देश की महत्वाकांक्षाओं को कुचल सकता है जल संकट, प्रबंधन के अभाव में गहरा रही है समस्या


भारत में जल संकट बढ़ता जा रहा है, क्योंकि तेज आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के बीच पानी की खपत बढ़ रही है। यह सॉवरेन क्रेडिट के साथ-साथ कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों एवं इस्पात निर्माण जैसे पानी की भारी खपत वाले क्षेत्रों के लिए भी नुकसानदेह है।


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जो लोग पर्यावरण कार्यकर्ताओं को ‘झोलावाला’ या भारत के आर्थिक विकास को पटरी से उतारने वाला मानते हैं, और जो भारत में बढ़ते जल संकट के संबंध में दी जा रही चेतावनियों को नजर अंदाज करते हैं, उन्हें ध्यान देने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न जल संकट, जो पानी के अंधाधुंध उपयोग के कारण और गहरा गया है, जिसके प्रति भारतीय पर्यावरणविद लगातार चेताते रहे हैं, सिर्फ पर्यावरण या स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है, बल्कि एक गंभीर आर्थिक मुद्दा भी है, जो 1.4 अरब की आबादी वाले इस देश की महत्वाकांक्षाओं को कुचल सकता है। अभी भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और 2024 में भी इसके तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। लेकिन भारत की आकांक्षाएं कई कारकों पर निर्भर करती हैं, जिनमें पानी भी एक है।

मूडीज रेटिंग की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘भारत में जल संकट बढ़ता जा रहा है, क्योंकि तेज आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के बीच पानी की खपत बढ़ रही है। यह सॉवरेन क्रेडिट के साथ-साथ कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों एवं इस्पात निर्माण जैसे पानी की भारी खपत वाले क्षेत्रों के लिए भी नुकसानदेह है।’ ‘सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग’ किसी देश या संप्रभु इकाई की ऋण पाने की क्षमता का एक स्वतंत्र मूल्यांकन है, जो यह भी बताता है कि उस देश में निवेश करना कितना जोखिम भरा हो सकता है।

जलवायु परिवर्तन के समय में जल संकट जैसे कारक, इससे होने वाली भारी मानवीय पीड़ा के अलावा आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। तीव्र औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के साथ भारत का तेज आर्थिक विकास दुनिया की इस सबसे बड़ी आबादी वाले देश में पानी की उपलब्धता को कम कर रहा है। जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल उपलब्धता 2031 तक घटकर 1,367 क्यूबिक मीटर रह जाने की आशंका है, जो 2021 में पहले से ही कम 1,486 क्यूबिक मीटर थी। 1,700 क्यूबिक मीटर से कम का स्तर जल संकट को ही दर्शाता है, जिसमें पानी की कमी की सीमा 1,000 क्यूबिक मीटर है।

जलवायु परिवर्तन के कारण चरम जलवायु घटनाओं, जैसे सूखा, लू, बाढ़ की आवृत्ति, गंभीरता या अवधि में वृद्धि से स्थिति और भी बदतर हो जाएगी, क्योंकि भारत पानी के लिए मानसून पर ज्यादा निर्भर है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज का कहना है कि ‘जलापूर्ति में कमी से कृषि उत्पादन और औद्योगिक संचालन में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जिसके चलते खाद्य महंगाई बढ़ेगी और इससे प्रभावित व्यवसायों एवं समुदायों की आय में कमी होगी, जिससे सामाजिक अशांति भी फैल सकती है। यह भारत के विकास को अस्थिर और आर्थिक झटकों को झेलने की भारत की क्षमता को कमजोर कर सकता है।’

भारत में नदियों और भूजल के लगभग 70 प्रतिशत पानी का उपयोग कृषि कार्यों में किया जाता है। लेकिन कुछ उद्योग भी पानी की ज्यादा खपत करते हैं। मूडीज के अनुसार, औद्योगिक क्षेत्र में कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्र और स्टील निर्माता उत्पादन के लिए पानी पर बहुत ज्यादा निर्भर होते हैं। बढ़ता जल संकट उनके संचालन को बाधित कर सकता है और उनकी कमाई को कम कर सकता है, जिससे उनकी कर्ज चुकाने की क्षमता भी खत्म हो सकती है। ये चेतावनियां ऐसे समय आई हैं, जब देश के कई हिस्से पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं।

दिल्ली और बंगलूरू जैसे महानगरों से पानी के लिए संघर्ष और सरकारी बोरवेल से पानी निकालने वाले टैंकर माफिया के बारे में जमीनी स्तर से कई खबरें आ रही हैं। भारत में भूजल रिचार्ज चालू वर्ष में 449 अरब क्यूबिक मीटर (बीएमसी) तक पहुंच गया है, जो 2004 के बाद से अधिकतम है और 2022 की तुलना में 11.5 बीएमसी ज्यादा है, जैसा कि केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा कराए गए भारत के गतिशील भूजल संसाधनों के राष्ट्रीय संकलन, 2023 में बताया गया है। लेकिन रिपोर्ट यह भी बताती है कि भूजल का दोहन कई जगहों पर चिंता का विषय बना हुआ है, जहां रिचार्ज किए जाने से ज्यादा पानी जमीन के अंदर से नलकूपों के जरिये निकाला जाता है।

सिंचाई तथा शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू जलापूर्ति के कारण भूजल की कमी ने भारत को खतरनाक स्थिति में डाल दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘देश में कुल 6,553 मूल्यांकन इकाइयों (ब्लॉक/ मंडल/ तालुका) में से, विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 736 इकाइयों (11.23 फीसदी) को ‘अति-शोषित’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो दर्शाता है कि भूजल दोहन वार्षिक भूजल रिचार्ज से अधिक है।’ रिपोर्ट में बताया गया है कि, ‘अति-दोहन वाली मूल्यांकन इकाइयां ज्यादातर देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में केंद्रित हैं, जिनमें पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं, जहां भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है।’ साथ ही, यह भी कहा गया है कि देश के कुछ क्षेत्रों में कुछ आशाजनक संकेत भी हैं -निरंतर अच्छी वर्षा और सरकारी व निजी पहलों के माध्यम से भूजल संवर्धन और संरक्षण उपायों के चलते भूजल की स्थिति में सुधार हुआ है।

मूडीज की रिपोर्ट में पानी से संबंधित आधारभूत संरचनाओं में सरकारी निवेश और नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के सरकारी प्रयासों को सकारात्मक बताया गया है। इन पहलों से पानी पर आधारित कोयला ऊर्जा पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।

लेकिन सरकार और अन्य लोगों को अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। मिलेट्स (मोटा अनाज) जैसी कम पानी की जरूरत वाली फसलों को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण होगा। हमें यह समझना होगा कि पेड़ों को काटने और लगभग पूरे शहर में जमीन को सीमेंट-कंकरीट से ढकने से वर्षा जल जमीन के अंदर नहीं जा पाता है और जमीन में जमा नहीं हो पाता है। जलवायु परिवर्तन के दौर में, अगर हम पानी का विवेकपूर्ण प्रबंधन नहीं करते और यदि भूजल का अंधाधुंध दोहन बंद नहीं करते, तो कोई भी विजेता नहीं होगा।