नई दिल्ली। सामाजिक विश्लेषकों और विज्ञापन जगत से जुड़े लोगों का कहना है कि विरोध के डर से विज्ञापनों को वापस लिया जाना एक ‘‘खतरनाक चलन’’ है।
हिंदू त्योहार संबंधी प्रचार मुहिम के लिए उर्दू शब्दों का इस्तेमाल करना, समलैंगिक जोड़े को विज्ञापन में दिखाना और गैर परंपरागत तरीके से मंगलसूत्र का प्रचार करना…. देश में विभिन्न बड़े ब्रांड ने त्योहार के इस मौसम में संभवत: यह सोचकर अपनी प्रचार मुहिमों को उक्त गैर परंपरागत तरीकों से विविध रंग देने की कोशिश की कि इनकी मदद से वह अपने ग्राहकों का ध्यान खींचने में सफल रहेंगे, लेकिन उन्हें अपने इन विज्ञापनों को जल्द ही वापस लेना पड़ा।
फैशन ब्रांड ‘फैबइंडिया’ ने अपने कपड़ों के संग्रह, डाबर इंडिया ने अपने ‘फेब ब्लीच क्रीम’ उत्पाद और डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी ने अपने मंगलसूत्र के विज्ञापन के लिए सामान्य सोच से हटकर इन तरीकों का इस्तेमाल किया, लेकिन अपने-अपने क्षेत्रों के इन बड़े ब्रांड को अपने विज्ञापन वापस लेने पड़े। सामाजिक विश्लेषक और विज्ञापन जगत से जुड़े लोग इसे ‘‘खतरनाक चलन’’ करार देते हैं।
विज्ञापन उद्योग से जुड़े पीयूष पांडे ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि जब तक ‘‘कानून-व्यवस्था लोगों की रक्षा नहीं करती’’, तब तक विज्ञापनकर्ताओं के लिए अपनी प्रचार मुहिम को जारी रखना मुश्किल होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘विज्ञापनकर्ता नहीं चाहते कि लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचे। वे इसलिए विज्ञापन वापस नहीं लेते कि वे गलत हैं, बल्कि इससे उनके लोगों को खतरा होने के कारण वे ऐसा करते हैं।’’
विज्ञापन जगत से जुड़े पेशेवर अभिजीत प्रसाद ने कहा कि उनका उद्योग जगत एक ऐसी दुनिया दिखाने की कोशिश कर रहा है, ‘‘जिसमें आप रहना चाहते हैं’’, जो असमानता को दूर करता है, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता।
सब्यसाची को लोगों के विरोध के कारण रविवार को मंगलसूत्र संबंधी अपना विज्ञापन वापस लेना पड़ा। विज्ञापन में महिला को एक व्यक्ति के साथ अंतरंग स्थिति में दिखाया गया था।
मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सब्यसाची मुखर्जी को मंगलसूत्र के ‘‘आपत्तिजनक एवं अश्लील’’ विज्ञापन को हटाने के लिए रविवार को 24 घंटे का ‘अल्टीमेटम’ दिया और चेतावनी दी कि अगर वह इसे 24 घंटे में नहीं हटाएंगे तो उनके खिलाफ मामला दर्ज करके कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद सब्यसाची ने अपना विज्ञापन वापस ले लिया था।
उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा था,‘‘ धरोहर और संस्कृति पर सतत चर्चा की पृष्ठभूमि में मंगलसूत्र अभियान का मकसद समावेशिता और सशक्तीकरण पर बातचीत करना था। इस अभियान का मकसद उत्सव मनाना था और हमें इस बात का गहरा दु:ख है कि इससे हमारे समाज के एक वर्ग को ठेस पहुंची है, इसलिए हमने इस अभियान को वापस लेने का निर्णय लिया हैं।’’
इससे एक सप्ताह पहले, ‘डाबर इंडिया’ ने भी ‘फेम ब्लीच’ उत्पाद के लिए अपना विज्ञापन वापस ले लिया था। इसमें एक समलैंगिक जोड़े को करवा चौथ मनाते दिखाया गया था। परंपराओं से जुड़े इस त्योहार को गैर परंपरागत रंग देने की कोशिश करने वाले इस विज्ञापन की सोशल मीडिया पर आलोचना हुई थी।
इस बार भी मध्य प्रदेश के मंत्री ने इसकी आलोचना की। मिश्रा ने राज्य पुलिस प्रमुख से डाबर को यह बताने का निर्देश दिया कि ‘‘आपत्तिजनक’’ विज्ञापन को हटा लिया जाएगा। इसके बाद डाबर ने भी अपना विज्ञापन वापस ले लिया।
इससे कुछ ही दिन पहले ‘जश्न-ए-रिवाज’ को लेकर फैबइंडिया को सोशल मीडिया पर ‘ट्रोल’ किया गया था, क्योंकि कुछ लोगों का कहना था कि कंपनी हिंदू त्योहार में अनावश्यक रूप से धर्मनिरपेक्षता और मुस्लिम विचारधारा को थोप रही है और इससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। कंपनी ने दक्षिण पंथी समूहों की आलोचना के बाद अपना प्रोमो वापस ले लिया था।
भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने ट्विटर पर एक पोस्ट के जरिए इस विज्ञापन की आलोचना की थी।
पांडे ने कहा कि इन विज्ञापनों को वापस नहीं लिया जाना चाहिए था। इन ब्रांड के पास ‘विज्ञापन मानक परिषद’ या अदालतों के पास जाने का विकल्प था।
फिल्मकार ओनिर ने संकटों का सामना कर रहे विज्ञापनों संबंधी एक लेख को संलग्न करते हुए लिखा, ‘‘ऐसा लगता है कि इस देश में कोई न्यायपालिका/पुलिस या राज्य नहीं है क्योंकि असामाजिक तत्व अब खुलेआम धमकियों के साथ फरमान जारी करते हैं।’’
जाने माने पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने कहा, ‘‘मुझे यह समझ नहीं आता कि कुछ लोगों को फैबइंडिया के जश्न-ए-रिवाज से समस्या क्यों थी। इसका अंग्रेजी में अर्थ केवल ‘ए सेलिब्रेशन ऑफ ट्रेडिशन’ (परंपरा का जश्न) है। किसी को कैसे और क्यों इससे दिक्कत हो सकती है? यह पागलपन है।’’
इससे पहले, अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने अपने ट्विटर अकाउंट पर ‘‘जश्न-ए-बेवकूफी’’ लिखकर ब्रांड का बहिष्कार किए जाने की अपीलों की निंदा की थी।
ब्रांड रणनीतिकार सिद्धांत लाहिड़ी ने कहा कि परंपरा से हटकर बात करने वाली सोच को निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विश्वभर में लोगों की यह सामाजिक प्रवृत्ति है कि “हम उन दृष्टिकोणों के प्रति असहिष्णु होते जा रहे हैं जो हमारे दृष्टिकोण से भिन्न हैं।’’