साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता विनोद कुमार शुक्ल को अर्पित


एक जनवरी 1937 को राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल ने कृषि की पढ़ाई के दौरान प्रकृति के प्रति ऐसी आत्मीयता पाई है जो आगे बढ़कर प्रकृति रक्षा और अंततः मनुष्य की प्रजाति की रक्षा में चिंतित हो जाती है।


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नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी ने आज अपने सर्वोच्च सम्मान महत्तर सदस्यता से हिंदी के प्रख्यात कवि एवं कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को अलंकृत किया। स्वास्थ्य कारणों के चलते यह संक्षिप्त अलंकरण कार्यक्रम उनके रायपुर स्थित आवास पर किया गया। यह अलंकरण साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक और सचिव के .श्रीनिवासराव द्वारा प्रदान किया गया। अलंकरण प्राप्त करने के बाद विनोद कुमार शुक्ल ने कहा कि इस सम्मान को मेरे घर आकर देने के लिए वे साहित्य अकादेमी का आभार प्रकट करते हैं। उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि इतना बड़ा सम्मान उन्हें प्राप्त होगा। अभी तक यह सदस्यता जिन महत्त्वपूर्ण लेखकों को मिली है उनके बीच अपने को पाकर मैं बहुत ख़ुश हूं। इस अवसर पर उन्होंने अपनी दो कविताओं का पाठ भी किया।

साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि यह स्वयं को गौरवान्वित महसूस होने का दुर्लभ अवसर है क्योंकि शुक्ल जी को सम्मानित करके अकादेमी भी अपने आप को सम्मानित कर रही है। आगे उन्होंने कहा कि शुक्ल जी का लेखन इतना व्यापक और उत्कृष्ट है कि आने वाली पीढ़ियों इससे हमेशा प्रोत्साहित होती रहेंगी। सचिव के. श्रीनिवासराव ने उनके सम्मान में प्रशस्ति पाठ करते हुए कहा कि विनोद कुमार शुक्ल कविता और गल्प का अद्भुत संयोग रचने वाले सर्जक हैं। उनकी रचनाएं किसी स्मृति के आख्यान सी मृदुल और झिलमिल करती हुई होती हैं जिन्हें पढ़कर एक विलक्षण शांति को महसूस करने का सुख प्राप्त होता है। इस नाते विनोद कुमार शुक्ल हमारे समय के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में शुमार किए जाते हैं।

ज्ञात हो कि एक जनवरी 1937 को राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल ने कृषि की पढ़ाई के दौरान प्रकृति के प्रति ऐसी आत्मीयता पाई है जो आगे बढ़कर प्रकृति रक्षा और अंततः मनुष्य की प्रजाति की रक्षा में चिंतित हो जाती है। मनुष्य का जीवन और समाज बेहतर हो उनकी यही सदिच्छा ही उनकी रचनात्मकता का मूल स्वर है और केंद्रीय चिंता भी।

कविता-संग्रह लगभग जयहिंद से अपनी रचनात्मक यात्रा शुरु करने वाले विनोद कुमार शुक्ल ने वह आदमी चला गया, नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह, सब कुछ होना बचा रहेगा, अतिरिक्त नहीं, कविता से लंबी कविता, आकाश धरती को खटखटाता है, कभी के बाद अभी आदि प्रकाशित कविता-संग रहो और नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिडक़ी रहती थी, आदि उपन्यासों तथा हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़, यासि रासा त, एक चुप्पी जगह, पेड़ पर कमरा, महाविद्यालय, एक कहानी, घोड़ा और अन्य कहानियाँ जैसे कहानी-संग रहो द्वारा पद्य और गद्य का एक सर्वथा नया सौंदर्य-बोध निर्मित किया है, जिसके अंतःपुर में प्रवेश करने और रम जाने पर एक सात्त्विक-सा आस्वाद प्राप्त होता है।

आपको गजानन माधव मुिक्तबोध फेलोशिप, अखिल भारतीय भवानीप्रसाद मिश्र सम्मान, सृजन भारतीय सम्मान, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, रचना समग्र पुरस्कार एवं हिंदी गौरव सम्मान आदि कई प्रतिष्ठित सम्मानों से अलकृंत किया जा चुका है।



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