नई दिल्ली। केन्द्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि यह सोच गलत है कि निर्वाचन आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पैनल में महज न्यायपालिका से किसी की मौजूदगी पारदर्शिता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करेगी।
न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ को केन्द्र की ओर से उपस्थित हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘‘यह पूर्वधारणा की महज न्यायपालिका की मौजूदगी से स्वतंत्रता और निष्पक्षता हासिल की जा सकती है, यह संविधान की गलत व्याख्या है। न्यायपालिका से किसी की महज मौजूदगी पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी, यह गलत बयान है।’’
इस पीठ में न्यायमूर्ति जोसेफ के अलावा न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार भी हैं। मेहता ने पीठ से कहा कि याचिकाकर्ता का प्र्रस्ताव कि निर्वाचन आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए कानून नहीं होने की स्थिति में, एक कोलेजियम जैसी प्रणाली बनायी जाए, जिसमें भारत के प्रधान न्यायाधीश को सदस्य बनाया जाए।
उन्होंने कहा, ‘‘यह अदालत यह नहीं की सकती है कि कानून की अनुपस्थिति में, यह कानून होना चाहिए क्योंकि अदालत संविधान की बातें कर रही है, वैधानिकता की नहीं।’’
न्यायमूर्ति रस्तोगी ने मेहता से पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि कानून की अनुपस्थिति में एक प्रक्रिया से जो भी नियुक्तियां की जा रही हैं, वे सभी उचित हैं।
मेहता ने जवाब दिया, ‘‘हां, संवैधानिक प्रस्ताव के अनुसार, कार्यपालिका की स्वतंत्रता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता, दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। अधिकारों का विकेन्द्रीकरण अनुच्छेद-14 से शुरू होता है, जिसका अर्थ है कि संविधान की नजर में राज्य के सभी अंग समान हैं।’’
न्यायमूर्ति जोसेफ ने मेहता के समक्ष इंगित किया कि सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया में भारत के प्रधान न्यायाधीश भी सम्मिलित हैं, ऐसे में वह लोकतंत्र के लिए क्या मायने रखता है।
उन्होंने कहा, ‘‘इस अदालत ने फैसला सुनाया और कार्यपालिका ने उसे स्वीकार किया।’’ 1997 के विनीत नारायण मामले का जिक्र करते हुए उन्होंने उक्त बात कही, जिसमें सीबीआई निदेशक की नियुक्ति की बात थी।
मेहता ने जवाब दिया, विनीत नारायण मामले से पहले सीबीआई का निदेशक सिर्फ एक अधिकारी हुआ करता था और कानून में इसकी रिक्ति थी कि उस व्यक्ति का चयन कैसे किया जाए।
उन्होंने कहा, ‘‘उनका चयन सर्वोच्च संवैधानिक पदाधिकारियों की भांति नहीं है। इसलिए इस अदालत ने हस्तक्षेप किया था।’’
उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की मौजूदा प्रक्रिया को नियुक्ति के पहले ही जवाबदेह नहीं बनाया जा सकता है।
‘‘निष्पक्ष और अच्छे व्यक्तित्व वाले’’ मुख्य निर्वाचन आयुक्त के महत्व को रेखांकित करते हुए शीर्ष अदालत ने यह जानना चाहा कि अगर शिकायत के बावजूद मुख्य निर्वाचन आयुक्त प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई ना करे तो यह ‘‘प्रणाली के पूरी तरह ध्वस्त होने’’ की स्थिति नहीं होगी।