
स्मृतियाँ
इस बार भी
स्मृतियों ने
चुने हैं कुछ दृश्य
यह जानते हुए भी कि
किसी दिन
ये भी
धुँधले हो ज़हन से हट जाएंगे
स्मृतियों का
एक पुराना संसार खाली होगा
नई संसार को भरने के लिए
मेरे करीब ऐसी सुविधा नहीं
मुझे अपनी सबसे हसीन स्मृतियां बहा देनी पड़ी है
बार-बार मन के सतह पर उभर आने वाली स्मृतियों को
चुपके से इकट्ठा कर एक दिन उनकी समाधि बनाने को बाध्य होना पड़ा है
मुझे अपनी स्मृतियों को नज़र लगने का खतरा था
स्मृतियों पर किसी जादू-टोने से मैं डरती थी कभी
इसी बीच मैंने अपनी एक पुरानी
मगर प्रिय स्मृति को कह दिया है
‘अलविदा’
मगर मैं समेटती रखूंगी स्मृतियाँ
जल में बहा देने के लिए
समाधि बना देने के लिए।
विलास की वस्तु
अभी-अभी अंजाने में
दो सपनों आपस में टकरा गए हैं
चोट तो है,
मगर फूल जैसी मुलायम
नींद में कोई सपना दूसरे सपने से आगे निकलने की होड़ में नहीं दिखता
एक सपना पूरा समय लेकर उकेरता है
नींद में सतरंगी इंद्रधनुष
दूसरे को अपने पंख फैलाकर
नींद के आकाश में फड़फड़ाने का पूरा अवसर मिलता है
शायद यही सपना
नींद से बाहर आकर
अपनी बाकी की उम्र जिएगा
यह कवि सिर्फ इतना ही जानता है सपनों और नींद के बारे में
वो जो तकिया बगल में लेकर बिस्तर पर जाने की जल्दी में है
शायद वह ही ज्यादा बता सकेगा
नींद की तलब के बारे में
नींद के जल की तासीर के बारे में
जरूर वह सपनों के बारे में भी कवि से अधिक जानता होगा
कवि तो दिवास्वप्नों का अभ्यस्त है
नींद
उसके लिए विलास है।
धूल पर भरोसा
हमारी उछल-कूद ही
उन बेहद संकरी गलियों को
उदार बनाती थी
इन गलियों से गुज़रते हुए
हमारी जेबों में हमेशा प्रेम-पत्र रहते थे
जिन्हें उनके ठिकाने पर पहुंचा हम
गली की ओट से प्रेमियों के चेहरे की
मुस्कुराहट देखा करते थे
गलियों की महीन तंग सांसें
बड़े से बड़े बोझ से भी दबा नहीं करती थी
दादी इसका कारण
गलियों का बड़ा ज़िगरा होना बताया करती थी
हमारी मसें इन्हीं गलियों में फूटी थी
चौड़ी सड़कों पर ठीक वैसे ही चौंक जाया करते थे
जैसे गलियों से निकल
अचानक चौराहे पर पहुँच कर
गाय चौंक जाती है
चौंकना भी अब गुज़रे ज़माने की बात हुई
बचपन की गलियों की याद पर भी
जैसे कोई झाड़ू लगा गया है
उन गलियों की धूल का ही अब भरोसा है
शायद धूल ही लौटा लाए
वे स्मृतियां
जहाँ गलियां ही हमारी गोद थी
महकते थे जहां गुलाबों से प्रेम पत्र
सचमुच अब सिर्फ
धूल पर ही भरोसा बचा हुआ है।