गलवान घाटी में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत ने लगाया मोदी की विदेश नीति पर सवालिया निशान

आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों से अंदाज लगा सकते है कि सत्ता में आने से पहले मोदी चीन के प्रति क्या सोचते थे? हालांकि मोदी 2014 के चुनावी भाषणों में बेशक चीन के खिलाफ खूब बोलते थे। लेकिन बतौर मुख्यमंत्री मोदी चीन की यात्रा पर गए थे। 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी ने कई रैलियों मे चीन की आलोचना की थी।

क्या नरेंद्र मोदी की विदेश नीति असफल साबित हो रही है? दरअसल गलवान घाटी में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद यह सवाल उठना वाजिब है। क्योंकि भारत चीन सीमा पर भारतीय सैनिकों की यह शहादत 45 साल बाद हुई है। 1962 में चीन के हमले का शिकार भारत हो गया था। नरेंद्र मोदी चीन के साथ तमाम विवादों के बीच लगातार बातचीत करते रहे है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत बुलाकर गले लगाया था। मोदी और जिनपिंग के बीच दो शिखर वार्ता भी हुई। लेकिन उसका परिणाम अब लद्दाख में सामने आ गया है। हालांकि केंद्र सरकार के मंत्री दावा कर रहे है कि भारत अब 1962 का भारत नहीं है। मतलब चीन को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। लेकिन जमीन पर दिल्ली की चीन नीति भारतीय नागरिकों को फिलहाल यह समझाने में विफल है कि अगर भारत 1962 का भारत नहीं तो इतना डिफेंसिव क्यों है?

आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों से अंदाज लगा सकते है कि सत्ता में आने से पहले मोदी चीन के प्रति क्या सोचते थे? हालांकि मोदी 2014 के चुनावी भाषणों में बेशक चीन के खिलाफ खूब बोलते थे। लेकिन बतौर मुख्यमंत्री मोदी चीन की यात्रा पर गए थे। 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी ने कई रैलियों मे चीन की आलोचना की थी। चीन के बहाने मनमोहन सिंह की भी खूब आलोचना की। सीमा पर चीनी घुसपैठ को लेकर मनमोहन सिंह सरकार कई सवाल मोदी ने दागे थे। मोदी कहते थे कि समस्या सीमा पर नहीं, समस्या दिल्ली में है। मनमोहन सिंह को टारगेट करते हुए मोदी ने कहा था कि दिल्ली कमजोर है, इसलिए चीन लगातार घुसपैठ कर रहा है।

लेकिन सत्ता प्राप्त करते ही मोदी की चीन नीति बदल गई। हालांकि इसके वाजिब कारण भी हो सकते है। मोदी के सतासीन होने के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आए थे। अहमदाबाद पहुंचे थे। शानदार स्वागत किया गया था। हालांकि उधर चीन-भारत सीमा पर चीनी सैनिकों का घुसपैठ जारी था। जिनपिंग की यात्रा के दौरान ही चीनी सैनिकों ने भारतीय इलाके में घुसपैठ की थी। उसके बाद 2017 में डोकलाम का विवाद हुआ। अब तो हालात एकदम बदले नजर आ रहे है। हमारे सैनिक लद्दाख में शहीद हो चुके है। भारतीय इलाके में चीनी सैनिक बैठे हुए है। निकलने का नाम नहीं ले रहे है। कहा जा रहा था कि गलवान घाटी से चीन पीछे हट चुका है। लेकिन भारतीय सैनिकों की शहादत बता रही है कि चीन के सैनिक गलवान घाटी में बैठे है।

वैसे तो केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी का वैचारिक विरोध चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से है। चीन अपने आप को कम्युनिस्ट देश कहता है। भाजपा से जुड़े लोग चीन पर अक्सर भारत में माओवादी गतिविधियों को समर्थन देने का भी आरोप लगाते रहे है। भाजपा वैचारिक रुप से भी वामपंथ का विरोध करती है। हालांकि इस विरोधाभास के बीच भी चीन आज भारत का बड़ा व्यापारिक पार्टनर है। एक तरफ सरकार की नीतियां चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को प्रोत्साहित करती रही है, वहीं भाजपा के लोग जमीन पर चीनी वस्तुओं का बहिष्कार का आहवान करते रहे है। हालांकि बहिष्कार का कोई असर नहीं है। चीन से आयात में कोई कमी नहीं आयी है।

दरअसल कुछ मजबूरियां वर्तमान सरकार की चीनी नीति को रक्षात्मक बना देती है। इसमें एक मजबूरी चीन के साथ बड़ी आर्थिक साझेदारी है। दोनों मुल्कों के बीच दिपक्षीय व्यापार 80 अरब डालर तक पहुंच चुका है। चीन आज भारत का बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। हालांकि व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में है। चीन से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी आया है। वहीं भारतीय उधोग जगत चीन के सस्ते माल का आदि हो चुका है। यहां के व्यापारी खुद सामान उत्पादन करने के बजाए चीन से सस्ता सामान लाकर भारत में असेंबलिंग करते है। कई सेक्टरों में तो भारत पूरी तरह से चीन पर निर्भर है। दवाइयों के लिए जरूरी एक्टिव फर्मा इन्ग्रेडिएंट के लिए भारत चीन पर निर्भर है। सोलर एनर्जी के क्षेत्र में भारत के कई बड़े कारपोरेट घराने निवेश कर रहे है। सोलर एनर्जी के लिए जरूरी उपकऱणों के लिए भारत चीन पर निर्भर है। यही नहीं भारत के कई स्टार्टअप में चीन की कंपनियों का पैसा लगा है। इसकी संभावना पूरी है कि देश के व्यापारिक घराने सरकार को चीन के प्रति आक्रमक रवैया नहीं अपनाने का सलाह देते है।

हालांकि इन तमाम कयासों के बीच गृह मंत्री अमित शाह चीन के प्रति आक्रमक नजर आए है। उन्होंने चीन से अक्साई चीन भी वापस लेने की वादा किया है। हालांकि सरकार जानती है, कई मुल्कों की सीमा पर चीन आक्रमक है। वैसे में चीन से अक्साई चीन वापस लेना आसान नहीं है। इसके लिए भारत को भारी सैन्य तैयारी करनी होगी। भारत का सैन्य बजट मुश्किल से 65 अरब डालर है। चीन का सैन्य बजट 180 अरब डालर है। वैसे में शायद गृहमंत्री अमित शाह का अक्साई चीन से संबंधित ब्यान एक सोची समझी रणनीति है। अमित शाह के ब्यानों का मुख्य उद्देश्य यह दिखाना है कि सरकार चीन से सीमा विवाद को लेकर पाकिस्तान की तरह ही गंभीर है। 

अगर भारत पाकिस्तान से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर वापस लेगा तो अक्साई चीन भी वापस लेगा। हालांकि अमित शाह समेत भाजपा के तमाम नेताओं को पता है कि पाकिस्तान विरोधी मोर्चेबंदी भारत में चुनावी पोलराइजेशन में सहयोगी है। जबकि चीन विरोधी मोर्चेंबंदी भारतीय चुनावों में उतना महत्व नहीं रखता है। फिर वर्तमान में चीन सीमा पर तनाव भारत के सैन्य खर्च को खासा बढ़ाएगा। हालांकि पूरे विश्व की खराब होती अर्थव्यवस्था के मद्देनजर चीन भी बहुत तनाव बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि चीन की आर्थिक स्थिति भी कोविड-19 के कारण प्रभावित हुई है। भारत से तनाव बढ़ेगा तो चीन का भी नुकसान होगा।

मोदी की विदेश नीति की एक बड़ी विफलता यह है कि भारत ब्रिक्स के सदस्य देश होने के बावजूद, चीन को साधने में विफल रहा है। भारत शंघाई कोआपरेशन ऑरगेनाइजेशन का भी सदस्य देश है, जिसका सदस्य चीन भी है। दोनों संगठनों का मुख्य उद्देशय आपसी सहयोग और व्यापार को बढ़ाना है। लेकिन इन दोनों मंचों पर भारत चीन को साधने में विफल रहा है। भारत सरकार को अब काफी सोच समझ कर फैसला लेना होगा। भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद लोगों में नाराजगी है। 

चीन को लेकर स्पष्ट और सख्त कूटनीति बनानी होगी। भारत को वैश्विक जनमत की तरफ जाना होगा। पंडित नेहरू ने चीन को वैश्विक जनमत के सामने घेर लिया था। दरअसल चीन दो कदम आगे, एक कदम पीछे हटने की नीति पर है। चीन दक्षिण चीन सागर में उन इलाकों पर दावा कर रहा है, जो चीन के अधीन कभी नहीं रहा। इतिहास के पन्नों पर ये इलाके चीन के अधीन नहीं रहे। कोई अंतराष्ट्रीय ट्रिटी भी चीन के समर्थन में नहीं है। लेकिन चीन वियतनाम, फिलीपींस और इंडोनेशिया सभी को धमका रहा है। वैसे अगर इतिहास के आधार पर ही इलाकों पर दावा शुरू होगा तो भारत जैसे मुल्क का दावा पूर्वी एशिया के कुछ टापुओं पर होगा। मौर्यों ने तक्षशिला पर शासन किया था। लेकिन वर्तमान क्या इसे हासिल करना आज संभव होगा?

First Published on: June 17, 2020 9:15 AM
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