नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी में आज साहित्य मंच कार्यक्रम के अंतर्गत प्रख्यात हिंदी कथाकार एवं नाटककार सुरेंद्र वर्मा ने अपने नए नाटक दाराशिकोह की आख़िरी रात के कुछ अंशों का पाठ किया। तीन अंकीय इस नाटक में सात पात्रों दारा शिकोह, औरंगजे़ब, शाहजहाँ, जहाँ आरा, रौशन आरा, जे़बुन्निसा, के आपसी संवादों द्वारा नाटक को प्रस्तुत किया गया।
सुरेंद्र वर्मा के नाटक गहन शोध और रोचक भाषा शैली के श्रेष्ठ उदाहरण रहे हैं। यह नाटक औरंगज़ेब और दारा शिकोह की विचाराधाराओं के टकराव और उनके लिए गढ़े गए तर्कों की गहरी जाँच पड़ताल करता है। नाटक के अंतिम अंश में दारा को फाँसी देते समय औरंगजेब की आवाज गूँजती है- शरीयत कानून वा दीन को दारा से कई तरह के ख़तरे थे इसलिए बादशाह सलामत पाक कानून को बचाने की ज़रूरत और सल्तनतो निजाम की वजूहात से इस नतीजे तक पहुँचे कि दारा के और ज़िंदा रहने से अमन को ख़तरा है। इसके बाद दारा का एक बेहद मार्मिक संवाद था, तुम्हारे और मेरे बीच सिर्फ मैं हूँ, मुझे हटा लो ताकि सिर्फ़ तुम रहो।
ज्ञात हो कि साहित्य अकादेमी, संगीत नाटक अकादेमी, कालीदास एवं व्यास सम्मान प्राप्त सुरेंद्र वर्मा का पहला नाटक सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक छह भाषाओं में अनूदित हो चुका है और इसका पहला प्रदर्शन अमोल पालेकर के निर्देशन में मराठी में 1972 में हुआ था। इसी पर अनाहत फिल्म भी केंद्रित है। उनके उपन्यास मुझे चाँद चाहिए को साहित्य अकादेमी पुरस्कार 1996 में दिया गया था। इस पर भी एक धारावाहिक का निर्माण किया गया था। सुरेंद्र वर्मा के 5 उपन्यास और 11 नाटक प्रकाशित हैं।