कृष्णा सोबती की हर रचना पाठकों और आलोचकों का आकर्षित करती थी-गोपेश्वर सिंह


गोपेश्वर सिंह ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि उनकी हर रचना ने पाठकों और आलोचकों को आकर्षित किया। कृष्णा जी की उपस्थिति उनकी भाषा को एक भव्य मंच प्रदान करती हैं। उनकी कहानियाँ स्त्री-देह की माँग को प्रतिष्ठित करती हैं।


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साहित्य Updated On :

नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित की गई दो दिवसीय कृष्णा सोबती जन्मशती संगोष्ठी का आज समापन हुआ। आज दो सत्र आयोजित हुए जो कृष्णा सोबती के कथा साहित्य और उनके स्त्री विमर्श पर केंद्रित थे। ‘कृष्णा सोबती का कथा साहित्य’ विषयक सत्र गोपेश्वर सिंह की अध्यक्षता में संपन्न हुआ, जिसमें निधि अग्रवाल, सुधांशु गुप्त एवं सुनीता ने अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए। ‘कृष्णा सोबती का साहित्य और स्त्री विमर्श’ विषयक सत्र क्षमा शर्मा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ और उसमें अल्पना मिश्र, सविता सिंह एवं उपासना ने अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए।

कृष्णा सोबती के कथा साहित्य पर बोलते हुए निधि अग्रवाल ने कहा कि कृष्णा जी ने आज से 60-70 साल पहले स्त्री चेतना के बहुआयामी पक्षों को प्रस्तुत किया था, जिसके बारे में तब कोई सोचता भी नहीं था। उन्होंने अपनी कहानियों में स्त्री के संघर्षों को तो उकेरा ही बल्कि यह सिद्ध भी किया कि सारे युद्ध स्त्री देह पर ही लड़े जाते हैं।

सुधांशु गुप्त ने उनके समकालीन लेखिकाओं मन्नु भंडारी एवं उषा प्रियंवदा से तुलना करते हुए कहा कि मन्नू भंडारी जहाँ मध्यम वर्ग की विसंगतियाँ चित्रित करती हैं, वहीं उषा प्रियंवदा विवाहेतर संबंध, घर परिवार और रिश्ते-नातों को चित्रित करती हैं, जबकि कृष्णा सोबती अलग राह चुनते हुए स्त्री की दैहिक स्वतंत्रता को अपने कथानकों का केंद्र बनाती है।

संभवतः इसलिए उन्हें उग्र नारीवाद का प्रतीक कहा गया। उनके नायक उनकी नायिकाएँ ही हैं। बलात्कार और यौन शोषण जैसी आज की दुःष्प्रवृत्तियों पर वह बहुत पहले सतर्क करती हैं। उन्होंने अपने लेखन को आदर्श और नैतिकता जैसी प्रवृत्तियों से नहीं बाँधा और जो चाहा वह लिखा। सुनीता ने उनकी कहानियों पर बोलते हुए कहा कि उनकी कहानियाँ पंजाब के मध्यम वर्गीय परिवारों पर केंद्रित थीं और उनमें यथार्थ की सिम्फनी को महसूस किया जा सकता है। गोपेश्वर सिंह ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि उनकी हर रचना ने पाठकों और आलोचकों को आकर्षित किया। कृष्णा जी की उपस्थिति उनकी भाषा को एक भव्य मंच प्रदान करती हैं। उनकी कहानियाँ स्त्री-देह की माँग को प्रतिष्ठित करती हैं।

कृष्णा सोबती के साहित्य और रत्री विमर्श पर बोलते हुए उपासना ने कहा कि उनके स्त्री विमर्श में विद्रोह और जीवन के प्रति उल्लास शामिल है। अल्पना मिश्र ने ‘सिक्का बदल गया’, ‘बहनें’ और ‘ऐ लड़की’ को विशेष रूप से संदर्भित करते हुए सोबती जी के लेखन में स्त्री विमर्श के स्वरूप को रेखांकित किया।

सविता सिंह ने कहा कि उनका टेक्स्ट उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है और उनकी स्त्री देह के अतिरिक्त भी जीवन की अन्य खुशियाँ महसूस करना चाहती है। उनके लेखन में प्रकृति और भाषा में गहरा संबंध नजर आता हैं। क्षमा शर्मा ने उनके साथ बिताए अंतरंग संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि वह हमारे समय की सबसे बड़ी लेखिका थी और रहेंगी भी। कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।



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