
नई दिल्ली। बात शुरू करते हैं प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद से। यह बात हमेशा कहते-सुनते आई है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। आज भी राजनीतिक पार्टियों के नेता अपने भाषणों में इसका जिक्र करते हैं। मुंशीजी ने किसान को साहित्य का विषय बनाया। उनके कथा-साहित्य में किसान-जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण हुआ है। भारत का सबसे बड़ा वर्ग किसान रहा है।
कहा जाता है कि किसान टूटे-फूटे छप्परों में रहकर भी बारिश के लिए भगवान से प्रार्थना करता है। मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में किसानों के जीवन का सजीव चित्रण तो किया ही है, साथ ही उनकी दिक्कतों को भी बखूबी बयां किया है। प्रेमाश्रम किसान-जीवन का महाकाव्य है। प्रेमचंद का यही किसान भारत को कृषि प्रधान देश बनाता है।
मौजूदा समय में केंद्र सरकार और किसानों के बीच टकराव बढ़ गया है। दो हफ्ते से अधिक समय से किसान नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सभी सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं। किसानों की एक ही मांग है कि कृषि कानूनों को वापस लिया जाए और इससे कमकुछ भी किसानों को मंजूर नहीं है।
भारत में कृषि सुधार की मांग वर्षों से की जा रही थी। वर्तमान की मोदी सरकार ने किसान, कृषि के सुधार के लिए संसद में तीन विधेयकों को पारित किया। संसद में पास होने से पहले ही इन तीनों विधेयकों का विरोध विभिन्न किसान संगठनो के द्वारा किया गया जो अभी भी जारी है। इन विरोधों का केंद्र मुख्यत: पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान हैं।
इन कानूनों को लेकर किसान संगठनों के मन में कुछ प्रश्न है जिनके जवाब उन्हें निश्चित तौर पर मिलने चाहिए। किसानों में न्यूनतम समर्थन मूल्य, मंडियो के ख़त्म होने का भय, वहीं, खेती का उद्योगपतियों के हाथों में जाने और कृषि में उनकी दख़ल को लेकर भी डर है।
सरकार बार-बार दावा कर रही है कि इस अध्यादेश से किसान अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बेच सकते हैं। इस अध्यादेश में कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है। सरकार किसानों से धान-गेहूं की खरीद पहले की ही तरह करती रहेगी और किसानों को एमएसपी का लाभ पहले की तरह देती रहेगी।
इन कानूनों को लेकर सबसे ज्यादा विपक्ष सरकार पर हमलावर है। वैसे कभी कांग्रेस भी ऐसे कानूनों की हिमायती रही है लेकिन विपक्ष हमेशा सरकार के नियम और योजनाओं की आलोचना करती आई है। यह भी एक कड़वा सत्य है कि बहुत कम किसान ही अपनी फसलों को मंडियों में बेचते हैं।
लागू नहीं हुईं स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें
दिल्ली की सीमाओं पर डेट किसान इस नए कृषि कानून को वापस लिए जाने पर अडिग हैं तो दूसरी ओर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को भी लागू करने की मांग तेज हो गई है। किसानों की आर्थिक हालात को सुधारने के मकसद से साल 2004 में केंद्र सरकार ने एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स का गठन किया था।
इसे ही स्वामीनाथन आयोग कहा जाता है। इस आयोग ने सरकार को अपनी पांच रिपोर्ट सौंपी। अयोग की सिफारिशों में किसान आत्महत्या की समस्या के समाधान, राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने व वित्त-बीमा की स्थिति पुख्ता बनाने पर भी विशेष जोर दिया गया है।
कानून वापस ले सरकार तो लौट जाएंगे किसान
किसानों की साफ मांग है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले और सभी किसान वापस चले जाएंगे। अब तक किसान संगठनों और सरकार के बीच पांच दौर की वार्ता बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गई। छठें दौर की वार्ता को खुद केंद्र सरकार ने रद्द कर दिया था। अब किसान अपनी मांगों को लेकर व्यापक स्तर पर रणनीति बनाने में जुट गए हैं। उन्होंने घोषणा की है कि यदि सरकार ने उनकी मांग नहीं मानी तो वे देश के सभी टोल फ्री करने के साथ ही नेशनल हाईवे और रेलवे ट्रैक जाम कर देंगे।