बाल साहित्य पुरस्कार 2023: बाल लेखन हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है-कुमुद शर्मा


बाल साहित्य लिखने के लिए ख़ुद बच्चा बनना पड़ता है, पर बाल साहित्य बचकाना नहीं होना चाहिए। मेरा उपन्यास ‘मानवी’ में धरती की हाहाकार और पुकार है। यह प्रकृति, विकृति और सुकृति की कथा है।


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नई दिल्ली। बाल साहित्य पुरस्कार 2023 से पुरस्कृत लेखकों ने आज अपनी रचना प्रक्रिया को ‘लेखक सम्मिलन’ में श्रोताओं से साझा किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने की। कुमुद शर्मा ने सभी पुरस्कृत लेखकों को बधाई और धन्यवाद देते हुए कहा कि किसी भी लेखक से मिलना और सुनना हमें समृद्ध करता है। आज आप सबको सुनकर देश भर में बाल साहित्य की स्थिति और उसकी चुनौतियों को समझा जा सका है। अतः हम सब की यह सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि हम बाल साहित्य के संरक्षण और संवर्धन के लिए नई दृष्टि और नई ऊर्जा तथा उत्तरदाियत्व के साथ काम करना प्रारंभ कर दें।

बाल साहित्य बच्चों के साथ रहकर ही लिखना चाहिए – रक्षाबहन प्र. दवे

गुजराती लेखिका रक्षाबहन प्र. दवे ने कहा कि बाल साहित्य को बच्चों के साथ रहकर ही लिखना चाहिए तभी वह सार्थक और बच्चों के काम आ पाता है। बच्चे ही मेरे साहित्य के प्रेरक और विवेचक भी हैं। उन्होंने जिस काव्य व कहानी को पास न किया उनको मैंने कूडे़ में डाला और जिन कृतियों को उन्होंने सराहा वे कृतियां आज पुरस्कार पा रही हैं। तो मैं समझती हूँ कि मेरे बच्चे ही पुरस्कार पा रहे हैं।

विज्ञान-कथा का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया- सूर्यनाथ सिंह

हिंदी के लिए पुरस्कृत सूर्यनाथ सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी में विज्ञान-कथा की परंपरा थोड़ी कमजोर स्थिति में ही दिखती है। विज्ञान-कथा का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। विज्ञान-कथा की जगह विज्ञान फैंटेसी अधिक है।

पेशे से शिक्षक मराठी के लिए पुरस्कृत एकनाथ आव्हाड ने स्कूलों में बच्चों के साथ किए गए अपने प्रयासों के आधार पर बताया कि इससे जहाँ बच्चों में पढ़ने के प्रति रुचि जाग्रत हुई वहीं उन्होंने अन्य कलाओं में रुचि लेना शुरू किया।

बाल साहित्य मातृभाषा के प्रति रुचि जगाता है – मधुसूदन बिष्ट

नेपाली लेखक मधुसूदन बिष्ट ने कहा कि बाल साहित्य बच्चों में अपनी मातृभाषा के प्रति रुचि जगाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, अतः बच्चों को बाल साहित्य पढ़ने की प्रेरणा के साथ-साथ इनके प्रकाशन की ज़िम्मेदारी भी हमें निभानी होगी।

बाल साहित्य बचकाना नहीं होना चाहिए – राधावल्लभ त्रिपाठी

संस्कृत के लिए पुरस्कृत राधावल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि बाल साहित्य लिखने के लिए ख़ुद बच्चा बनना पड़ता है, पर बाल साहित्य बचकाना नहीं होना चाहिए। मेरा उपन्यास ‘मानवी’ में धरती की हाहाकार और पुकार है। यह प्रकृति, विकृति और सुकृति की कथा है। साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत होने के बाद यह किताब और ज़्यादा पढ़ी जाएगी, मुझे ऐसी उम्मीद है।

अंग्रेज़ी के लिए पुरस्कृत लेखिका सुधा मूर्ति सम्मिलन में उपस्थित नहीं थीं, लेकिन उनका लिखित वक्तव्य श्रोताओं के बीच वितरित किया गया, जिसमें उनका कहना था कि यदि हम बच्चों को उपदेश देते रहेंगे कि उन्हें क्या करना है तो वे कुछ ही समय में ऊब जाएँगे। इसके बजाय यदि हम उन्हें कोई भी संदेश कहानी के रूप में दें तो वह उन्हें सहज रूप से लंबे समय तक याद रहता है। मैंने इसे आज़माया है और सौभाग्य से, अधिकांश बार सफल रही हूं।

इसके अतिरिक्त लेखक सम्मिलन में – रथींद्रनाथ गोस्वामी (असमिया), प्रतिमा नंदी नार्जारी (बोडो), बलवान सिंह जमोड़िया (डोगरी), विजयश्री हालाडि (कन्नड), तुकाराम रामा शेट (कोंकणी), अक्षय आनंद ‘सन्नी’ (मैथिली), प्रिया ए.एस. (मलयाळम्), दिलीप नाङ्माथम (मणिपुरी), जुगल किशोर षडंगी (ओड़िआ), गुरमीत कड़िआलवी (पंजाबी), किरण बादल (राजस्थानी), मानसिंह माझी (संताली), के. उदयशंकर (तमिऴ), डी.के. चादुवुल बाबु (तेलुगु) ने भी बाल लिखने संबंधी अपने- अपने लेखकीय अनुभव साझा किए।



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