संघ अब एक पुरातनपंथी संगठन नहीं आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस संगठन है

जब इस किताब पर कट्टर वामपंथी मित्रों की समीक्षा पढ़ी तो लगा कि किताब के लेखक प्रो. बद्रीनारायण संघी हो गये हैं। हलाँकि मुझे यह भ्रम या संशय न था। मूल किताब पढ़ने के पहले समीक्षा पढ़ना कम खतरनाक नहीं होता है, इसलिए किसी की भी समीक्षा पढ़ने के पहले किताब जरूर पढ़नी चाहिए।

दशहरे की छुट्टी में इस किताब को अपने एक नजदीकी रिश्तेदार के घर देखकर पढ़ना शुरू किया। इसकी अंग्रेजी इतनी सरल और प्रवाहमय है कि मुझ जैसे कामचलाऊ अंग्रेजी जानने वाले को भी शब्दकोश देखने की जरूरत बहुत कम पड़ी है। किताब को पढ़कर (अभी दो अध्याय बाकी हैं) कहीं से यह नहीं लगा कि लेखक ने संघ की तारीफ की है।

लेखक प्रसिद्द समाजविज्ञानी हैं। उन्होंने समाज-विज्ञान की पद्धति से संघ के बदलते चरित्र और कार्यप्रणाली का अध्ययन प्रस्तुत किया है। आपका दुश्मन कितना शक्तिशाली है, उसकी कार्यविधि क्या है – इसको जाने-समझे बिना आप उसको पराजित नहीं कर सकते। इसीलिए इस किताब की शुरुआत निराला की प्रसिद्ध कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ की पंक्तियों से होती है :
‘शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन
छोड़ दो समर, जब तक न सिद्धि हो, रघुनंदन !’

यह संघ-परिवार से लड़ने वालों के लिए संदेश है। भूमिका सहित कुल 218 पृष्ठ , 41 पृष्ठ में संदर्भ, आभार ज्ञापन और इंडेक्स है। आप चाहें तो बाकी 41 पृष्ठ छोड़ सकते हैं। संघ परिवार के मायावी चरित्र को समझने के लिए यह किताब बहुत उपयोगी है। पर्दे के पीछे संघ की तैयारी, उसके अनुषंगी संगठनों की वर्ष भर जमीनी स्तर की गतिविधि, उसकी रणनीति-इन सब पर इसमें बात की गयी है।

संघ की राजनीति से हम सब परिचित हैं, उस पर बहुत लिखा / कहा गया है। यह किताब उसके आगे की कहानी बताती है। संघ से लड़ना है तो उसको ठीक से समझना भी होगा, तभी हम उसे रोक पायेंगे। संघ अब एक पुरातनपंथी संगठन नहीं रह गया है, वह टेक्नोलॉजी से लेकर कार्यशैली की अधुनातन प्रविधियों का उपयोग कर रहा है।

हिंदू समाज के हाशिए के समुदायों को भी अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपने उदार मुखौटे का उपयोग कर रहा है और वह अपने लक्ष्य में सफल है। हम उसे केवल पुराने नारों और भाषणों से नहीं हरा सकते हैं, उसको रोकने के लिए उसकी हर चाल को समझते हुए जमीनी स्तर पर ठोस तैयारी करनी चाहिए। मुझे लगता है इस किताब का छिपा हुआ संदेश यही है।

प्रो. बद्री नारायण आज की तारीख में किसी वामपंथी दल के कैडर नहीं हैं। यह किताब भी उन्होंने एक कम्युनिस्ट कैडर के नजरिये से नहीं, एक तटस्थता अकादमिक /समाजविज्ञानी की दृष्टि से लिखा है। यदि वे तटस्थ होकर न लिखते तो किताब केवल संघ की राजनीति तक ही सीमित रहती। मेरी समझ है कि इसे हर वामपंथी को जरूर पढ़नी चाहिए- संघ की कार्यप्रणाली को समझने के लिए। इसको पढ़कर संघ से लड़ने के लिए रणनीति बनाने में हमें मदद ही मिलेगी।

(समीक्षक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं।)

First Published on: October 17, 2021 6:54 PM
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