विश्व पुस्तक मेला 2025: प्रख्यात मैथिली लेखक सुभाष चंद्र यादव से विद्यानंद झा ने की बातचीत

हिंदी प्राध्यापक होने के बावजूद अपने लेखन के लिए मैथिली भाषा चुनने के सवाल पर उन्होंने बताया कि वे सुपौल के स्टेशन पर मैथिली की पत्रिका मिथिला मिहिर देखा करते थे और उनका मन होता था कि उनकी भी रचना छपे।

नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी द्वारा आज विश्व पुस्तक मेले में प्रख्यात मैथिली लेखक सुभाष चंद्र यादव के साथ ‘लेखक से संवाद’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। उनसे बातचीत प्रतिष्ठित लेखक विद्यानंद झा ने की। अपनी रचना-यात्रा के प्रारंभ के बारे में बताते हुए सुभाष चंद्र यादव ने कहा कि उनका पहला कहानी-संग्रह 1983 में छपा था। हिंदी प्राध्यापक होने के बावजूद अपने लेखन के लिए मैथिली भाषा चुनने के सवाल पर उन्होंने बताया कि वे सुपौल के स्टेशन पर मैथिली की पत्रिका मिथिला मिहिर देखा करते थे और उनका मन होता था कि उनकी भी रचना छपे।

रमानंद रेणु आदि के प्रभाव से उन्होंने मैथिली में ही लिखना चुना। उनके लेखन में उतार-चढ़ाव की बजाए सीधा स्वाभाविक वर्णन होने की बात पर यादव जी ने कहा कि जीवन में जैसी सहजता होती है वे वैसा ही लिखना चाहते हैं। अपने तीन चर्चित उपन्यासों के बारे में बताया कि ये तीनों उपन्यास सच्चे पात्रों पर लिखे गए हैं। इन पात्रों का चुनने का कारण यह है कि उनके जीवन की जो समस्याएँ हैं वे सार्वभौमिक है और हम सबका वास्ता उन सबसे अवश्य पड़ता है।

उपन्यासों में अवसाद की उपस्थिति के बारे में उन्होंने कहा कि मेरा जीवन भी बहुत संघर्षशील रहा है इसलिए उसका प्रभाव मेरे लेखन तक भी पहुँचता है। अपनी भाषा के बारे में बताते हुए कहा कि वह ग्रामीण जीवन के खिलंदड़पन को सामने लाती है। कार्यक्रम के पश्चात् उपस्थित श्रोताओं के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि भविष्य में वह अपने विशाल अनुभवों के आधार पर अपनी आत्मकथा लिखना चाहते हैं।

कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।

First Published on: फ़रवरी 7, 2025 6:35 अपराह्न
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