युवा लेखक अपनी संवदेनाओं का विस्तार करें-माधव कौशिक


कोई भी रचना एक दिन में नहीं लिखी जाती, इसको पहले दिमाग़ के लहू की तपिश के साथ पकाना पड़ता है और जब यह पककर तैयार हो जाती है तब हमें मजबूर कर देती है पन्नों पर उतारने के लिए।


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नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार 2022 विजेताओं ने आज अपने रचनात्मक अनुभव श्रोताओं के समक्ष साझा किए। लेखक सम्मिलन शीर्षक से आयोजित इस कार्यक्रम में कल युवा पुरस्कार से पुरस्कृत सभी 24 रचनाकारों ने अपने-अपने अनुभवों की समृद्ध थाती के बारे में विस्तार से बताया। साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए सभी युवा लेखकों ने अपने समाज, संस्कृति, भाषा और उनसे जुड़ी हुई समस्याओं को सबके सामने लाने के उद्देश्य से ही लेखन आरंभ करने की बात कही।

अपने अध्यक्षीय भाषण में साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि आज हम अपने युवा रचनाकारों के ज़रिये हमारा नया लेखक क्या सोच समझ रहा है, उससे रू-ब-रू हुए। यह प्रसन्नता की बात है कि युवा लेखक अब केवल कहानी, कविताएँ ही नहीं बल्कि अन्य विधाओं में भी प्रचुर मात्रा में लिख रहे हैं। समाज के दर्द को महसूस कर सकने की क्षमता के कारण ही आज ये युवा साहित्यकार लेखक के रूप में हमारे सामने उपस्थित हैं। उन्होंने सभी युवा लेखकों से अपील की कि वे अपनी संवदेनाओं का विस्तार करें और अपना लिखना निरंतर जारी रखें। उन्हें आगे बढ़ने की ज़िम्मेदारी समझ कर निभाना चाहिए।

बर (बोडो) भाषा के लिए पुरस्कृत अलंबार मुसाहारि ने अपने वक्तव्य में कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है, इसलिए समाज में घटित घटनाओं को पिरोकर मैं अपनी रचनाओं में लेकर आता हूँ। भारत के संविधान द्वारा स्वीकृत होने के कारण मुझे बर (बोडो) भाषा में लिखने का जो मौका मिला, यह आदिवासी जनजाति या जनगोष्ठी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।

डोगरी के लिए पुरस्कृत आशु शर्मा ने कहा कि – कोई भी रचना एक दिन में नहीं लिखी जाती, इसको पहले दिमाग़ के लहू की तपिश के साथ पकाना पड़ता है और जब यह पककर तैयार हो जाती है तब हमें मजबूर कर देती है पन्नों पर उतारने के लिए। गुजराती के लिए पुरस्कृत भरत खेनी ने कहा कि मुझे अपनी पुरस्कृत कृति को साकार रूप देने हेतु इसका संशोधन ख़ूब लंबा चला।

हिंदी के लिए पुरस्कृत भगवंत अनमोल ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि जिसके लिए लेखन जीवन हो, उसके लिए किसी पुरस्कार के प्राप्त होने, किसी लिस्ट में शामिल होने या फिर किसी से तारीफ़ पा लेने से उसके अंदर कोई ज़िम्मेदारी नहीं आती। कहते हैं, उस व्यक्ति से तेज कोई नहीं भाग सकता, जो अपने जीवन और मृत्यु के बीच भाग रहा हो। मेरे लिए भी यह लेखन जीवन और मृत्यु के बीच की वह दौड़ ही है। जब तक यह लेखन है तब तक साँसें हैं, वरना अंधकार रूपी राक्षस कभी भी दबोच सकता है।

मैथिली के लिए पुरस्कृत नवकृष्ण ऐहिक ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज के दौर में मातृभाषाओं के ज़्यादातर लेखक साहित्य के छात्र-अध्येता, शिक्षक-प्रोफे़सर होते हैं। मैं एक आईटी प्रोफे़शनल हूँ और इस लिहाज से अन्य पेशेवरों का भी नेतृत्व करता हूँ, जो लेखक बनने के क्रम में मातृभाषा को चुनते हैं। मेरा यह मानना है कि मुझे यहाँ देखकर मैथिली सदृश भाषा में लिखने-पढ़ने वालों को और भी हौसला मिलेगा।

मराठी में पुरस्कृत पवन नालट ने कहा कि मैं ऐसा मानता हूँ कि कविता लिखना मतलब अपने भीतर का कुछ कविता को प्रदान करना है और यह प्रक्रिया कभी भी आसान नहीं होती। पंजाबी में पुरस्कृत संधू गगन का कहना था कि साहित्य मानव विकास के इतिहास का मूर्त रूप है। मानव विकास के इतिहास की यह रूपरेखा किस प्रकार साहित्य में समाहित है, यही लेखक की लेखन प्रक्रिया का आधार और साधन है।

राजस्थानी में पुरस्कृत आशीष पुरोहित ने कहा कि जब हम रचनाकार होते हैं तब यह समझ ही नहीं पाते कि कब तो हम लिख रहे हैं और कब पढ़ रहे हैं। यह संशय नहीं, चिरंतन सत्य है, जिसे जितना जल्दी स्वीकार कर लिया हमारी रचना-प्रक्रिया उतनी ही जल्दी सहज हो जाएगी।

उर्दू के लिए पुरस्कृत मक़सूद आफ़ाक़ ने कहा कि शायरी जज़्बात की मेराज होती है। जिस में ख़ुद पर गुज़रने वाली सारी कैफ़ियतें शायर सलीके से बयान करता है। शायर का दिल किसी मासूम परिंदे के दिल की तरह नाज़ु़क होता है, जिसमें जज़्बात की ठाठें मरते हुए समंदर हक़ीक़तों के जलते हुए सहराओं को सैराब करने की नाकाम कोशिश करते रहते हैं और इस बीच मेरी यही कोशिश रहती है कि अपनी शायरी और अपनी ग़ज़लों के ज़रिये ख़्वाब और हक़ीक़त के बीच गहरा ताल्लुक़ क़ायम कर सकूँ।

अन्य पुरस्कृत युवा लेखकों – प्रद्युम्न कुमार गोगोई (असमिया), सुमन पातारी (बाङ्ला), मिहिर वत्स (अंग्रेज़ी), दादापीर जैमन (कन्नड), शाइस्ता खान (कश्मीरी), मायरन जेसन बार्रेटो (कोंकणी), अनघा जे. कोलथ (मलयाळम्), सोनिया खुन्द्राकपम (मणिपुरी), रोशन राई ‘चोट’ (नेपाली), दिलीप बेहरा (ओडिआ), श्रुति कानिटकर (संस्कृत), सालगे हाँसदा (संताली), हिना आसवानी (सिंधी), पी. कालीमुथ्थु (तमिऴ), पल्लिपट्टु नागाराजु (तेलुगु) ने भी अपने-अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए।



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