ट्रंप, मोदी और बोलसोनारो पर क्यों भारी हैं मर्केल और मैक्रों


कोरोना कंट्रोल को लेकर ब्राजील, अमेरिका और भारत की रणनीति लगभग एक तरह की है। तीनो देशों ने इस बीमारी से निपटने को लेकर शुरूआती तैयारी नहीं की। एकाएक संकट आने के बाद तीनों देशों में रणनीति बनायी गई। तीनों मुल्कों में मरीजों के लिए जरूरी बेड, वेंटिलेटर की कमी नजर आयी। वहीं तीनों मुल्कों में डॉक्टर और हेल्थ वर्कर अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी पीपीई किट की कमी से जूझते रहे।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
देश Updated On :

यूरोप ने कोरोना महामारी के दौरान क्षेत्रीय सहयोग की मिसाल कायम की है। यूरोप ने दुनिया को बताया है कि संकट की घड़ी से कैसे निकला जाता है। यूरोप कोरोना महामारी से निकलने के दौर में है। यूरोप खुल रहा है। इधर एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों में कोरोना संकट अब बढ रहा है। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका में संकट बरकरार है। उधर आर्थिक रूप से कई मजबूत यूरोपीय देशों ने कोरोना से प्रभावित यूरोपीय देशों को मदद के लिए एक प्रस्ताव दिया। यूरोप के देश और उनके नेता अपने आपसी वैचारिक विवाद भूल कर एक दूसरे के साथ खड़े हो गए है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल अपने वैचारिक मतभेद भूल कर कंधा से कंधा मिलकर कोरोना से निपट रहे है। 

इन राजनेताओं के ही सुझाव पर यूरोपीय यूनियन ने 750 अरब यूरो के पैकेज का प्रस्ताव रखा है। यह पैकेज यूरोपीय यूनियन के सदस्य देशों को दिया जाएगा। अगर यह पैकेज पास हो गया तो पूरी दुनिया में क्षेत्रीय एकता और विश्वास का संदेश जाएगा। इस पैकेज की सबसे बड़ी खासियत है यह कि पैकेज की बड़ी राशि बतौर कर्ज नहीं, बतौर अनुदान दी जाएगी। कोरोना प्रभावित देशों को कर्ज के बजाए अनुदान  दिए जाने का सुझाव खुद जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने रखा है। यूरोपीय यूनियन के पैकेज प्रस्ताव का सबसे ज्यादा लाभ इटली, स्पेन को मिलेगा जो कोविड-19 से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए है।

क्या कोरोना संकट के दौरान एशियाई देशों में यूरोपीय देशों की तरह सहयोग दिखा है? क्या लैटिन अमेरिकी देशों में इस तरह का सहयोग दिखा है? क्या दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका कोरोना संकट के दौरान किसी को सहयोग कर रहा है? क्या इस संकट की घड़ी में भारत और पाकिस्तान के बीच कहीं कोई सहयोग नजर आया? क्या भारत और चीन के बीच कहीं कोई सहयोग नजर आया?

क्षेत्रीय सहयोग तो छोड़िए कोरोना से निपटने के लिए इन देशों के अंदर ही सरकारें एकजुट होकर रणनीति बनाने में विफल रही है। अब हालात यह है कि ब्राजील ने सरकारी वेबसाइट से कुल कोरोना मरीजों के आंकड़े को हटा दिए है। ताकि लोगों में अशांति न फैले। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप तो पहले से ही बोल रहे थे कि अमेरिका में कोरोना से लोग मरेंगे। भारत ने पहले इस बीमारी को लापरवाही से लिया। कोई तैयारी नहीं की। जब मुसीबत सामने आयी तो मजबूरी में सख्त लॉक डाउन कर दिया। इससे देश की इकनॉमी को भारी चोट पहुंची।

अब यूरोप को अमेरिका और ब्राजील कोरोना महामारी में पीछे छोड़ दिया है। ये महामारी के केंद्र बन गए है। संभावना जतायी जा रही है कि भारत भी अमेरिका और ब्राजील के कोरोना महामारी क्लब में शामिल हो जाएगा। क्योंकि यहां भी मरीजों की संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है। हालांकि तीनों देशों के मुखियाओं के बीच आपसी तालमेल अच्छा है। तीनों मुल्कों में दक्षिणपंथी विचारधारा के राजनीतिक दल शासन कर रहे है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि तीनों मुल्क कोरोना महामारी से निपटने में फिलहाल विफल नजर आ रहे है। 

ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो कोरोना महामारी निपटने में विफल रहे है। उनके दो हेल्थ मिनिस्टर इस्तीफा दे चुके है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना संकट के साथ घरेलू हिंसा के संकट में फंस गए है। अमेरिका में एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इधर एक अश्वेत की हत्या और इसके बाद ट्रंप के भडकाऊ ब्यान के विरोध में पूरे देश में लोग सड़कों पर है। कोरोना संकट के दौरान ट्रंप का सीधा टकराव भी राज्यों के गर्नवरों से हो गया। इधर भारत की हालत भी खराब है। सख्त लॉकडाउन भी किया गया। इकनॉमी भी तबाह हो गई। जबक मरीजों का आकंड़ा जून के पहले सप्ताह में 2 लाख पार कर गया।   

कोरोना कंट्रोल को लेकर ब्राजील,अमेरिका और भारत की रणनीति लगभग एक तरह की है। तीनो देशों ने इस बीमारी से निपटने को लेकर शुरूआती तैयारी नहीं की। एकाएक संकट आने के बाद तीनों देशों में जो रणनीति बनायी गई, उससे कन्फ्यूजन पैदा हो गया। तीनों मुल्कों में मरीजों के लिए जरूरी बेड, वेंटिलेटर की कमी नजर आयी। वहीं तीनों मुल्कों में डॉक्टर और हेल्थ वर्कर अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी पीपीई किट की कमी से जूझते रहे। तीनों मुल्कों में शुरूआती दौर में कोरोना टेस्ट के लिए जरूरी जांच किट का भी आभाव रहा।

तीनों देशों में अभी भी कोरोना को लेकर कन्फ्यूजन है। ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसोनारो अपने ही देश में राज्यों के मुखियाओं से विवाद कर रहे है। बोलसोनारो से विवाद के कारण ब्राजील के 2 हेल्थ मिनिस्टर कोरोना संकट के दौरान इस्तीफा देकर चले गए। ब्राजील में राज्यों और केंद्र के बीच कोआर्डिनेशन का भारी आभाव दिखा। अमेरिका में भी केंद्र और राज्यों के बीच कोरोना कंट्रोल की रणनीति पर विवाद रहा। कुछ गर्वनर ट्रंप के पीपीई किट और कोरोना जांच किट को लेकर दिए गए ब्यानों से नाराज हो गए। उन्होंने ट्रंप के ब्यानों को गलत बताया। 

मैरीलैंड के रिपब्लिकन गर्वनर ने ट्रंप की आलोचना की। वर्जिनिया एवं मिशिगन राज्य के डेमोक्रेट गर्वनर ने ट्रंप की खुलकर आलोचना की। उन्होंने जरूरी पीपीई और जांच किट को लेकर ट्रंप के दिए गए ब्यानों को झूठा करार दिया। लॉकडाउन को लेकर भी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अपने गर्वनरों से भिड़ गए। इधर भारत में भी कन्फयूजन की स्थिति रही। लॉकडाउन और प्रवासी मजदूरों की समस्या पर राज्य और केंद्र के बीच विवाद सामने आया। विपक्ष शासित राज्यों और केंद्र के बीच कोरोना को लेकर तालमेल में कमी रही। विपक्ष शासित राज्यों ने केंद्र पर भेदभाव का आरोप लगाया। महाराष्ट्र, केरल, छतीसगढ़, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे विपक्ष शासित राज्यों और केंद्र के बीच मतभेद साफ दिखे।

यूरोप के देश कोरोना से निपटने में क्षेत्रीए सहयोग पर बल दे रहे है। इसमें यूरोप की महत्वपूर्ण इकनॉमी जर्मनी की महत्वपूर्ण भूमिका है। पर यूरोपीए देशों की तरह का क्षेत्रीए सहयोग एशिया, लैटिन अमेरिका और नार्थ अमेरिका में अभी तक नहीं दिखा है। भारत, ब्राजील और अमेरिका अपने आसपास के मुल्कों से न कोई मदद ले पाए है न ही आसपास के मुल्कों को मदद कर पाए है। 

यूरोपीए यूनियन ने कोविड-19 से प्रभावित अपने सदस्य देशों के लिए 750 अरब यूरो के पैकेज का प्रस्ताव रखा है। पर इस तरह के पैकेज का प्रस्ताव एशियाई देशों में आपसी सहयोग के आधार पर कोई सोच भी नहीं सकता है। अमेरिका से दुनिया तो कोई फिलहाल उम्मीद ही न करे। फ्रांस के इमैनुएल मैक्रों और जर्मनी की एंजेला मर्केल ने गजब का साहस दिखाया है। इन दोनों के प्रयासों से भारी आर्थिक मदद का एलान किया गया है।

लेकिन इधऱ दक्षिण एशिया की हालत देखे। कुछ देशों के बीच आपसी तनाव बढ़ गया है। नेपाल ने कोरोना संकट के दौरान ही कुछ भारतीय इलाकों पर दावा ठोक दिया। चीन भारत के लद्दाख इलाके में घुसपैठ करने की कोशिश करने लगा। कोरोना संकट के दौरान भारत क्षेत्रीए कूटनीति के मामले में परेशान रहा। ट्रंप तो घरेलू राजनीति में ही फंस गए। उधर वैश्विक कूटनीति में ट्रंप ने चीन से टकराव ले रखा है। कोविड-19 से निपटने में ट्रंप विफल रहे है। उनकी साख अमेरिका में गिरी है। इससे बचने के लिए ट्रंप अश्वेत जार्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद भड़काऊ ब्यान दे रहे है। ताकि श्वेत और अश्वेत विवाद अमेरिका में भड़क जाए। ट्रंप इस नस्ली भेदभाव को भी चुनावी माहौल में इस्तेमाल करना चाहते है।



Related