दुबई में दो दिन तीन रातें…


कल एक पाकिस्‍तानी ड्राईवर जावेद मोहम्‍मद हमें घुमाने ले गया। शारजाह की सड़कों पर उसने यहां का सब इतिहास बताया। यहां के लोग राज करते हैं। पाकिस्‍तान, बंगलादेश, भारत, श्रीलंका से आए लोग काम करते हैं। यहां पानी खरीदा बेचा जाता है। यहां के लोग शुरू में कुछ नहीं जानते थे। केवल घोड़ों पर बैठकर खजूर लेकर दूर देश बेचने जाते थे और वहां से अपने लिए पीने का पानी लाते थे। बाद में 1972 के बाद ही दुबई चमका है।



रात बारह बजे हैं। चारों ओर जगमगाता हुआ दुबई है। इस बार यहां भी खूब दीपावली मनाई गई ।

भारत में अभी-अभी दीपावली गई है पर यहां सब तरफ दीपावली ही दीपावली है सब और। सब ओर ऐसी जगमगाहट है कि आंखें चौंधिया जाए। हवाई जहाज की खिड़की से भी देखा था – उतरते हुए सब ओर दीपमालिकाएं। हम लोग साहित्‍य अकादेमी की ओर से शारजाह पुस्‍तक मेले में कविता पाठ करने आए हैं सो हमारे स्‍वागत में एक अमेरिकी लड़का अपने हाथों में हमारा नाम लिए खड़ा था। हम तीनों उसके पास गए। हम तीनों पानी-गुजराती के विनोद जोशी, कश्‍मीरी के अजीज हमी और मैं। वह हम तीनों से प्रेम से मिला और कस्‍टम आदि की औपचारिकताएं पूरी करने हमें आसान और छोटे रास्‍ते से ले गया।

हमने देखा कि रात बारह एक बजे भी लाईन में खड़े हुए कई स्‍त्री-पुरूष और बच्‍चे थे। हम तो आसानी से निकल गए पर उन्‍हें पता नहीं अभी कितनी रात ऐसे ही खड़े रहना होगा। पेड़-पौधों का नामोनशिान नहीं-हरियाली भी कम है। सामान लेने वाली जगह पर भी हमारी मदद की आंध्र का एक युवक था।  सब यहां रोजगार में लगे हैं। अमेरिकी लड़का भी छुटिटयों के दौरान हमें लाने लिपाने का काम कर रहा है। बाहर आएं तो हर जगह सफेद लबादे में अरब पुरूष – इधर उधर डोलते हुए। एक बार गीतो इतने सब लोगों को एक ही वेशभूषा में देखकर दिल झूम-झूम करें – घबराएं। पर हमारा ड्राईवर बायीं और बैठकर गाड़ी चलाने लगा। मैं चौंका।

बरसो पहले अमेरिका में ऐसा देखा था। यहां भी बायीं ओर । खैर।  कोई कह रहा था सारी दुनियां में गाड़ी बाई ओर से चलाई जाती है केवल हिन्‍दुस्‍तान को छोड़कर।  इस पर हमारा ड्राईवर बोला नहीं, जापान में भी गाड़ी दावी और से चलाते हैं।  हिन्‍दी अच्‍छी बोलता था वह।  मीलों तक हमारे साथ एयरपोर्ट ही चलता रहा।  इतना विशाल एयरपोर्ट है और विमान ही विमान सड़क पर जैसे पड़े हुए। मैट्रो चल रही थी पर हमसे कहीं अधिक साफ सुथरी और मजबूत है खंबों पर रंगी हुई नहीं है। जैसे किसी फलाईओवर पर चल रही है।

ड्राईवर ने बताया-बारशि यहां होती नहीं है। 94 में एक बार दो तीन दिन तक पानी बरसा था। गर्मी थी रात में भी। आर्यन होटल में रात को थककर पसर गए। पानी दो छोटी बोतल एक दिन में देते हैं। बाकी आप खरीदिए। या मत पीजिए। कमरे का फ्रिज खाली है। उसके चिप्‍स बगैरह रखे थे-अब नहीं हैं – वे भी चार्जेबल हैं। रात में कोई कमरे से छोड़ने नहीं आया तो फ्रिज में बचा है-देखा नहीं। रात में कमरे की खिड़की से जो नजारा देखा था वो सुबह नदारद था। जगमग सुबह आवरा अहेरी हर ले गया था। रात में सामने का जो अजायबघर जगमग-जगमग कर रहा था। सुबह वह थककर जैसे निष्‍प्राय: होकर सो गया था। उसी के पास एक लंदन आई जैसा झूला भी है। झूले के पास एक पुल और उधर मैरीन ड्राईव जैसा एक तरु इमारतें और एक तरु पानी1 सड़क पर केवल कारें जाती हैं। वाहन नहीं। आदमी दखिते नहीं हैं कहीं भी। कारें जैसे अपने आप चल रही हैं।

आर्यान होटल भी बीस मंजिला है। पन्‍द्रहवीं मंजिल की खिड़की से यह सब देखकर लिख रहा हॅूं। पहली बार पन्‍द्रहवीं मंजिल पर शायद ठहरा हॅूं।  इससे पहले न्‍यूयार्क में ठहरा था शायद विश्‍व हिन्‍दी सम्‍मेलन में भाग लेने गया था। जब मेरे सामनह ही 25वां मंजिल अलग खड़ी है वो भी रिहायशी ईमारत नजर आ रही है क्‍योंकि बाहर बालकनी में कपड़े सूखते दिखते हैं।

इसलिए रात में भी ए सी का मीटर चालू किए बगैर सो गया था। हल्‍की रजाई अलग ओढ़ ली थी। रात में ही गर्मी लगी पर क्‍या करता – पता न था क्‍या करूं क्‍या न कंरू। सुबह रिसेपशन फोन किया तो खराब होगी बिजली बाल। आएगा तो भेजेंगें। भेजा ही नहीं। सुबह नाश्‍ता करके आके फिर सो गया। अभी तीन बजे फोन किया कि चालू कराओ तो बिजली वाले सीढ़ी लेकर आ गए देखने। देखा तो सीवर ही बंद था। मुझे बताया नहीं कि कैसे चालू करते हैं। उन्‍होंने एक मिनट में चालू करके 24 पर कर दिया अब ठंडी हवा आ रही है। बाहर तापमान 37 डिग्री होगा। इसी तरह मोबाईल चार्जर की पिन नहीं मिल रहा है। मरे पास जो पिन है वो बटन में सीधे घुसती नहीं है।

दुबई में पानी महंगा है पेट्रोल सस्‍ता है। पर पेट्रोल तो पी नहीं सकते। पीने के लिए तो पानी ही चाहिए। यहां से वहां तक कहीं भी सड़क पर बिजली का तार नहीं दखिता। बिजली के तार जमीन के नीचे छुपे हैं। बाहर फैले हुए नहीं हैं।

नाश्‍ते के कमरे से देखा तो वहां खाड़ी के किनारे एक बड़ी-सी केतली रखी थी। इतनी बड़ी चाय के केतली सीमेंट की बनी कम ही देखी है। आसपास बगीचा था। नाश्‍ते पर कई भारतवासी मिले। परिचय हुआ। कश्‍मीर से कन्‍याकुमारी का संगम हो गया। पुस्‍तक मेले में भी ऐसा ही संगम होगा।

पुस्‍तक मेले में अच्छी खासी भीड़ थी। लोग, तमाम लोग, बच्‍चे कच्‍चे सभी। प्रोण विमान पहली बार देखा-सबकी तस्‍वीरें ले रहा था। जगमक करता हुआ। उमेश त्रिपाठी को सुनने के लिए भीड़ ज्‍यादा थी। हमारी तरफ भ्‍ज्ञी धीरे-धीरे श्रोता जुटे। मलयालम के कवि को सुनने के लिए ज्‍यादा थे। गुजराती और मलयालम के कवि गा सकते थे उन्‍होंने गाया। लोगों को मजा आया। मैंने पहले पहल दो कविताएं सुनाई और बाद में भ्‍ज्ञी एक लंबी। हो गया काम। क्‍यों मैं चिंतित था इतने दिन – क्‍या सुनाऊंगा – कैसे सुनाऊंगा । लो हो गया यह सब भी। अब कल और परसों निश्चित होकर घूमना घामना।

पुस्‍तक मेले से लौटते हुए हम लोग एक माल में गए। वहां केरल का एक रेस्‍टोरंट था। उसमें हमले मसाले डोसे और वेज़ बिरयानी आदि खाए।  थोड़ी देर लगाते हैं पर गरमा गरम अच्‍छा देते हैं। ऐसा डोसा तो दिल्‍ली में भी कम मिलता है। वेज़ थाली आदि भी मिलता है। वहां अच्‍छी गरमागरम चाय मसालेदार भी मिली। यहां होटल में तो डिप-डिप करके परेशान हॅूं।

रात दस बजे तक भी मेले में भीड़ थी। बच्‍चे बढ़े सभी थे। सफाई थी। सुरक्षा व्‍यवस्‍था थी। चैकिंग के समय ही चाकू, लाईटर निकाल लिए थे।

लोगों ने मेले में जाने के लिए लाईटर तक फेंक दिए। मेले का कोई शुल्‍क नहीं रखा गया है। इसलिए दुबई से भी और दूर-दूर से भी लोग आए हैं। मेला रोज शाम को 4 बजे से 11 बजे तक खुलता है। मलयाली यहां बहुत हैं। रात में 11 बजे तक वे हमारे केरल से आए कवि को सुनते रहे। लगभग 2000 श्रोता विभिन्‍न वर्ग के सभागार में थे। उन्‍हें तो मुफत में कवि मिल गया था। बाद में कवि यहां भूखे होटल में आए यहां भी रेस्‍तरां बंद हो गया था। खाने की तलाश में भटके। उनका कोई श्रोता उन्‍हें खाने पर नहीं ले गया। सब मुफ्त में वाह वाह करते हैं। सुबह नाश्‍ते पर बात करने के लिए हमारे मलयालम कवि से हमें अंग्रेजी का सहारा लेना पड़ा -वे बिल्‍कुल हिन्‍दी नहीं बोल पाते हैं। हमारे अपने भारतीय कवि से बात करने के लिए हमें विदेशी धरती पर विदेशी भाषा का सहारा लेना पड़ता है। भारत में साऊथ के लोग साऊथ के लोगों से एक भाषा में बात नहीं कर पाते- कन्‍नड़, तमिल, मलयालम सब अलग-अलग भाषाएं हैं-साहित्‍य अकादमी के सचिव दक्षिण भारतीय आंन्‍ध्र के हैं उन्‍हें दक्षिण भारतीय मलयालम के कवि से बात करने के लिए अंग्रेजी का सहाला लेना पड़ता है। कैसी विडंबना है।

यहां दुबई में इतने मलयाली कैसे हैं। 1960 के दशक में जब केरल में बेरोजगारी बढ़ गई थी – भारी संख्‍या में मालाबार प्रांत के लोग बगैर पासपोर्ट बगैर वीज़ा खाड़ी के देशों की ओर भागे – वे जैसे तैसे यहां पहुंचे। कई तो समुद्र में कूदकर तैरकर आ गए। फिर यहां इतनी गर्मी में भ्‍ज्ञी मजदूरी की बड़ी-बड़ी बिल्डिंगे बनाई-अरब देशों के लोगों के मित्र बन गए और दुबई की समृद्धि में योगदान दिया। सब से ऐसा ही चल रहा है।

होटल में आर्य बुक डिपो के गुप्‍ता जी दिल्‍ली से आए हुए मिले। मेले में प्रकाशक के रूप में यहां आए हैं। साथ में उनका भाई और बेटा भी थे।

कल एक पाकिस्‍तानी ड्राईवर जावेद मोहम्‍मद हमें घुमाने ले गया। शारजाह की सड़कों पर उसने यहां का सब इतिहास बताया। यहां के लोग राज करते हैं। पाकिस्‍तान, बंगलादेश, भारत, श्रीलंका से आए लोग काम करते हैं। यहां पानी खरीदा बेचा जाता है। यहां के लोग शुरू में कुछ नहीं जानते थे। केवल घोड़ों पर बैठकर खजूर लेकर दूर देश बेचने जाते थे और वहां से अपने लिए पीने का पानी लाते थे। बाद में 1972 के बाद ही दुबई चमका है। ये सब आलीशान ईमारतें सभी बाहरी परदेसियों की बनाई हुई है। चाय भी पिलाई एक धिरम वाली यानी 17 रूपये की एक चाय। खजूर लोग 10 धिरम की एक किला। तरफ खजूर चखी। खजूर का पेस्‍ट भी था। उसकी दो बीवियां हैं एक पाकिस्‍तान की ओर से एक भारत की । ये दोनों प्रेम से रहती हैं एक ही घर में एक ही छत के नीचे उसके लिए लजी़ज खाना बनाती है। जब वे दोनों भारत पाकिस्‍तान की होकर भी प्रेम से रह सकती हैं तो भारत-पाकिस्‍तान क्‍यों नहीं। उसके पाकिस्‍तान की बीवी से बच्‍चे भी हैं ।  पूना वाली भारत की तो अभी पिछले साल ही आई है।  दोनो ब्‍यूटी पार्लर चलाती हैं। उसने 1500 धिरम में एक मकान तीन कमरों का किराये पर लिया है। शरजाह से थोड़ा दूर है – पर है।  वह अमज़ान प्रान्‍त भी घुमाने ले गया।

बाज यहां का राष्‍ट्रीय पक्षी है। शाहरूख खान पर यहां की लड़किया मरती हैं।  वह यहां आता रहता है। सिनेमा लोग बहुत देखते हैं। शाहरूख के बाद सलमान खान को लड़कियां चाहती हैं। यहीं वह प्रसिद्ध क्रिकेट का मैदान है।

रास्‍ते भर पुस्‍तके मेले में आने वाले लेखकों के बड़े-बड़े रंगीन पोस्‍टर लगे थे। इनमें से हम भारतीय लेखकों में से किसी का नाम ही नहीं थो फोटो तो दूर की बात है। मेले में भी यह पता लगाना मुश्किल था कि भारत से कौन-कौन लेखक कवि आये हैं।  हम अपने लेखकों को ठीक। से प्रोजेक्‍ट नहीं करता।

यहां भूमिगत बिजली है। पर सीवेज प्रणाली नहीं है। होटली में नीचे टैंक बने हुए हैं। वहां का पानी (गंदगी) इकट्ठी करके बड़ी-बड़ी ट्रक गाडि़यों में शोधन के लिए ले जाया जाता है और यंत्र के माध्‍यम से उस जल का का संशोधन करके उसे फिर उपयोग में (पीने के नहीं) लाया जाता है। नहाने-धोने सिंचाई आदि के लिए। इसलिए पानी की बर्बादी रोकी जाती है । ट्रैक से जो गंदा पानी निकाला जाता है वह उन्‍हीं सड़कों से ले जाया जाता है जहां पर गंदगी नाममात्र को नहीं है। अगर किसी ने सड़क पर गंदगी जरा-सी भी डाली या ट्रक से गंदा पानी नीचे टपक गया तो एक दो बूंद गिरने पर भी 70 हजार धिरम का जुर्माना लगेगा। ये गाडि़यां ऊपर से अच्‍छी तरह ढंककर बांधकर ले जाई जाती है ताकि गंदगी बाहर न फैले-बदवू बाहर न आए। हमने भी कल आते-जाते सड़क पार करते ऐसी गाडि़यां आते जाते उन्‍हें रास्‍ता देती चलती हैं।

यहां ऊंट दौड़ भी होती है। जिसमें निशुल्‍क प्रवेश दिया जाता है पर अगर आप दस रूपये का एक टोकन लोगो तो आपको एक टायोटा गाड़ी भी निकल सकती है। तुरंत आपको टायोटा गाड़ी की चाबी दे दी जाएगी या उतनी ही राशि का चैक दे दिया जाएगा।

पेट्रोल यहां सस्‍ता है। हिंदुस्‍तान का आधा ही है। गाडि़यां भी, घडि़यां भी, लैपटाप आदि, सोना सस्‍ता है। लोग दुबई सोना खरीदने आते हैं यहां 34 कैरट का सोना मिलता है। अमिताफ बच्‍चन ने कल्‍याण ज्‍वैलर्स के साथ मिलकर यहां 24 जगहों पर सोने की दुकाने खोली है।

हमें कवितापाठ के लिए, आमंत्रित कवि होने के कारण पुस्‍तक मेले के आयोजकों ने धन्‍यवाद स्‍वरूप टोकन अमाउंट 2000 धिरम दे दिए। जो यहीं घूमने-फिरने में खर्च हो जाएंगे। अकेले बुर्जुखलीफा (संसार की सबसे ऊंची इमारत ) पर जाने का टिकट ही 500 धिरम है, लगभग आठ हजार रुपये। एक गरीब हिंदी कवि की कहां हिम्‍मत थी इतना महंगा टिक्‍ट लेने की। पहले से बुक कराने पर सामान्‍य टिकट 125 धिरम है लगभग 2000 रूपये। तत्‍काल कभी भी जाने के लिए 500 धिरम पानी और आठ हजार रुपये देने होंगें।

इस नये बने राष्‍ट्र ने इतने कम समय में इतनी उन्‍नति की है कि ट्राम, बस, मेट्रो, हवाई जहाज सब वहां हैं। बस स्‍टेंड पर भी ए सी लगा है, मेट्रो स्‍टेशन पर भी। सब कांच के बने हैं। ट्रेफिक नियमों में गलती से भी चूक हो जाने पर 30, 40 हजार आम बात है। लोग सावधानी से चलते हैं। कानून से डरते हैं। तभी वहां इतनी सुगमता से वाहन चलते हैं। ऊंट अपने बाडे में रहते हैं, उनको देखने वाले भी रहते हैं पर कभी गलती से कोई ऊंट सड़क पर आ जाए और उसको टक्‍कर लग जाए तो गलती ड्राईवर की होगी जुर्माना ड्राईवर को 70 हजार का भरना पड़का क्‍योंकि ऊंट तो जानवर है उसको तो अक्‍ल नहीं है – आपको तो अक्‍ल है । गलती आपकी है।

बाज यहां का राष्‍ट्रीय पक्षी है। बाज एक प्रतीक की तरह इस्‍तेमाल किया जाता है वहां। नोट आदि पर भी उस के चित्र बने होते हैं। कितने लोग, मार तमाम लोग हमारे साथ एअर इंडिया के ड्रीमलाईनर से वापस आए। कितना सामान लेकर आए। अपने सगे संबंधियों के लिए । हाथ में उठाकर भी सूटकेच में भरकर भी। विमान में हर जगह रखकर सामान।

पुस्‍तक मेला क्‍या था। पूरा एक्‍सपो था। पूरा वातानुकूलित था। बाहर के तापमान का उस पर कोई असर नहीं। फार लव आफॅ द रिटन वर्ल्‍ड, ए बुक फॉर एवटीवन, जैसे नाटों के साथ पुस्‍तक मेले का प्रसार जगह-जगह किया जा रहा था। किडस कार्नर अलग था। कल्‍चरल कैफे, पोएट्री कैफे अलग था। इनके बारे में अलग से प्रचारित करने वाली पुस्तिकाएं थी।  इस बारे में हमारे पुस्‍तक मेले के आयोजकों को सोचना चाहिए। कितने प्रेम से कितने उत्‍साह से इतना बड़ा आयोजन किया जा सकता है।

आखिरी दिन हम गोल्‍ड सुक में गए पानी स्‍वर्णिम चौक। वहां सोने की बड़ी-बड़ी कई दुकानें हैं। 18 कैरेट से लेकर 22, 24, 30, 34 कैरेट का सोना भी मिलता है। हिन्‍दुस्‍तान में चलने वाला 22 कैरेट का सोना कुछ सस्‍ता है। वो चैन, अंगूठी, मंगलसूत्र की शक्‍ल में देह पर धारण करके लाया जा सकता है।

मेरे पास इतना पैसा कहां।  मैं अपने लिए और अपनी पत्‍नी के एक एक-एक अंगूठी ले आया। लोगों ने एक नहीं दो-दो चैन खरीदीं। किसी ने डौलर में, किसी ने धीरम में भुगतान किया। खजूरे लीं। बादाम, किशमिश, काजू लिए।

उस बाजार के पास ही नावें खड़ी थीं वहां परंपरागत रूप से नाव पर लादकर सामान बाजार में बेचने के लिए लाया जा रहा था।  कुछ सामान ऐसे ही बंडलों बंद बिखरा हुआ था।  स्‍थानीय लड़के लड़की वहां अठारह कैरट का सोना भी पसंद कर रहे थे।  वह भी अच्‍छा चमक रहा था।  मैं ले आता, पर हिंदुस्‍तान में चलता नहीं है। हिंदुस्‍तान में सब बाईस कैरट का पसंद करते हैं। मुझे सोने की पहचान नहीं है। पीतल की पहचान नहीं है, बस लोहे की पहचान है। मैं इंसान के भीतर के लोहे की पहचान कर सकता हॅूं।

हमें बुर्ज खलीफा और अंतलांतिस होटर (हैप्‍पी न्‍यू ईयर फिल्‍म में दिखाया गया) दिखाने ले गया पाकिस्‍तान ड्राईवर एक जगह जाफरानी चाय पिलाने ले गया। पैसे भी उसी ने दिए एक-एक धिरम की चाय भी यानी 17 रूपये। भारत में भी ऐसे ही मिलती है। कई जगह शाहरूख, करीना, अमिताभ की तस्‍वीरें देंखी। वह हमें एक स्‍टोर में भी ले गया।  1 टू 10 धिरम स्‍वेटा यानी एक धिरम से दस धिरम तक में सब चीजें थीं। वहां कई चीजें अपने काम की दिखी। घरेलू सामान, पेन, शेव आदि के सामान। कपड़े, बर्तन, जूते भी थे। लेडिज पर्स आदि भी। दस धिरम के हुए भी तो 170 के पास हिंदुस्‍तान में भी कहां मिलते हैं। जूते आदि भी थे। शारजाह दुबई से सस्‍ता है। पन्‍द्रह सौ धिरम में मकान किराये पर मिल जाते हैं, कई लोग काम दुबई,आबूधामी में काम करते हैं पर रहते शारजाह में हैं।

दुबई में तेल नहीं होता है। आबूधाबी में होता है। आबूधाबी यहां सब रियासतों पर राज करता है। दुबई का काम यहां आने वाले पर्यटकों केवल पर चलता है। अकेले बुर्ज खलीफा पर हर साल लाखों पर्यटक आते हैं। जिस दिन हम वहां थे उस दिन शाम को ही वहां पर्यटकों की इतनी ज्‍यादा भीड़ थी कि लिफट में दो तीन बार चढ़ना भी मुश्‍किल जान पड़ा। आमतौर पर सभ्‍य मानी जाने वाली अमेरिकी पर्यटक माएं अचानक मेरे सामने अपनी प्रेम (बच्‍चा गाड़ी) घुसा देती थी और उसके पीछे-पीछे पूरा कुनबा चढ़ जाता था। हमें बाहर ही खड़े रहना पड़ा।

कई पर्यटकों की कई जोड़ों की कई परिवारों की वहां भीड़ थी। सब ऊपर ही नहीं जा रहे थे। वे वहां उस जगह खड़े थे जहां थोड़ी देर में फव्‍वारे अपना नृत्‍य  दिखलाने वाले थे। हर 20 मिनट में वे फव्‍वारे ऊपर उठ-उठकर सुंदरियों की तरह नृत्‍य करने लगते थे। रोशनी और संगीत के साथ कितना दिव्‍य अनुभव था। फव्‍वारे पांच-पांच छह-छह मंजिल तक उठ जाते थे। जोश में आकर नृत्‍य करते थे। पर्यटक इनकी विडियो बनाने मं लगे थे। बुर्ज खलीफा पर चढ़ना हमारे नसीब में न था लेकिन ये फव्‍वारे हमें इतना सुकुन दे रहे थे कि कोई मलाल न रहा। यह नृत्‍य तो सबके लिएा निशुल्‍क था। इसके लिए अगर दस धिरम का टिकट लगा दिया जाए तो भी लोग जाने को तैयार हो जाते।

बुर्ज खलीफा केवल एक मीनार ही नहीं है। उसमें 124 मंजिल पर भी रिहायशी मकान हैं। 148 मंजिल पर जाकर नजारा लिया जा सकता है। वहां रेस्‍टोरेंट है। म्‍यूजियम है। कई स्‍मारक चीजें बिकती हैं। 148वीं मंजिल पर टच द स्‍काई (आसमान को छुओ) डेक बनाई गई है। बुर्ज खलीफा 163 मंजिला मीनार है। संसार की सबसे ऊंची मीनार। 555 मीटर ऊंची है। चीन में गुआंग झाऊ केन्‍टर ऑवर 488 मीटर ऊंची है।

इसका गिनिज बुक ऑफ वर्ल्‍ड रिकार्डस में मानव द्वारा निर्मित सबसे ऊंचे स्‍थान के रूप में उल्‍लेख किया गया है। इस सबसे ऊंचे प्‍वाईंट पर जाने का एक आदमी का एक टिकट 8000 रूपये का है। अकेले दुबई के नाम पर 130 गिनिस बुक आफॅ वर्ल्‍ड रिकार्डस है। बुर्ज खलिफा के नाम पर छह वर्ल्‍ड रिकार्ड हैं, संसार की सबसे ऊंची इमारत, मानव द्वारा निर्मित सबसे ऊंची इमारत, विश्‍व की सबसे ऊंची लिफ्ट, विश्‍व के सबसे ऊंचे स्‍थान पर बना रेस्‍तरां, सबसे ऊंचे स्‍थान का रिहायशी इलाका और सबसे ज्‍यादा मंजिलें। पहले इसे बुर्ज दुबई नाम दिया जाना तय हुआ था पर 2008 की वैश्विक मंदी के दौरान इसका निर्माण कार्य खटाई में पड़ गया। खलीफा की आर्थिक मदद से ही दो इमारत पूरी हो पाई। इसलिए रातो रात इसका नाम बुर्ज खलीफा कर दिया गया। इसको बनाने में सुरक्षा की पूरी ऐहतियात बरतने के बावजूद 65 मजदूर मारे गए। रातो रात गर्मी में भी वे सब इसको बनाने मं लगे रहे। दुबई में ही समुद्र नीचे बनी हुई सुरंग भी है। दुबई रातों रात विश्‍व के पर्यटक मानचित्र पर ऐसे ही शीर्ष पर नहीं छा गया है।

दुबई में हमने खाड़ी क्षेत्र की पहली ट्राम सेवा का ट्रायल रन भी देखा। इसका पहला चरण एक अरब 25 करोड़ डालर की लागत से 11 नवंबर को शुरू हो गया है। शाही युवराज शेख हमदान बिन मुहम्‍मद बिन राशिदाल मख्‍तूम ने अमीरात में इस अत्‍याधुनिक वातानुकूलित ट्राम सेवा का उदघाटन किया। वातानुकूलित ट्राम तो हमारे ख्‍याल में दुनिया में कहीं नहीं है। कलकत्‍ता में पंखे जरूर लगे होते हैं। दुबई में वातानुकूलित ट्राम की जरूरत थी क्‍योंकि यहां गर्मियों में तापमान 50 डिग्री तक पहुंच जाता है। केवल दस किलोमीटर तक चलने वाली इस रेल परियोजना में 2008 के वैश्‍विक वित्‍तीय संकट के कारण तीन वर्ष की देरी हुई है। धीरम (लगभग 85 लाख रूपये) की लागत से बनाया जा रहा है। इसे भारत सरकार बनवा रही है। अजमान में भारत सरकार भारतीय सामजिक केन्‍द्र भी बना रही है जिसकी लागत 50 लाख रूपये आएगी।

कमरे की चाबी ऐसी थी कि जरा सा छुआओ तो दरवाजा खुल जाता था। वापसी में जरा सा बाहर निकले तो अपने आप बंद हो जाता था। सामान लेकर नीचे आया। फ्रिज का चाजॅबल हिसाब करने को बोला। चैक करके आओ।  मैंगो जूस और कुछ खादय पदार्थ छोड़ आया था। वे तो नहीं लगाए लेकिन दो चॉकलेट जो नहीं खाए उनका धिरम मुझसे मांगे गए। मैंने कहा – दो कमरे के फ्रिज में रखे ही नहीं गए और वैसे भी मैं मधुमेह के कारण चॉकलेट नहीं खाता। मैनेजर और रिसेप्‍शन की बात हुई। विवाद हुआ। मैं भी अड़ा रहा। आखिर आर्यन होटल के मैनेजर मनीष के बिना पर हस्‍ताक्षर के बाद मामला सुलझा। मनीष भारत में हैदराबाद के हैं। उनका तीन सितारा होटल 300 धीरम रोज (लगभग 4500-5000) रुपये का है जो भारत के होटलों से भी सस्‍ता है।



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