घरों पर लोगों ने किया अलविदा नमाज, तकरीर करते शाही इमाम के आंसू छलके


कोरोना महामारी के चलते दिल्‍ली की जामा मस्जिद में शुक्रवार का नजारा बेहद
अलग था। आमतौर पर हर जुमे को यहां भारी भीड़ होती है। पर रमजान का आखिरी
जुमा के वक्त बहुत कम लोग मस्जिद में मौजूद थे।



नई दिल्‍ली। कोरोना महामारी के चलते दिल्‍ली की जामा मस्जिद में शुक्रवार का नजारा बेहद अलग था। आमतौर पर हर जुमे को यहां भारी भीड़ होती है। पर रमजान का आखिरी जुमा के वक्त बहुत कम लोग मस्जिद में मौजूद थे।  इस बार कोरोना वायरस ने कई बंदिशें लगा दी हैं। धार्मिक स्‍थल बंद हैं। ऐसे में अलविदा की नमाज में जामा मस्जिद के कर्मचारी और शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के परिवार के कुछ सदस्‍य ही शामिल हुए। बुखारी अपनी तकरीर के दौरान थोड़ा भावुक हो गए और रुमाल से अपने आंसू पोछते दिखाई दिए। वहीं दिल्‍ली में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने सरकारी गाइडलाइंस के अनुसार, घरों के भीतर नमाज पढ़ी।


अलविदा नमाज पर दिखा लाॅकडाउन का असर

दिल्‍ली की जामा मस्जिद में हर जुमे पर सैकड़ों-हजारों की संख्‍या में लोग जुटा करते हैं। इधर पिछले दो महीने से लॉकडाउन की वजह से यह सिलसिला थम गया है। लॉकडाउन के दौरान जामा मस्जिद के गेट बंद ही रहे हैं, कोई भी बाहर से नमाज अदा करने नहीं आ रहा है। ईद से ठीक पहले पड़ने वाले आखिरी जुमे को मस्जिद में सन्‍नाटा रहा। शुक्रवार को जामा मस्जिद के स्‍टाफ और शाही इमाम के परिवार ने सोशल डिस्‍टेंसिंग के मानकों का पालन करते हुए अलविदा की नमाज अदा की। बुखारी ने अपनी तकरीर में देश की सलामती की दुआ की।
शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने कहा,  देर शाम जामा मस्जिद के शाही इमाम ने कहा कि बड़ी संख्या में लोग जामा मस्जिद में नमाज अदा करना चाहते थे, लेकिन उनसे कहा गया कि वह घर पर नमाज अदा करें और उन्होंने ऐसा ही किया। शुक्रवार को जुमे की नमाज पर जामा मस्जिद के स्टाफ और कुछ ही सदस्यों ने नमाज अदा की। इस दौरान फिजिकल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह से पालन किया गया।


उलेमाओं ने की थी अपील

लॉकडाउन का पालन करते हुए मुस्लिम समुदाय अलविदा जुमा की नमाज के लिए घरों से नहीं निकला। तमाम उलेमाओं ने बयान जारी करके लोगों को यह बताया था कि अलविदा जुमा पर घरों में कैसे नमाज अदा करनी है। इसको मानते हुए लोगों ने घरों में ही नमाज अदा की। दिल्ली की तमाम छोटी-बड़ी मस्जिदें जहां अलविदा जुमा की नमाज के वक्त पैर रखने की जगह नहीं मिलती थीं, वहां भी लोग नमाज के लिए नहीं पहुंचे।



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