20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज सुधार है या राहत


यह एक सच्चाई है कि नया और पुराना सब मिला कर 20 लाख करोड़ का यह पैकेज भारत की कुल जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का दस फ़ीसदी है और निश्चित तौर पर यह एक बड़ा आर्थिक पैकेज है। भारत के सन्दर्भ में देखें तो निश्चित रूप से यह किसी विपदा की घड़ी में अब तक का सबसे बड़ा पैकेज है पर ऐसा भी नहीं है इस तरह का पैकेज देने वाला भारत ही दुनिया का इकलौता देश है।



प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत मंगलवार 12 मई 2020 को कोरोना मामले पर एक बार फिर राष्ट्र को संबोधित किया था। पिछले 54 दिन में राष्ट्र के नाम उनका यह पांचवां संबोधन था। यह संबोधन इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा सकता है क्योंकि इस संबोधन के माध्यम से उन्होंने न केवल कोरोना संकट के हर पहलू को छुआ बल्कि इस संकट के चलते देश की अर्थव्यवस्था को जो नुक्सान पहुंचा है उसकी भरपाई के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का एलान भी किया। प्रधानमंत्री ने पैकेज का केवल एलान ही किया था लेकिन अपने संबोधन में यह स्पष्ट भी कर दिया था कि इस पैकेज के बारे में विस्तृत जानकारी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ही देश के साथ साझा करेंगी। 

प्रधानमंत्री के निर्देशानुसार वित्त मंत्री कई किस्तों में इसकी जानकारी दे भी चुकी हैं। प्रधानमंत्री के इस संबोधन को इस बात का संकेत भी माना जा रहा है कि कोरोना वायरस के चलते देश वास्तव में गंभीर आर्थिक संकट के दौर में पहुंच चुका है और उससे निकलने का कोई रास्ता तो निकालना ही होगा। प्रधानमंत्री ने तो एक कदम आगे बढ़ कर कोरोना प्रदत्त इस संकट को अवसर में बदलने की बात भी कही है। उन्होंने माना है कि यह संकट का समय है, आपदा का वक़्त है, लेकिन इसमें मरना, टूटना, बिखरना नहीं है बल्कि इस पर जीत हासिल करनी हैऔर इस संकट से मज़बूत होकर बाहर निकलना है।

प्रधानमंत्री के इस संकट से मजबूत होकर बाहर निकलने की बात को इस अर्थ में भी समझा जा सकता है कि अपने इस संबोधन में मोदी ने इस बार आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने की बात की है और आत्मनिर्भर होने की बात भी उन्होंने उस समय में की है जब देश में हर कोई उनसे आर्थिक पैकेज की मांग कर रहा था। प्रधानमंत्री ने देश के नागरिकों की इस मांग पर गंभीरता से अमल करते हुए अपने पांचवें संबोधन में राहत और आर्थिक पैकेज की घोषणा भी की जिसकी देश उनसे उम्मीद भी कर रहा था। 

अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ के जिस आर्थिक पैकेज का एलान किया, उसके बारे में एक बात समझनी जरूरी है कि इस राशि में क़रीब पांच लाख करोड़ रुपये की वो सहायता राशि भी शामिल है जिसका एलान कोरोना का संकट आने के बाद अलग- अलग समय में सरकार पहले ही कर चुकी है। विशेषज्ञों की माने तो 20 लाख करोड़ रुपये के घोषित मौजूदा पैकेज में असल राशि दस लाख करोड़ की ही है। अब क्योंकि उससे पहले इतनी ही रक़म का एलान सरकार और रिज़र्व बैंक अलग-अलग मौक़ों पर कर चुके हैं। 

बहरहाल! यह एक सच्चाई है कि नया और पुराना सब मिला कर 20 लाख करोड़ का यह पैकेज भारत की कुल जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का दस फ़ीसदी है और निश्चित तौर पर यह एक बड़ा आर्थिक पैकेज है। भारत के सन्दर्भ में देखें तो निश्चित रूप से यह किसी विपदा की घड़ी में अब तक का सबसे बड़ा पैकेज है पर ऐसा भी नहीं है इस तरह का पैकेज देने वाला भारत ही दुनिया का इकलौता देश है। 

दुनिया के दूसरे देशों ने भी कोरोना संकट से निजात पाने के लिए अपने नागरिकों को आर्थिक पैकेज दिए हैं और जीडीपी की हिस्सेदारी के हिसाब से भारत इस मामले में पांचवें नंबर पर है। इस हिसाब से जापान पहले नंबर पर है। जापान का कोरोना आर्थिक पैकेज उसके सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 21.1 फ़ीसदी है। आर्थिक पैकेज के हिसाब से दूसरा नंबर अमेरिका का है जिसने जीडीपी का 13 फ़ीसदी का आर्थिक पैकेज दिया है, इसी कड़ी में 12 फीसदी के साथ स्वीडन तीसरे स्थान पर और जर्मनी जीडीपी के 10.7 फ़ीसदी आकार का आर्थिक पैकेज घोषित कर चौथे स्थान पर है।

प्रसंगवश, भारत के आर्थिक पैकेज को लेकर यह बात जरूर कही जा सकती है कि जापान, अमेरिका, जर्मनी और स्वीडन जैसे आर्थिक रूप से संपन्न देशों की तुलना में भारत ने अपने आर्थिक संसाधनों को देखते हुए जितनी राशि का आर्थिक पैकेज उपलब्ध कराया है वो किसी भी लिहाज से कम तो नहीं है। लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि इस राशि का इंतजाम कहां से किया जाएगा। सवाल यह भी है कि भारत को कोरोना समस्या से निजात पाने के लिए जो एक अरब रुपये की रकम वैश्विक संस्थाओं से आर्थिक सहायता राशि के रूप में मिली है, वो भी इसी पैकेज का हिस्सा है या वो अलग है।

यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि अमेरिका ने क़रीब एक महीने पहले ही जिस आर्थिक पैकेज का एलान किया था वह उसकी अर्थव्यवस्था के हिसाब और आबादी की तुलना में वो बहुत बड़ा पैकेज है, लेकिन भारत और अन्य देशों की तुलना में कोरोना वायरस से अमेरिका में नुक़सान भी कहीं ज्यादा हुआ है। अमेरिका के नुक्सान को देखते हुए उसके आर्थिक पैकेज की रकम को उस लिहाज से बहुत बड़ा भी नहीं माना जा सकता पर जापान, स्वीडन और जर्मनी के आर्थिक पैकेज भारत के आर्थिक पैकेज से कहीं ज्यादा बड़े हैं। यह बात तो माननी ही पड़ेगी।