कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा संचालित “मुक्ति कारवां” ने लॉकडाउन की वजह से बिहार में बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए जन-जागरुकता अभियान शुरू किया है। यह अभियान बिहार के उन 10 जिलों के 1000 से अधिक गांवों में चलाया जाएगा जो बाल दुर्व्यापार के दृष्टिकोण से अत्यधिक संवेदनशील हैं। गौरतलब है कि केएससीएफ की सहयोगी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने पिछले सालों इन्हीं गांवों के बाल दुर्व्यापार के शिकार सबसे अधिक बच्चों को मुक्त कराया था। मुक्ति कारवां एक सचल दस्ता होता है, जो गांवों और दूर-दराज के इलाकों में घूमकर बाल दुर्व्यापार, बाल मजदूरी, बाल विवाह और बाल यौन शोषण जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जन जागरुकता फैलाने का काम करता है। पूर्व में बाल मजदूर रह चुके नौजवान इसका संचालन करते हैं। मुक्ति कारवां अभियान को डिजिटल माध्यम के जरिए लॉच किया गया।
मुक्ति कारवां द्वारा यह जन-जागरुकता अभियान बिहार के सीतामढ़ी, गया, समस्तीपुर, कटिहार, पूर्वी चम्पारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, अररिया और पूर्णिया में चलाया जाएगा। अगले छह महीने तक चलने वाले इस अभियान का संचालन पूर्व में बाल मजदूर रह चुके नौजवान करेंगे।
कोरोना महामारी की वजह से मुक्ति कारवां जागरुकता अभियान के तौर-तरीकों में इस बार बदलाव किया गया है। नौजवान लॉकडाउन खत्म होने तक डिजिटल माध्यमों के जरिए ग्राम पंचायतों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन के संपर्क में रहेंगे। जैसे ही लॉकडाउन खत्म होता है वे लोगों के बीच पहुंचने के लिए सचल दस्ता की जगह सरकार की गाइडलाइन का पालन करते हुए साईकिल का उपयोग करेंगे और बाल दुर्व्यापार के खिलाफ जन-जागरुकता फैलाएंगे। मानव दुर्व्यापार हथियार और ड्रग्स के बाद दुनिया का सबसे बड़ा संगठित अपराध है। बाल दुर्व्यापार यानी बच्चों की खरीद-फरोख्त मुख्यरूप से बाल मजदूरी, बाल वेश्यावृत्ति, भीखमंगी और बाल विवाह आदि के लिए किया जाता है। बाल दुर्व्यापार के मामले में बिहार देश के सबसे संवेदनशील राज्यों में से एक है।
बीबीए ने अपने अध्ययन में यह पाया कि उसने दिल्ली एनसीआर में अपने छापामारी अभियान के जरिए जितने बच्चों को जबरिया बाल मजदूरी से मुक्त कराया है, उनमें आधे से ज्यादा करीब 54 फीसदी संख्या बिहार के बच्चों की थी। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2018 में बिहार से सबसे ज्यादा बच्चों का दुर्व्यापार किया गया। कुल 1170 लोगों का दुर्व्यापार किया गया, जिनमें बच्चों की संख्या 539 थी। जबकि 2017 में बिहार बाल दुर्व्यापार के मामले में तीसरे स्थान पर था।
मुक्ति कारवां की टीम लोगों से संपर्क करके बाल श्रमिकों, दुर्व्यापार किए गए बच्चों और लापता बच्चों की पहचान करेगी। डोर-टू-डोर सर्वे करके वे डाटा इकट्ठा करेगी। बाल दुर्व्यापारियों की पहचान करते हुए उन्हें सजा दिलाएगी। वह कानून प्रवर्तन एजेंसियों, बाल संरक्षण समितियों-बाल दुर्व्यापार विरोधी ईकाईयों (एएचटीयू) और स्थानीय प्रशासन के साथ तालमेल बिठाते हुए बाल श्रम और दुर्व्यापार मुक्त गांव बनाने की दिशा में भी काम करेगा। मुक्ति कारवां बाल दुर्व्यापार से संबंधित कानूनी जानकारियों और पुनर्वास से संबंधित सरकारी योजनाओं की भी लोगों को जानकारी देगा। अभियान का एक बड़ा उद्देश्य यह है कि यह बिहार के 10 जिलों के 1000 गांवों को बाल श्रम से मुक्त करने के लिए 1000 स्वयंसेवक को तैयार करेगा।
मुक्ति कारवां के जागरुकता अभियान की लॉचिंग पर बिधानचंद्र सिंह ने कहा,‘‘लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूरों की बिहार वापसी और बाढ़ से राज्य में बाल दुर्व्यापार की आशंका बढ़ गई है। ऐसे में इस बुराई के खिलाफ पूर्व बाल मजदूरों और युवाओं द्वारा इसका नेतृत्व किया जाना ऐतिहासिक है। बाल मजदूरी और दुर्व्यापार का दंश झेल चुके युवाओं के हाथों में जब अभियान की कमान होगी, तब वे बेहतर तरीके से इस समस्या का निपटान करेंगे और हमारा अभियान सफल होगा। हम सरकार के उन सभी प्रयासों का भी समर्थन करते हैं जो राज्य को बाल श्रम और बाल दुर्व्यापार से मुक्ति की ओर ले जाता है।’’
मुक्ति कारवां के नेतृत्वकर्ताओं में एक पूर्व बाल मजदूर अरविंद कुमार शर्मा का कहना है, ‘‘आज से तकरीबन 12 वर्ष पहले एक होटल से मुझे बीबीए के कार्यकर्ताओं ने मुक्त कराया था। मैंने शोषण और गुलामी की जिंदगी देखी है। मैं नहीं चाहता कि किसी दूसरे बच्चों के साथ भी ऐसा हो। इसीलिए इस अभियान में अपना पूर्ण योगदान दे रहा हूं ताकि हर बच्चे को उसका अधिकार मिले और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।’’