साहित्य अकादेमी एवं पेरू गणराज्य दूतावास के संयुक्त तत्त्वावधान में प्रकाशित इंका काल के नाटक ओयांताइ का लोकार्पण


साहित्य अकादेमी एवं पेरू गणराज्य दूतावास के संयुक्त तत्त्वावधान में आज इंका काल के नाटक ओयांताइ के स्पानी-हिंदी द्विभाषिक अनुवाद का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि पेरू गणराज्य दूतावास के राजदूत महामहिम कार्लोस आर. पोलो थे।


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नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी एवं पेरू गणराज्य दूतावास के संयुक्त तत्त्वावधान में आज इंका काल के नाटक ओयांताइ के स्पानी-हिंदी द्विभाषिक अनुवाद का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि पेरू गणराज्य दूतावास के राजदूत महामहिम कार्लोस आर. पोलो थे। लोकार्पण समारोह में पुस्तक के स्पानी-हिंदी अनुवादक विकास कुमार सिंह, रिशु शर्मा एवं स्पानी-हिंदी के प्रख्यात विद्वान, जिन्होंने इस अनुवाद की समीक्षा भी की है, श्यामा प्रसाद गांगुली भी उपस्थित थे। कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने सभी का स्वागत अंगवस्त्रम् और पुस्तकें भेंट कर किया। उन्होंने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि इस तरह के संयुक्त प्रयासों से दो भाषाओं का साहित्य ही नहीं बल्कि उनकी संस्कृतियाँ भी एक दूसरे के नज़दीक आती हैं। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि पेरू की आज़ादी की 200वीं वर्षगाँठ और भारत की आजादी के अमृत महोत्सव के महत्त्वपूर्ण अवसर पर इस कृति का प्रकाशन हिंदी पाठकों के लिए स्मरणीय रहेगा।

मुख्य अतिथि के रूप में पेरू गणराज्य के राजदूत महामहिम कार्लोस आर. पोलो ने कहा कि यह अनुवाद भारत और पेरू के द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। आगे उन्होंने कहा कि यह प्राचीन नाटक जो इंका साम्राज्य में बोली जाने वाली भाषा केचुआ में था, अब स्पानी सहित विश्व की अनेक भाषाओं में अनूदित हो चुका है। अब हिंदी में अनूदित होकर यह वहाँ की सभ्यता और संस्कृति को समझने में सहायक होगा। इस नाटक के अनुवाद से हम पेरू की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता के भी महत्त्वपूर्ण पक्षों को समझ पाएँगे। उन्होंने इस काव्यात्मक नाटक के अनुवाद के लिए श्यामा प्रसाद गांगुली और दोनों अनुवादकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

श्यामा प्रसाद गांगुली ने अपने वक्तव्य में कहा कि इस नाटक का हिंदी अनुवाद इसलिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि यह नाटक वाचिक परंपरा से होते हुए भी अपने प्राचीन स्वरूप को बचा पाया है। अंत में, दोनों अनुवादकों ने अनुवाद के समय आई मुश्किलों की विस्तृत चर्चा करते हुए बताया कि इस नाटक से हम इंका सभ्यता की संस्कृति का ऐतिहासिक परिचय प्रस्तुत कर ही रहे हैं बल्कि प्रेम, धर्म, राजनीति, युद्ध, स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा जैसे सार्वभौमिक प्रकृति के कालातीत विषयों को भी स्पर्श कर रहे हैं।

कार्यक्रम में कई राजदूतावासों के राजदूत स्पानी-हिंदी अनुवादक एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे।