बीस जनवरी की सुबह
गजानन मंदिर की छत पर आ बैठा है नीलकंठ
देख रहा है कोतवाल पंछी को एकटक
दोनों के बीच एक तितली उड़ी जा रही है
जा बैठी है ताड़ के पेड़ पर
मैं देखती हूँ तितली की उड़ान
कोतवाल पंछी की आँख
नीलकंठ का रंग
ताड़ के पेड़ के पीछे से झाँकता आधा सूरज
देखता जाता है मुझे
परवीन शाकिर की नज़्म वाले –
पूरा दुख और आधा चाँद की तरह
आधे चाँद जैसी होती है मीनार की आधी गुम्बद
आधी मीनार को कर जाती है मुकम्मल
मीनार की बात से चारमीनार की याद आती है
यह चारमीनार हैदराबाद में क्यों खड़ी है अब तक
चली क्यों नहीं आती पास
जैसे चली आती है किसी की भी याद चल कर
जैसे बीस जनवरी को अचानक
याद पानीपत की चली आयी है
जहाँ रितु और रेनू के साथ पीते थे चाय के प्याले
दिन के छत्तीस गिन कर
वे प्याले भी अब उस शहर के पास नहीं रहे
तीन दर्जन की गिनती में बँट गए
वड़ोदरा होशियारपुर फलटन में बराबर
जो अब भी खनखनाते हैं
जब मिलती हैं आपस में शहरों की टेलिफोन तारें
मैं सोचती हूँ
यह तार न होती
तो दोस्तों की आवाज़ कैसे आती चल कर
सूरज कैसे उतरता पठार की दीवार से
पंछी कैसे जाकर चूमते गुम्बद
तारें ही तो हैं जो जोड़ती हैं
देश की आँख को दुनिया से
देखते-देखते
जनवरी की यह सुबह
याद दिला जाती है
श्री 420 फ़िल्म के राज की छवि
सड़क पर चलते जाते वह गाते हैं-
मेरा जूता है जापानी
यह पतलून इंग्लिस्तानी
सर पर लाल टोपी रूसी
फ़िर भी दिल है हिन्दोस्तानी
गजानन चौक से गुज़रते हुए मैं सोचती जाती हूँ
कैसे जुड़ जाते हैं तार दिलों से
गाँव का दिल कस्बे से
कस्बे का महानगर से
देश का दुनिया से
जैसे यह गीत जितना हिन्दोस्तान का है
उससे ज़्यादा रूस में गाया जाता है
जापानी जूते पहन कर
हिन्दोस्तान की सड़क पर चलता आदमी जापान तक पहुँच जाता है
अदब से रखी सर पर लाल टोपी रूसी
पर इंग्लिस्तानी पतलून के अंदर सीना सच्चे हिन्दोस्तानी का धड़कता है
यह गीत ही तो है
वसुधैव कुटुम्बकम् की असल परिभाषा
देशों की सरहद को आपस में जोड़ते जाते गीत के इस तार को मैं उंगली पर लपेटती जाती हूँ
जा बैठती हूँ मालजयी मंदिर के बाहर लगी पत्थर की बैंच पर
देखने लगती हूँ ताड़ के पेड़ के पीछे से झाँकते साँझ के सूरज को
जो पेड़ से हाथ छुड़ाता जाता है
इक्कीस जनवरी की सुबह से हाथ मिलाने के लिए।