उत्तराखंड त्रासदी: समय बीतने के साथ खत्म होती जा रही ‘सांसे’ चलने की उम्मीद !

लापता हुए लोगों की युद्धस्तर पर तलाश की जा रहे है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है वैसे-वैसे लापता लोगों के ज़िंदा मिलने की उम्मीद भी कम होती जा रही है। तपोवन सुरंग से अब तक 32 लोगों के शव निकाले जा चुके हैं, जबकि 200 से ज्यादा लापता हैं।

नई दिल्ली। उत्तराखंड में आई त्रासदी ने आज से आठ साल पहले देवभूमि में हुई तबाही की यादें ताजा कर दी हैं। उत्तराखंड के चमोली जिले की ऋषिगंगा में रविवार को आई जल प्रलय ने भारी तबाही मचाई है। घटना के तीन दिन बीत जाने के बाद भी वहां लापता हुए लोगों की युद्धस्तर पर तलाश की जा रहे है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है वैसे-वैसे लापता लोगों के ज़िंदा मिलने की उम्मीद भी कम होती जा रही है। तपोवन सुरंग से अब तक 32 लोगों के शव निकाले जा चुके हैं, जबकि 200 से ज्यादा लापता हैं।

ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट पर काम कर रहे लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी सहित राज्य की स्थानीय पुलिस लगातार बचाव कार्य में लगी हुई है। सुरंग में अत्यधिक मलबा जमा हो जाने के कारण उसे हटाने में काफी दिक्कत हो रही है। ऐसे में लापता लोगों के सांसों की डोर भी टूटती जा रही है। पूरा देश इस त्रासदी में लापता हुए लोगों के सुरक्षित होने की प्रार्थना कर रहा है। फ़िल्मी हस्तियों ने भी इस त्रासदी पर दुःख जताया है।

संभावना यह जताई जा रही है कि इस घटना का कारण नंदादेवी बायोस्फेयर क्षेत्र में ऋषिगंगा के जलागम क्षेत्र में एवलांच अथवा ग्लेशियर लेक फटना है। इस क्षेत्र में एनटीपीसी का प्रोजेक्ट भी चल रहा है। यह भी संभावना है कि इस दौरान कोई अवरोध पैदा हुआ हो और इस अवरोध के हटने के कारण यह घटना हुई हो।

इस बीच उत्तराखंड के चमोली में आए इस आपदा को लेकर नई बात सामने आई है। 13 हजार फीट की ऊंचाई पर हुए भूस्खलन के बाद भारी चट्टानों के टूटने, लाखों टन बर्फ के खिसकने और फिर चट्टानों व बर्फ दबाव से नीचे हैंगिंग ग्लेशियर टूटने को इसका कारण माना जा रहा है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की दो टीमों के शोध में प्रथम दृष्टया यह बात सामने आई है।

बताया जाता है कि अचानक आए जल प्रवाह में भारी मात्रा में बोल्डर, मिट्टी व बर्फ होने की वजह से भयावह आपदा आई और भारी नुकसान हुआ। संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम एरियल सर्वे करने के साथ ही उन स्थानों पर भी जाने की कोशिश कर रही है, जहां से आपदा की शुरुआत हुई।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून के वैज्ञानिकों के शोध में यह भी सामने आई है कि भारी मात्रा में मलबा नीचे आया, जिसके चलते ऋषिगंगा नदी का प्रवाह थोड़ी देर के लिए रुक गया था। लेकिन बाद में ऊपरी हिस्से से आए और मलबे ने इस बाधा को तोड़ दिया और फिर नीचे भारी तबाही हुई।

First Published on: February 10, 2021 2:05 PM
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