नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी द्वारा शुक्रवार को उदयराज सिंह की जन्मशतवार्षिकी के समापन पर साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से चर्चा की गई। कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने सभी वक्तागणों का स्वागत अंगवस्त्रम् प्रदान करके किया। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि उदयराज जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था और उन्होंने सारा जीवन हिंदी भाषा और साहित्यकारों के उत्थान के लिए अर्पित किया।
उनके पुत्र प्रमथराज सिन्हा ने अपने पिता के व्यक्तिगत संस्मरणों को प्रस्तुत करते हुए कहा कि उनका हिंदी साहित्यकारों के प्रति प्रेम अतुलनीय था और उनके साथ रहते हुए मेरी साहित्य एवं कलाओं के प्रति रुचियां जाग्रत हुईं। उन्होंने उनके शास्त्रीय संगीत की पसंदगी करने के बारे में भी बताया। सत्यकेतु सांकृत ने उदयराज सिंह के उपन्यासों पर बोलते हुए कहा कि उनके उपन्यासों में हम विश्वविद्यालय परिसरों की फुसफुसाहट को सुन सकते हैं। उपन्यास ‘भूदानी सोनिया’ का जिक्ऱ करते हुए उन्होंने कहा कि इस उपन्यास में 1942 के आंदोलन की झलक देख सकते हैं। इसमें भी छात्र आंदोलन का उल्लेख है, जो उनकी भविष्यदृष्टा सोच का परिचायक है।
देवशंकर नवीन ने उनकी कहानियों पर बोलते हुए कहा कि उनकी कहानियां बिना किसी फार्मूले के लिखी गईं और कहानी ही बनी रहीं। उनके पात्र जहां मानवता को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं वहीं वे पात्र अंधेरों से हौसले भी पाते है। उन्होंने उनकी कहानियों ‘भूख’,‘पालनहार’ का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि इन्हें पाठकों को अवश्य पढ़ना चाहिए। प्रेम जनमेजय ने उनके कथेतर साहित्य पर बोलते हुए कहा कि उनके संस्मरण यात्रा-वृत्त और रेखाचित्र कथेतर साहित्य के उत्कृष्ट नमूने हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शिवनारायण ने उनकी साहित्यिक पत्रकारिता के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि उन्होंने ‘नई धारा’ पत्रिका का प्रकाशन साहित्यिक पत्रकारिता को स्थायी रूप प्रदान करने के लिए ही किया था, जो आज तक जारी है।
कार्यक्रम में उदयराज सिंह के परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त तेजेंद्र शर्मा, रणजीत साहा, सुभाष नीरव, बलराम, कमलेश भट्ट कमल, ओम निश्चल, विज्ञान व्रत, अशोक मिश्र, मुकेश भारद्वाज, महेंद्र प्रजापति आदि लेखक, पत्रकार एवं प्रकाशक सहित पटना से इस कार्यक्रम में आए साहित्यप्रेमी शामिल थे। कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के संपादक हिंदी अनुपम तिवारी ने किया।