
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर शुक्रवार को केंद्र और यूपीएससी से जवाब मांगे हैं। याचिका में सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा के लिए नोटिस को रद्द करने और नतीजों पर इस आधार पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया गया है कि दृष्टिबाधित और विभिन्न तरह की निशक्तता वाले छात्रों के लिए समुचित सीटें आरक्षित नहीं की गयी हैं।
निशक्तों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक संगठन की याचिका पर न्यायमूर्ति डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने सामाजिक न्याय मंत्रालय, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग तथा संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को नोटिस जारी कर उनके जवाब मांगे हैं। याचिका में कहा गया है कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार कानून, 2016 के हिसाब से सीटें आरक्षित नहीं की गयी है।
इवारा फाउंडेशन ने पीठ से परिणाम पर रोक लगाने का अनुरोध किया, लेकिन अदालत ने इस आग्रह को नहीं मानते हुए कहा कि अगर फैसला उनके पक्ष में हुआ तो यूपीएससी को अपने परिणाम को फिर से घोषित करने के लिए कहा जाएगा। एक और संगठन ‘संभावना’ ने भी इसी तरह की अर्जी देते हुए परीक्षा के नोटिस को चुनौती देते हुए उसकी मुख्य याचिका पर जल्द सुनवाई का अनुरोध किया।
‘संभावना’ की ओर से पेश वकील कृष्ण महाजन और अजय चोपड़ा ने अपनी मुख्य याचिका में दावा किया कि नोटिस में दिव्यांग व्यक्तियों को आरक्षण मुहैया कराए जाने को नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने पीठ से आग्रह किया कि उसकी याचिका पर फैसला होने तक परिणाम घोषित नहीं किए जाएं।
पीठ ने अर्जी पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि सिविल सर्विसेज की मुख्य परीक्षा जनवरी से शुरू होने वाली है और सुनवाई की अगली तारीख नवंबर में है।
इवारा फाउंडेशन की ओर से पेश वकील पंकज सिन्हा, कमलेश के मिश्रा और अनुराग ओझा ने दलील दी कि दृष्टिबाधित और विभिन्न तरह की निशक्तता वालों के लिए अपर्याप्त विज्ञापित रिक्तयों के कारण इन दोनों श्रेणियों से जुड़े कुछ ही उम्मीदवार मुख्य परीक्षा के लिए सफल हो पाएंगे।