भारत में हर साल अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिन मनाया जाता है। महर्षि वाल्मीकि, जिन्होंने पवित्र ग्रंथ रामायण की रचना की थी, साथ ही यह भी कहा जाता है कि दुनिया में सबसे पहले श्लोक की रचना भी महिर्ष वाल्मीकि ने की थी।
देशभर में वाल्मीकि जयंती पर कई सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। वहीं इस पर्व को वाल्मीकि समाज के साथ पूरा हिंदू समाज भी बड़े ही धूमधाम से मनाता है।
इस दिन के खास अवसर पर पीएम नरेंद्र मोदी ने सभी देशवासियों को महर्षि वाल्मीकि जयंति पर शुभकामनाएं दी हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि समाज के सशक्तीकरण पर उनका जोर प्रेरणादायक है।
पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा,‘‘ वाल्मीकि जयंती पर मैं महर्षि वाल्मीकि को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं। हम अपने समृद्ध अतीत और गौरवशाली संस्कृति को संजोने में उनके महत्वपूर्ण योगदान को याद करते हैं। सामाजिक सशक्तीकरण पर उनका जोर देना हमें प्रेरणा देता है।’’
I bow in reverence to Maharishi Valmiki on the special occasion of Valmiki Jayanti. We recall his seminal contributions towards chronicling our rich past and glorious culture. His emphasis on social empowerment keeps inspiring us. pic.twitter.com/Q9NMTEkzwt
— Narendra Modi (@narendramodi) October 20, 2021
वाल्मिकी जयंति का महत्व
प्राचीन ग्रंथों में एक कथा के अनुसार, सतयुग में भगवान श्रीराम की पत्नी सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में शरण ली थी। उन्हीं के आश्रम में ही माता सीता ने लव-कुश को जन्म दिया था। जहां दोनो भाईयों ने वाल्मीकी जी से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की। जिस वजह से हिंदू समाज में महर्षि वाल्मीकि जी के स्थान का विशेष महत्व है।
धार्मिक ग्रंथों में इस बात का भी वर्णन है कि, वाल्मीकि जी के पास बहुत मजबूत ध्यान शक्ति थी। कहा जाता है कि एक बार वाल्मीकी जी ध्यान में ऐसे लीन हुए कि उन्हें समय का अंदाजा तक नहीं हुआ और बढ़ते समय के साथ दीमकों ने उनके शरीर पर अपना घर बना लिया। जिसका उनके ध्यान पर कोई फर्क नहीं पड़ा और सहजता से वह अपने ध्यान में लगे रहे।
वाल्मीकि से जुड़ा इतिहास
महर्षि वाल्मीकि जी को लेकर कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं। जिनके अनुसार वाल्मीकि अपने शुरुआती जीवन में एक डाकू हुआ करते थे, जिनका नाम रत्नाकर था। फिर एक दिन ऐसा मोड़ आया, जब नारद मुनि की बात सुनकर उनका हृदय परिवर्तन हो गया। जिस क्षण से ही उन्होंने अनैतिक कार्यों को छोड़ दिया और राम नाम में लीन होकर तपस्वी बन गए। उनकी इसी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने वाल्मीकी को ज्ञानवान होने का वरदान दिया। जिसके बाद वह रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि के नाम से जाने गए और उन्होंने रामायण की रचना की।