समर्थ कवि रोज़मर्रा के सभी दवाबों को अपनी कविता में दर्ज करता है – कुमुद शर्मा


स्वागत भाषण अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव द्वारा प्रस्तुत किया गया और समापन वक्तव्य साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा द्वारा दिया गया।


प्रदीप सिंह प्रदीप सिंह
साहित्य Updated On :

नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी में मंगलवार को विश्व कविता दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय काव्योत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें 24 भारतीय भाषाओं के कवियों ने भाग लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने की और उद्घाटन वक्तव्य वरिष्ठ हिंदी कवि प्रयाग शुक्ल ने दिया। स्वागत भाषण अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव द्वारा प्रस्तुत किया गया और समापन वक्तव्य साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा द्वारा दिया गया।

उद्घाटन वक्तव्य देते हुए प्रयाग शुक्ल ने कहा कि आज अनुवाद द्वारा किसी भी देश की कविता विश्व के कोने-कोने तक पहुँच रही है और यही कविता की सत्ता एवं उसका सम्मान है। आगे उन्होंने कहा कि पृथ्वी का समूचा और सच्चा रूप कविता के कारण ही हमारे सामने आ पा रहा है। जैसे ही अनुवाद किसी दूसरे देश और भाषा में पहुंचता है, वह वहां की स्थानीयता को ग्रहण कर लेता है और विश्व बंधुत्व का सार्वभौमिक संदेश हर तरफ प्रसारित होने लगता है।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में माधव कौशिक ने कहा कि कवि समानांतर दुनिया रचता है, इसीलिए भारतीय संस्कृति में उसे ‘प्रजापति’ कहा गया है। कवि सच्चे मायने में विश्व नागरिक हैं और वे हर जगह आम आदमी के प्रवक्ता के रूप में उपस्थित हैं। संसार का सौंदर्य कविता द्वारा ही बचा है। उन्हीं के शब्दों ने संसार को रहने लायक बनाया हुआ है। अपने समापन वक्तव्य में साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि एक समर्थ कवि रोज़मर्रा के दवाबों को अपनी कविता में दर्ज करता है। इसीलिए भारतीय भाषाओं में कविताओं का रूप बहुमुखी और समर्थ है। आज का दिन कविता की ज़मीन को विस्तारित करने के रूप में मनाया जाना चाहिए।

कार्यक्रम के प्रारंभ में स्वागत वक्तव्य देते हुए साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि कविता मानवता का हिस्सा है और पूरे विश्व में शांति की वाहक है। उद्घाटन सत्र में साहित्य अकादेमी द्वारा प्रख्यात हिंदी कवि केदारनाथ सिंह पर प्रकाशित विनिबंध (लेखक – हरिमोहन शर्मा) का लोकार्पण भी किया गया। इस सत्र में सेजल शाह (गुजराती), सुमन केसरी (हिंदी), शेफालिका वर्मा (मैथिली), सावित्री राजीवन (मलयाळम्), एम. प्रियॅब्रत सिंह (मणिपुरी), चंद्रभान ख़याल (उर्दू) ने अपनी-अपनी भाषाओं में कविताएँ प्रस्तुत कीं।

प्रथम सत्र की अध्यक्षता सागरी छाबड़ा ने की, जिसमें तूलिका चेतिया येन (असमिया), अलङ्बर मुसाहारी (बोडो), ग्वादलूप डायस (कोंकणी), कर्णा बिराहा (नेपाली), संतोष माया मोहन (राजस्थानी), शालिनी सागर (सिंधी), के. श्रीकांत (तेलुगु) ने अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता दर्शन दर्शी ने की और अंशुमन कर (बाङ्ला), रानी श्रीवास्तव (हिंदी), रतना कालेगौड़ा (कन्नड), सुनीता रैणा पंडित (कश्मीरी), साहेबराव ठाणगे (मराठी), शुभश्री लेंका (ओड़िआ), बरजिंदर चौहान (पंजाबी), ऋषिराज पाठक (संस्कृत), सरोजनी बेसरा (संताली) और सबरीनाथन (तमिऴ) ने अपनी-अपनी भाषाओं में कविताएं प्रस्तुत कीं। सभी ने एक कविता अपनी मूल भाषा में तथा उसके बाद अन्य कविताओं के अंग्रेज़ी/हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किए।



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