राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शरद पवार के इस्तीफे से उठा बवंडर अब लगभग शांत हो गया है। पवार के इस्तीफे से पार्टी में अनिश्चितता का जो माहौल बना था वो लगभग थम गया है। लेकिन यह शांति तूफान आने के पहले वाली शांति है। पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए शरद पवार एनसीपी अध्यक्ष बने रहने को तैयार हो गए हैं। वहीं नया अध्यक्ष खोजने के लिए जो समिति बनी थी, उस समिति ने भी शरद पवार को ही अध्यक्ष बने रहने की सिफारिश की थी। लेकिन बात इतनी भर नहीं है। शरद पवार राजनीति में ‘ट्विस्ट और टर्न’ के उस्ताद माने जाते हैं। ऐसे में केवल ये कहना कि पवार पार्टी अध्यक्ष नहीं रहना चाहते और राजनीति में सक्रिय रहना चाहते हैं। यह पूरी सच्चाई नहीं है।
राजनीतिक हलकों में लोग यह जानते हैं कि शरद पवार के कमान से जब भी कोई राजनीतिक तीर निकलता है तो वह केवल एक शिकार नहीं करता है बल्कि वह एक साथ कई शिकार करने में सिद्धहस्त हैं। महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की सरकार गिरने और शरद पवार के स्वास्थ्य की दशा को देखते हुए एनसीपी आंतरिक कलह की शिकार है। राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का कोई मजबूत गठबंधन अभी आकार नहीं ले सका है। ऐसे में पार्टी के राज्य स्तरीय नेता अपने भविष्य को लेकर चिंतित है। दूसरी तरफ कथित रूप से केंद्रीय एजेंसियां एनसीपी के कुछ विधायकों पर पार्टी छोड़ने का दबाव डाल रही हैं। कई बार ऐसी अफवाह भी फैली कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा के वशीभूत अजीत पवार पार्टी के कई विधायकों को लेकर भाजपा से हाथ मिला सकते हैं। वर्तमान परिदृश्य में शरद पवार के सामने पार्टी बचाने और पार्टी के अंदर अपनी हनक का अंदाजा लगाने की चुनौता थी, वह इस बात का भी आंकलन करना चाह रहे थे कि यदि भविष्य में वह अपनी बेटी को अपना उत्तराधिकारी नामित करते हैं तो क्या उन्हें किसी विद्रोह का सामना करना पड़ सकता है?
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी गुटबाजी, असंतोष और महत्वाकांक्षा से उपजे संघर्ष से हलकान है। सही बात तो यह है कि एनसीपी में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष चल रहा है। आंतरिक तौर पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में दो ध्रुव हैं। एक तरफ शरद पवार-सुप्रिया सुले हैं तो दूसरी तरफ उनके भतीजे अजीत पवार हैं। ऐसा नहीं है कि दोनों गुटों में संघर्ष की स्थिति है। लेकिन अजीत पवार अपने को पार्टी और शरद पवार का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानते हैं। घर से लेकर विधानसभा तक वह पवार की अंगुली पकड़ कर बढ़ते रहे। लेकिन अब वह पवार की छाया से मुक्त होना चाहते हैं। पार्टी की बागडोर अपने हाथों में लेने और महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने को उतावले हैं। शरद पवार के वह दुलारे हैं और उनके हर राजनीतिक दांवपेच से वाकिफ हैं। लेकिन शरद पवार अपना उत्तराधिकारी अपनी लाडली बेटी सुप्रिया सुले को ही बनाना चाहते हैं। यह बात सही है कि वह इसके लिए कोई सार्वजनिक घोषणा नहीं करना चाहते। उनकी इच्छा है कि अजीत पवार समेत समस्त पार्टी उनकी इस दिली इच्छा को मान ले। और सुप्रिया को वह मान-सम्मान दे जो पार्टी अध्यक्ष के रूप में उन्हें मिलता रहा।
अध्यक्ष पद छोड़ने की घोषणा के बाद पवार के उत्तराधिकारी को लेकर चर्चाएं तेज हो गई थीं। इसमें उनके भतीजे और महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार का नाम आगे माना जा रहा था। इसके अलावा सुप्रिया सुले, प्रफुल्ल पटेल और जयंत पाटिल जैसे नेताओं का नाम भी सामने आ रहा था। नये अध्यक्ष को चुनने के लिए पवार ने एक कार्यकारिणी की नियुक्ति कर दी। और इस कार्यकारिणी में उन नेताओं को रखा जो भाजपा में जाने की योजना पर काम कर रहे थे। लेकिन कार्यकर्ताओं का दबाव और भावनाएं ऐसी तीव्र थीं कि उस कार्यकारिणी को पवार का इस्तीफा नामंजूर करना पड़ा। फिलहाल शरद पवार की इस्तीफे की शातिर चाल भी पुत्री सुप्रिया सुले को उत्तराधिकारी बनाने में असफल रही। जैसे ही उन्होंने सेवानिवृत्ति की घोषणा की, पार्टी जड़ से हिल गई।
शरद पवार का इस्तीफा पार्टी में बगावत को थामने और सुप्रिया सुले को अपना उत्तराधिकारी बनाने का लिटमस टेस्ट था। पवार यह देखना चाहते थे कि क्या आज भी एनसीपी के सांसद, विधायक, नेता और कार्यकर्ताओं के दिल में उनका वही सम्मान है, जो पहले था, या अब पार्टी पर अजीत पवार का एकछत्र राज हो गया है। शरद पवार ने बड़ी चालाकी से अपने को पार्टी के लिए अपरिहार्य साबित कर दिया। भतीजे को एक ही चाल में चित कर देने के बाद अब वह सुप्रिया सुले को आगे बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। एक समय उत्तराधिकार के संघर्ष में पार्टी और परिवार के लोगों ने तय किया था कि अजीत पवार महाराष्ट्र की राजनीति देखेंगे और सुप्रिया सुले के हाथ में केंद्र की राजनीति होगी। लेकिन सुप्रिया सुले ने इस फॉर्मूले को नहीं माना।
अजीत पवार लंबे समय से पार्टी और परिवार का अधिकांश निर्णय करते और मानते रहे हैं। शरद पवार की पत्नी प्रतिभा पवार के भी वह प्रिय हैं तो सुप्रिया सुले के बड़े भाई हैं। मुंबई से लेकर बारामती और समूचे महाराष्ट्र के पार्टी कार्यकर्ताओं से उनका जीवंत संपर्क-संबंध हैं। ऐसे में वह हर कीमत पर एनसीपी की कमान अपने हाथों में लेना चाहते हैं। एक बात और है, वह अपने चाचा की तरह महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। लेकिन उनके सामने सुप्रिया सुले आ गई हैं।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की इस समय वही स्थिति है जो कुछ वर्षों पहले उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की थी। मुलायम सिंह यादव अपने बेटे अखिलेश यादव को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। लेकिन इटावा से लेकर लखनऊ तक उनके छोटे भाई शिवपाल यादव अपने को उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी मानते थे। यह तो हर कोई जान रहा है कि समाजवादी पार्टी के सत्ता संघर्ष में क्या हुआ और शिवपाल यादव को क्या-क्या दिन देखने को मिले।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के ‘मुलायम’ अब शरद पवार हैं तो ‘शिवपाल’ की भूमिका में अजीत पवार हैं। पारिवारिक पार्टी के इस सत्ता संघर्ष में यदि अजीत पवार यह मुगालता पालते हैं कि पार्टी का हर कार्यकर्ता उनके साथ है तो यह उनके लिए दिवास्वप्न साबित होगा। अजीत पवार इस समय तलवार की धार पर चल रहे हैं। जरा भी डगमग होने से लहूलुहान होने का खतरा है। लेकिन आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि एनसीपी के ‘मुलायम’ भतीजे अजीत पर नरम रूख रखते हैं और पार्टी के अंदर बेटी और भतीजे के काम और अधिकार का उचित बंटवारा करते हैं या सुप्रिया की ताजपोशी की घोषणा कर देते हैं।