साहित्य अकादेमी द्वारा कथा संधि कार्यक्रम संपन्न


अमृतलाल नागर के संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने कहा कि वे हमेशा कहते थे कि साहित्यकार कहलाना एक बड़ी जिम्मेदारी है और जब भी कोई बात लिखो वह समाज के साथ आपके अनुभव से जुड़ी होनी चाहिए।


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नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी ने बुधवार को अपने प्रतिष्ठित कार्यक्रम कथासंधि में प्रख्यात लेखिका अचला नागर को आमंत्रित किया। अचला नागर ने सर्वप्रथम अपने पिता अमृतलाल नागर से संबंधित और अपनी जीवन यात्रा के संस्मरण श्रोताओं के साथ साझा किए और अंत में अपनी नई लिखी कहानी ‘शिवालय’ प्रस्तुत की। अपने पिता अमृतलाल नागर के संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने कहा कि वे हमेशा कहते थे कि साहित्यकार कहलाना एक बड़ी जिम्मेदारी है और जब भी कोई बात लिखो वह समाज के साथ आपके अनुभव से जुड़ी होनी चाहिए। मैंने उनकी इस बात का हमेशा ख्याल रखा और अभी भी मैं अपने को साहित्यकार से ज्यादा लेखिका कहलाना पंसद करती हूँ।

उन्होंने फिल्मों में अपने पिता के कैरियर के दौरान रूबरू हुए महत्त्वपूर्ण लोगों जिनमें किशोर साहू, कवि प्रदीप, बलराज साहनी, नरेंद्र शर्मा, सुमित्रा नंदन पंत, भगवती चरण वर्मा, अनिल विश्वास आदि का जिक्र करते हुए कहा कि इन सब से मैंने जो भी कुछ सीखा उसे अपने लेखन में बहुत श्रम के साथ समाहित करने का प्रयास किया। 1948 में नागर जी लखनऊ लौट आए थे और पूरी तरह लेखन को समर्पित हो गए थे। अचला नागर ने कम उम्र में अपने विवाह, विवाह के बाद पी-एच.डी और आकाशवाणी मथुरा में अपनी नौकरी तथा अपनी पहली फिल्म ‘निक़ाह’ से जुड़ी रोचक और मर्मस्पर्शी यादों को साझा किया।

उन्होंने वर्तमान समय में पाठकों की कमी की चर्चा करते हुए कहा कि आज के समय में अच्छे साहित्य को पढ़ने वालों की कमी महसूस की जा रही है। उनकी कहानी ‘शिवालय’ में सम्मिलित परिवारों की एकता के क्षरण और आधुनिकता की दौड़ में उनके बिखरने की कथा थी, जिसे पोस्टमास्टर रामचंद्र जी के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था। कार्यक्रम में प्रख्यात लेखिका ममता कालिया ने उन्हें साहित्य अकादेमी की पुस्तक तथा उनके साथ पढ़ी लेखिका कुसुम अंसल ने अंगवस्त्रम् प्रदान कर उनका स्वागत किया। कार्यक्रम के अंत में सुरेश ऋतुपर्ण, देवेंद्र कुमार बहल सहित अन्य प्रतिष्ठित साहित्यकारों के साथ संवाद के दौरान अचला जी ने अमृतलाल नागर और अपने से जुड़े कई प्रश्नों के उत्तर भी दिए।



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