नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की जरूरत क्यों पड़ी? आइए जानते है कि यह किस प्रकार पुरानी शिक्षा नीति से अलग है


जब से हमारा देश आजाद हुआ है तब से लेकर आज तक शिक्षा को लेकर अनेक विमर्श किए गए हैं इन विमर्श परिणाम स्वरूप हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में समय-समय पर अनेक बदलाव किया गया। परंतु यह बदलाव शायद हमारे शिक्षा तंत्र को पूरी तरीके से मजबूत करने में अभी तक असफल साबित हुआ हैं।


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जब से हमारा देश आजाद हुआ है तब से लेकर आज तक शिक्षा को लेकर अनेक विमर्श किए गए हैं इन विमर्श परिणाम स्वरूप हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में समय-समय पर अनेक बदलाव किया गया। परंतु यह बदलाव शायद हमारे शिक्षा तंत्र को पूरी तरीके से मजबूत करने में अभी तक असफल साबित हुआ हैं। इन्हें सफल साबित करने के लिए शिक्षा क्षेत्र में व्यापक बदलावों के लिए केंद्र सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है। करीब तीन दशक के बाद देश में नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी गई है। एक लंबा वक्त बीत चुका है। उम्मीद की जा रही है कि यह देश के शिक्षा क्षेत्र में नए और बेहतर परिवर्तनों की शुरुआत करेगी। आइए जानते हैं कि आखिर देश की शिक्षा प्रणाली को बदलने के लिए इस नीति की जरूरत क्यों पड़ी?

देश में कब कब राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई?

भारत की आजादी के बाद शिक्षा से जुड़ी सिर्फ दो राष्ट्रीय नीति लाई गईं। मौजुदा केंद्र सरकार द्वारा मंजूर की गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से पूर्व देश में मुख्य रूप से सिर्फ दो ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति अब तक आई थीं। स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1968 में पहली शिक्षा नीति की घोषणा की गई। यह कोठारी कमीशन (1964-1966) की सिफारिशों पर आधारित थी। इस नीति को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने लागू किया था। इसका मुख्य उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना और देश के सभी नागरिकों को शिक्षा मुहैया कराना था। बाद के वर्षों में देश की शिक्षा नीति की समीक्षा की गई। वहीं देश की दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति मई 1986 में मंजूर की गई, जिसे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार लेकर आई थी। इसमें कंप्यूटर और पुस्तकालय जैसे संसाधनों को जुटाने पर जोर दिया गया। इस नीति को 1992 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने आगे चल कर संशोधित किया। आइए सबसे पहले जानते हैं कि इन दोनों शिक्षा नीतियों में शिक्षा को लेकर किस प्रकार के प्रावधान किए गए थे जो मौजूदा समय में बदलाव की मांग करते हैं।

आइए सबसे पहले राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 को समझते है

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 45 के अनुसार, 14 वर्ष के आयु तक अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा होनी चाहिए। यह सुनिश्चित हो कि नामांकन के बाद हर बच्चा बीच में पढ़ाई न छोड़े। इस नीति में भारतीय भाषाओं के साथ ही विदेशी भाषाओं के विकास पर भी जोर दिया गया था। तीन भाषा का फॉर्मूला पेश किया जाना चाहिए, जिसमें माध्यमिक स्तर पर एक छात्र को हिंदी और अंग्रेजी के साथ ही अपने क्षेत्र की भाषा को जानना चाहिए। देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के निर्धारण के लिए शिक्षक सबसे महत्वपूर्ण होता है इसलिए उन्हें समाज में सम्मान मिलना चाहिए। इसके लिए उनकी योग्यता और प्रशिक्षण बेहतर होना चाहिए। साथ ही उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर लिखने, पढ़ने और बोलने की आजादी होनी चाहिए। देश के प्रत्येक बच्चे को चाहे उसकी जाति, धर्म या क्षेत्र कुछ भी हो शिक्षा प्राप्ति का समान अवसर होना चाहिए। शिक्षा सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों के बच्चों, लड़कियों और शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में मुख्य बदलाव के साथ लागू किया गया

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 को 1992 में पेश किया गया। इसमें देश में शिक्षा के विकास के लिए व्यापक ढांचा पेश किया गया। शिक्षा के आधुनिकीकरण और बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने पर जोर रहा। पिछड़े वर्गों, दिव्यांग और अल्पसंख्यक बच्चों की शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। इस शिक्षा नीति में प्राथमिक स्तर पर बच्चों के स्कूल छोड़ने पर रोक लगाने पर जोर दिया गया और कहा गया कि देश में गैर औपचारिक शिक्षा के नेटवर्क को पेश किया जाना चाहिए। साथ ही 14 वर्ष की आयु के बच्चों की शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए। महिलाओं के मध्य अशिक्षा की दर को कम करने के लिए उनकी शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए। उन्हें विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में प्राथमिकता दी जाए। साथ ही व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा में उनके लिए विशेष प्रावधान किए जाएंगे। संस्थानों को आधारभूत संरचना जैसे कंप्यूटर, पुस्तकालय जैसे संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे। छात्रों के लिए आवास विशेष रूप से छात्राओं को आवास उपलब्ध कराए जाएंगे। शैक्षिक विकास की समीक्षा करने और शिक्षा सुधार के लिए आवश्यक परिवर्तनों के निर्धारण में केंद्रीय सलाहकार बोर्ड ऑफ एजुकेशन महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। गैर सरकारी संगठनों को देश में शिक्षा की सुविधा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

नई शिक्षा नीति क्यों लागू की जा रही है? 

नई शिक्षा नीति लागू करने के पीछे सरकार का सबसे बड़ा तर्क यह है कि यह शिक्षा नीति भारतीय शिक्षा पद्धति में एक नया बदलाव ला सकती है। सरकार तथा विशेषज्ञो का यह मानना है कि इस नई शिक्षा नीति को कुछ इस तरह से बनाया गया है कि यह 21 वीं सदी के उद्देश्यों को पूरा करे साथ ही भारत की परंपराओं और वैल्यू सिस्टम से भी सुसंगत हो। इसको भारत के एजुकेशन स्ट्रक्चर के सभी पहलुओं को ध्यान में रख के बनाया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति इंडिया सेंट्रिक है जिससे समाज के सभी वर्गों तक समान तरीके से आधुनिक नॉलेज पहुंचाया जा सके। यह सभी लोगों को उच्च स्तरीय शिक्षा देने में विश्वास रखता है।

नई शिक्षा नीति के कुछ खास बिंदु

इस नई शिक्षा नीति का उद्देश्य प्री-प्राइमरी एजुकेशन (3 से 5 साल के बच्चों के लिए) सभी के लिए 2025 तक उपलब्ध कराना है। इसके जरिए आधारभूत साक्षरता और अंको का ज्ञान सभी को उपलब्ध कराना लक्ष्य होगा। साल 2030 तक 3 से 18 साल तक के आयु वर्ग के सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराई जाए। नई एजुकेशन पॉलिसी के तहत नया करीकुलर और शैक्षणिक स्ट्रक्चर को लागू किया जाएगा। बच्चों को आर्ट्स, साइंस, स्पोर्ट्स, ह्यूमनिटीज़ और वोकेशनल विषयों के बीच चुनने की ज्यादा छूट दी जाएगी। स्थानीय भाषा में शिक्षा। सभी स्टूडेंट्स को स्कूल के सारे स्तरों पर फिजिकल ऐक्टिविटी और एक्सरसाइज में शामिल होंगे। राज्य स्तरीय स्वतंत्र स्टेट स्कूल रेग्युलेटरी अथॉरिटी बॉडी को बनाया जाएगा। यह इकाई हर राज्य के लिए होगी। एक नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की जाएगी ताकि अलग अलग क्षेत्रों में रिसर्च के प्रस्तावों की फंडिंग की जा सके। नई शिक्षा नीति के तहत राष्ट्रीय शिक्षा आयोग भी बनाया जाएगा जिसका भारत के प्रधानमंत्री इसकी अध्यक्षता करेंगे। यह देश में शिक्षा के विकास, मूल्यांकन और नीतियों लागू करने का काम करेगा। देखना दिलचस्प होगा कि नई शिक्षा नीति पुराने शिक्षा नीति की अपेक्षा कितना प्रभावी साबित होती है।



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