषों को तमाम मुसीबतों के बावजूद साहस के साथ दिखाना। वर्तमान में हमें इसी तरह के निष्पक्ष तथा उत्तरदायी मीडिया की आवश्यकता है।
पाठकों का भरोसा मीडिया की सबसे बड़ी ताकत : विकास मिश्र
लोकमत समाचार-पत्र के प्रधान संपादक विकास मिश्र ने कोरोना संकट काल को एक अवसर के रूप में देखने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पाठकों का भरोसा मीडिया की सबसे बड़ी ताकत है, ऑनलाइन मीडिया एक विकल्प है, मुख्यधारा का मीडिया प्रिंट मीडिया ही है। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढी पर बड़ी ज़िम्मेदारी है जो अपने समय और भविष्य को तय करने में अहम् भूमिका निभायेंगे। उन्होंने विरासत की पत्रकारिता को साथ लेकर भविष्य निर्माण करने पर जोर दिया।
लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के बने रहने के लिए ज़रूरी है नागरिक पत्रकारिता : विनोद शर्मा
हिन्दुस्थान टाइम्स के राजनीतिक विश्लेषक विनोद शर्मा ने मीडिया के व्यवसायगत संदर्भों को रेखांकित करते हुए कहा कि मीडिया के समक्ष नई चुनौतियां इस कोरोना काल के कारण आयी है, जिसने सम्पूर्ण पत्रकारिता को पहले से अधिक जवाबदेह बनाने का प्रयास किया है। जहाँ पाठकों का स्वरुप अब ‘एक पत्रकार’ की भूमिका वाला हो गया है। यह नागरिक पत्रकारिता लोकतंत्र एवं प्रशासन को अधिक उत्तरदायी बनाती है।
भविष्य की पत्रकारिता डिजिटल होगी : नवनीत गुर्जर
दैनिक भास्कर के नेशनल एडिटर नवनीत गुर्जर ने प्रिंट बनाम डिजिटल मीडिया और इस कोरोना संकट से पैदा हुई नई चुनौतियों पर रोचक और बेबाक बातचीत की। उन्होंने कहा की आने वाला समय डिजिटल का है, जो इसमें टिक पायेगा उसी का भविष्य है लेकिन इसके साथ जुड़ा हुआ सवाल यह है कि डिजिटल के लिए राजस्व कहां से आयेगा। मीडिया को चलने के लिए सबसे बड़ी जरूरत रेवेन्यू की होती है और डिजिटल के पास इसका कोई फार्मूला अभी तक ठीक-ठीक नहीं मिल पाया है इसीलिये प्रिंट का भविष्य फिलहाल सुरक्षित है।कोरोना के दौर में अखबार के साथ सबसे बड़ी चुनौती उसके जिन्दा रहने को लेकर उभरी। कोरोना फैलने के खतरे के चलते अखबारों के सर्कुलेशन में तेजी से गिरावट आई। इसीलिये अखबारों को अपने डिजिटल संस्करण के लिए कीमत तय करनी पड़ी। उन्होंने कहा कि इस दौर में पत्रकारिता की और लोगों की देशभक्ति की प्रायोजित जांच करना घातक है। गुर्जर ने प्रिंट की विश्वसनीयता को अक्षुण्ण बताते हुए कहा कि अखबार खबर तो देता है लेकिन यह एक आदत है और इसी आदत ने उसकी विश्वसनीयता को बरकरार रखा है।
मीडिया को शिक्षा एवं बच्चों के प्रति संवेदनशील होना होगा: डॉ. संजीव
डॉ. संजीव राय ने कोरोना के दौर में शिक्षा और मीडिया की स्थिति पर अपनी बात रखी। उन्होंने लॉकडाउन और शारीरिक दूरी जैसी विषम परिस्थितियों में बच्चों की शिक्षा को एक गंभीर चुनौती बताते कहा कि सीखने की प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण तत्त्वों का इससे ह्रास हो रहा है। जो बात साथ रहकर सीखने में है वह तकनीक के जरिये संभव नहीं है और फिलहाल हमारी व्यवस्थाओं के पास इसका कोई विकल्प भी नहीं मौजूद है। हम सबको लगातार इसके विकल्प पर संवाद करना ही होगा और नए टूल्स तलाशने होंगे क्योंकि शिक्षा ही किसी राष्ट्र का सबसे बड़ा आधार है।
संकट के समय राज्य और मीडिया की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं: रामशरण जोशी
दूसरे दिन के प्रथम सत्र में वरिष्ठ समाज विज्ञानी और पत्रकार रामशरण जोशी ने लोकतंत्र, राज्य और मीडिया विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि संकट के समय हमेशा राज्य और मीडिया दोनों की भूमिकाएं और जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं। मीडिया को ज्यादा स्वायत्त होकर काम करने की जरूरत है ताकि भारतीय लोकतंत्र की गरिमा और लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं ज्यादा तत्पर होकर काम कर सकें। उन्होंने कहा की समय बदल रहा है हमें समय के साथ अपनी भूमिकाओं और नियमन में परिवर्तन लाकर मीडिया और मीडियाकर्मियों की सामाजिक सुरक्षा के प्रति भी कार्य करने की जरूरत है। कल्याणकारी राज्य और मीडिया दोनों की सहकारिता ही एक संवेदनशील समाज का निर्माण कर पायेगी।
पत्रकारिता नैतिकता का उद्यम है: बलदेव भाई
कुशाभाऊ ठाकरे राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय,रायपुर के कुलपति बलदेव भाई शर्मा ने वर्तमान दौर की पत्रकारिता पर चिंता जताते हुए कहा कि जनमानस के प्रति संवेदनशील पत्रकारिता ही वास्तविक पत्रकारिता है, जिसमे राष्ट्र के विकास की प्रेरणा अनिवार्य होना चाहिए। शर्मा ने नैतिक उत्थान के लिए एक नयी दृष्टि विकसित करने की बात कही। राष्ट्रीय गौरव बोध के साथ देश की समस्याओं को हल किया जाना चाहिए।
मीडिया सर्वहारा के मुद्दे उठाएं: डॉ. सिंह
वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र पाल सिंह ने कोरोना काल में प्रवासी मजदूर और मीडिया विषय पर अपनी बात रखते हुए बहुत विस्तार से राज्य, मीडिया, समाज और औद्योगिक घरानों की जिम्मेदारियों का भान कराया। कोरोना संकट में हो रहे मजदूरों के पलायन का समाधान जनवादी योजनाओं के निर्माण से ही किया जा सकता है। सभी राज्यों को अपने अपने स्तर पर मजदूरों के पक्ष में नीतियों को क्रियान्वित करने की आवश्यकता है। मजदूर देश के बोझ नहीं बल्कि सच्चे राष्ट्रनिर्माता है।
मीडिया में महिलाओं की भागीदारी आवश्यक: प्रो. सुषमा यादव
अंतिम सत्र में भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय, सोनीपत की कुलपति प्रो. सुषमा यादव ने कोरोना संकट के समय में महिला, मीडिया और राजनीति विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि महिलाओं के प्रतिनिधित्त्व का सवाल हमेशा से एक मुद्दा रहा है. मीडिया की जिम्मेदारी इसमें बढ़ जाती है और महत्त्वपूर्ण हो जाती है। लोकतांत्रिक समाजों में मीडिया को लोगों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। इस संकट के समय में गलत और भ्रमपूर्ण सूचनाओं ने बहुत समस्याएँ पैदा की हैं। इसमें मीडिया और राजनीतिक दोनों वर्गों की ज़िम्मेदारी बंटी है। इसमें महिलाओं, बच्चों और निर्धन वर्ग के साथ क्रूर मजाक दिखाई पड़ता है। मीडिया को और अधिक जिम्मेदार होनी आवश्यकता है। जनता के प्रति मीडिया का रुख एक जैसा होना चाहिए। राजनीति और मीडिया के वर्गों के हिसाब से संवेदनशीलता में कोई भेदभाव नहीं दिखना चाहिए। इसमें मीडिया के शोधार्थी, विद्यार्थी और मीडियाकर्मियों को सभी वर्गों का ध्यान रखते हुए काम करना चाहिए। थोपे जाने वाले समाचार नहीं प्रस्तुत होने चाहिए।
सत्य समाचार-पत्र का प्राण है: शशि शेखर
हिन्दुस्तान दैनिक के प्रधान सम्पादक शशि शेखर ने कहा कि पत्रकारिता की बारीकियों और संकट के समय पत्रकारों के साथ आने वाली चुनौतियों से लड़ने का व्यावहारिक ज्ञान साझा किया। उन्होंने बहुत सारे मीडिया संस्थानों के अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि मीडिया कर्मी हमेशा पत्रकार की भूमिका में होता, पद उसके लिए महत्त्वपूर्ण नहीं है। आने वाला वक्त मोबाइल पत्रकारिता का है। हमें सच का संवाहक बनना है। हमें आम आदमी की आवाज़ बनना है। पत्रकारिता हमेशा साहस की मांग करती है, स्वाभिमान की मांग करती है। झूठ के दौर में सच की कीमत ज्यादा होती है, हमें इसे जानना होगा। इसीलिये सच का साथ देना, सच के साथ लिखना और बोलना ही पत्रकारिता का धर्म है। सच बोलने वाले अल्पसंख्यक नहीं हैं, उनकी आवाज आवाम की आवाज बन जाती है और ऐसी आआज़ को कोई भी चुप नहीं करा सकता। नई पीढी को इसे जानने की जरूरत है। आभार ज्ञापित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.पी.तिवारी ने वर्तमान में पत्रकारिता में गिरते हुए मूल्यों की चिंता करते हुए बताया कि पत्रकारिता को मुल्यधर्मी होने की आवश्यकता है। ऐसा करके ही हम मजबूत समाज का निर्माण कर सकते है।