किसी भी क्षेत्र में गाँधी के योगदान को विस्मृत करना असंभव : गिरीश्वर मिश्र


पूरा विश्व आज जिस हिंसा, प्रदूषण, पारिवारिक परिवेश से उभरी चुनौतियों के बीच जूझ रहा है, उसमें गाँधी उनके उत्तर के रूप में आज फिर प्रासंगिक हो गए हैं। वे हमारे बीच आज भी परोक्ष रूप से उपस्थित होकर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। अब यह हमारे लिए चुनौती है कि हम उनके विचारों के कौन से अंश को अपने जीवन में शामिल करें।



नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी ने आभासी मंच पर प्रवासी साहित्य और गाँधी विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें देश-विदेश के कई गाँधी विशेषज्ञों और प्रवासी साहित्यकारों ने सहभागिता की। संगोष्ठी का उद्घाटन वक्तव्य देते हुए प्रख्यात लेखक एवं म.गाँ.अं.हिं.वि. के पूर्व कुलपति गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि गाँधी ने समाज से जुड़े सभी क्षेत्रों पर ऐसे विचार उद्घाटित किए कि उसे कोई भी विस्मृत नहीं कर सकता।

पूरा विश्व आज जिस हिंसा, प्रदूषण, पारिवारिक परिवेश से उभरी चुनौतियों के बीच जूझ रहा है, उसमें गाँधी उनके उत्तर के रूप में आज फिर प्रासंगिक हो गए हैं। वे हमारे बीच आज भी परोक्ष रूप से उपस्थित होकर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। अब यह हमारे लिए चुनौती है कि हम उनके विचारों के कौन से अंश को अपने जीवन में शामिल करें। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए अपने समाचार पत्रों द्वारा एक नए तरीके के साहित्य को रचा। उनका यही संघर्ष आगे चलकर भारत सहित अन्य देशों के लिए मशाल की रोशनी साबित हुआ।

उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष प्रख्यात समालोचक, प्रेमचंद विशेषज्ञ एवं साहित्य अकादेमी के हिंदी परामर्श मंडल के सदस्य कमल किशोर गोयनका ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद जैसे राजनीति से गाँधी दर्शन अदृश्य हुआ है वैसे ही साहित्य में भी गाँधी की उपेक्षा हो रही है। उन्होंने कहा कि यह एक व्यापक विषय है और साहित्य अकादेमी ने इस पर इस महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी द्वारा एक पहल की है जोकि सराहनीय है।

हिंदी साहित्य में प्रेमचंद, गाँधी साहित्य के सबसे बड़े प्रेरणा स्त्रोत हैं। उन्होंने मारीशस का उदाहरण देते हुए बताया कि गाँधी जी वहाँ 1901 में गए थे तब उनकी उम्र मात्र 32 वर्ष थी। उन्होंने वहाँ से निकलने वाली हस्तलिखित पत्रिका दुर्गा का उल्लेख करते हुए बताया कि उसमें प्रकाशित रचनाओं में भी गाँधी का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उन्होंने संगोष्ठी में शामिल सभी वक्ताओं से अनुरोध किया कि वे गाँधी को इस दृष्टि से पुनः देखें और उसको आज के संदर्भ में सबके सामने प्रस्तुत करे जो एक बड़ा काम होगा।

कार्यक्रम के आरंभ में सभी का स्वागत करते हुए साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि गाँधी एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक दर्शन थे जिसने सारी दुनिया को प्रभावित किया। उन्होंने गाँधी से प्रभावित प्रवासी साहित्यकारों की विस्तृत जानकारी देते हुए उनके महत्त्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों का भी उल्लेख किया।

विचार सत्र की अध्यक्षता करते हुए सुरेश ऋतुपर्ण ने कहा कि मारीशस के अल्प प्रवास में उनके द्वारा कहे गए शब्दों को भी वहाँ की जनता ने बहुत आदर के साथ ग्रहण किया और अपने स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा वहीं से प्राप्त की। उन्होंने फीजी के लेखक कमला प्रसाद मिश्र द्वारा गाँधी जी पर रचित कुछ कविताओं का उल्लेख किया।

अपने समापन वक्तव्य में केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा ‘जोशी’ ने कहा कि गाँधी का दक्षिण अफ्रीका के बाद सबसे ज्यादा प्रभाव फीजी और मारीशस आदि देशों पर पड़ा जहाँ कि गिरमिटिया आंदोलन के वे मुख्य प्रेरणा स्रोत बने। वे वहाँ स्वयं उपस्थित नहीं थे लेकिन उनके विचारों ने उनकी उपस्थिति वहाँ व्यापक रूप से दर्ज कराई।

विचार सत्र में उमापति दीक्षित, आशीष कंधवे, अंजू रंजन (जोहांसबर्ग), अचर्ना पैन्यूली (काॅपेनहेगेन), तेजेंद्र शर्मा (लंदन), विजय शर्मा, दत्ता कोल्हारे, मुन्ना लाल गुप्ता, विजय मिश्र एवं शालेहा प्रवीन ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादेमी के संपादक (हिंदी) अनुपम तिवारी ने किया।