अमेरिका आज उसी खेल का शिकार बन गया जिस खेल को दुनिया भर के देशों में खेलता रहा


अमेरिकी कारपोरेशनों और अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियां दशकों से दुनिया के कई देशों में जबरन सत्ता से शासकों को हटाते रहे है, जबरन किसी को सत्ता पर बिठाते रहे है। जो शासक अमेरिकी कारपोरेट घरानों के हिसाब से नहीं चल पाया, उनके खिलाफ विद्रोह को हवा दी गई। कई देशों में सरकारों को सैन्य विद्रोह से गिरवाया गया।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

लगभग एक साल पहले लगभग 300 अमेरिकी मनोवैज्ञानिकों ने अमेरिकी कांग्रेस में एक याचिका में  राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल उठाए थे। कुछ अमेरिकी यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों ने ट्रंप के मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल उठाते हुए आशंका व्यक्त की थी कि वे अमेरिका की स्थिरता के लिए खतरनाक हो सकते है।

कैपिटल हिल पर ट्रंप समर्थकों के हमले के बाद मनोवैज्ञानिकों के याचिका पर भी बहस हो रही है। वहीं ट्रंप समर्थकों के हमले ने अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था की पोल खोल दी है। हमले के लिए ट्रंप को जिम्मेवार ठहराया गया है। लेकिन सवाल यही है कि क्या अकेले ट्रंप विश्व के सबसे बड़े ताकतवर देश की डेमोक्रेसी को चैलेंज कर सकते है ?

कई राजनीतिक चिंतक कैपिटल हिल की घटना के लिए सिर्फ ट्रंप को जिम्मेवार नहीं मानते। उनके अनुसार ट्रंप समर्थकों ने कैपिटल हिल पर उसी मानसिकता को प्रदर्शित किया है, जो पिछले कई दशकों से अमेरिकी समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति में विकसित हो रही है। इस मानसिकता को विकसित करने में अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कारपोरेशनों का भारी योगदान रहा है। इसका शिकार दुनिया के कई देश रहे है।

अमेरिकी सरकार ने दुनिया के कई देशों में स्थानीय सरकारों को स्थानीय विद्रोह के माध्यम से परेशान किया। कई देशों में दक्षिणपंथी ताकतों को मदद की। वहां सता हस्तांतरण के लिए खूनी संघर्ष तक करवाया। विरोध प्रदर्शन को हवा दी। दरअसल अमेरिका ने जो बोया है  अब वही काट रहा है।

डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने कैपिटल हिल पर हमला क्या किया, लोगों को यह अमेरिकी लोकतंत्र पर हमला नजर आया। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों इसे लोकतंत्र पर हमला बताया।

दुनिया के तमाम देश इस हमले पर तीखी प्रतिक्रिया दे रहे है। लेकिन क्या यह सच्चाई नही है कि अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था आज उसी खेल का शिकार हो रही है, जिस खेल को अमेरिकी प्रशासन दुनिया के दूसरे देशों में खेलता रहा ?

अमेरिकी कारपोरेशनों और अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियां दशकों से दुनिया के कई देशों में जबरन सत्ता से शासकों को हटाते रहे है, जबरन किसी को सत्ता पर बिठाते रहे है। जो शासक अमेरिकी कारपोरेट घरानों के हिसाब से नहीं चल पाया, उनके खिलाफ विद्रोह को हवा दी गई। कई देशों में सरकारों को सैन्य विद्रोह से गिरवाया गया।

लैटिन अमेरिका के कई मुल्क अमेरिकी कारपोरेशनों और अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियों की साजिश की शिकार होते रहे। अमेरिकी पूंजीवादी व्यवस्था और अमेरिकी राजनीति के गठजोड़ का वीभत्स रूप लैटिन अमेरिकी देशों ने देखा। दूसरे विश्व युद के बाद संसाधनों के कब्जे के खेल के शिकार कई लैटिन अमेरिकी देश हुए। कई एशियाई देश भी अमेरिकी साजिश के शिकार हुए। ईरान में शाह की सरकार अमेरिकी कारपोरेशनों के समर्थन से चलती रही।

लैटिन अमेरिकी देश कोलंबिया, अलसल्वाडोर, इक्वाडोर, अर्जेंटिना, वेनजुएला, ब्राजील, पनामा में अमेरिकी कारपोरेशनों और इंटेलिजेंस एजेंसियों ने अमेरिका विरोधी शासकों को सत्ता से हटवाया। अपने समर्थक शासकों को सत्ता पर बिठाया। 1980 के दशक में इक्वाडोर के शासक जैमी रोल्डो की नीतियां अमेरिकी कारपोरेशनों को चुभने लगी थी। आखिरकार रोल्डो को जान से ही हाथ धोना पड़ा। उनकी मौत के पीछे अमेरिका का हाथ बताया गया।

इसी तरह से पनामा के शासक ओमर टोरिजोस से अमेरिका की नहीं बनी। अमेरिका का टोरिजोस से तनाव पनामा कनाल पर नियंत्रण को लेकर था। आखिरकार टोरिजोस एक विमान दुर्घटना में मारे गए। साजिश का आऱोप अमेरिकी खुफिया एजेंसी पर लगा।

अब बात बोलीविया की करे। 2019 में यहां के शासक एवो मोरालेस को अमेरिकी साजिश के कारण सत्ता से हटना पड़ा। मोरालेस की जगह अमेरिका समर्थक दक्षिणपंथी जीनिन अनेज सत्ता में आयी। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियों ने एनेज का सत्ता में आने पर जोरदार स्वागत किया। हालांकि 2020 में बोलीविया में अमेरिकी समर्थक दक्षिणपंथियों की विदाई हो गई औऱ और एवो मोरालेस के वित्त मंत्री रहे लुइस अरेश सत्ता पर काबिज हुए।

दरअसल डेमोक्रेट हो या रिपब्लिकन दोनों की जियोपॉलिटिक्स एक ही है, क्योंकि अमेरिकी जियो पॉलिटिक्स को अमेरिका के मल्टीनेशनल कारपोरेशन तय करते है। रिपब्लिकन हो या डेमोक्रेट दोनों राजनीतिक दलों में अमेरिकी कारपोरेशनों के प्रतिनिधि मौजूद है।

सेना और इंटेलिजेंस एजेंसियों में भी अमेरिकी कारपोरेशनों के प्रतिनिधि महत्वपूर्ण पदों पर मौजूद है। यही कारण है कि वेनजुएला जैसे देश में सता पर काबिज शासक वर्ग को हटाने की कोशिश डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों ने की।

राष्ट्रपति बराक ओबामा हो या डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका की वेनजुएला नीति एक ही थी। इस्लामिक देशों में भी संसाधनों की लूट के मामले में डेमोक्रेट और रिपब्लिकनों का विचार एक ही रहा है। रिपब्लिकन हो या डेमोक्रेट तेल संसाधनों की लूट को लेकर दोनों की नीतियां एक ही रही।

इराक में सद्दाम हुसैन रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों को खटकते रहे। अंत में उन्हें फांसी पर लटकाया गया। अमेरिका लीबिया के तानाशाह कर्नल गद्दाफी को पसंद नहीं करता था। आखिरकार 2011 में गद्दाफी की मारे गए। गद्दाफी की हत्या के वक्त अमेरिका के राष्ट्रपति डेमोक्रेट बराक ओबामा थे।

सीरिया में बशर अल असद की सरकार को गिराने के लिए अमेरिका ने हर हथकंडे अपनाए। डेमोक्रेट बराक ओबामा भी असद की सरकार को गिराना चाहते थे उनके विरोधी रिपब्लिकन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जॉन मैक्कैन भी असद सरकार को हटाना चाहते थे।

सीरिया में असद सरकार के खिलाफ अमेरिका ने आतंकी गुटों को मजबूत किया। उन्हें हथियार दिया। सीरिया के कई आतंकी गुटों को अमेरिकी कारपोरेट घरानों और इंटेलिजेंस एजेंसियों से मदद मिलती रही।

जिस जो बाइडेन को आज अमेरिकी लोकतंत्र पर खतरा नजर आ रहा है, वही बाइडेन तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान का तख्ता पलट करवाना चाहते थे। बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान जुलाई 2016 में तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान के तख्ता पलट की कोशिश की गई थी। उस समय बाइडेन अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे। वे तुर्की में विद्रोही गुट को मदद कर रहे थे।

डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने कैपिटल हिल पर हमला कर साफ बताया है कि ट्रंप अमेरिकी राजनीति में प्रसांगिक रहेंगे। उनके हमले ने अमेरिका में नस्ली, जातीए विभाजन को और तीखा किया है। दरअसल अमेरिका में शुरू से मिलिट्री नेशनलिज्म के समर्थकों का एक वर्ग मौजूद रहा है। अगर ट्रंप समर्थकों का गिरोह आगे भी सक्रिय रहा तो अमेरिका में मिलिट्री नेशनलिज्म तेजी से बढ़ेगा।

दिलचस्प बात है कि ट्रंप की पकड़ रिपब्लिकन पार्टी में कमजोर नहीं हुई है। बेशक ट्रंप समर्थकों की हिंसा के बाद रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों को शर्म महसूस हो रही है। वे ट्रंप की निंदा कर रहे है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि सीनेट में 25 प्रतिशत रिपब्लिकन सांसद जो बाइडेन की जीत को रद्द करने के पक्ष में थे। वहीं हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में 70 प्रतिशत सांसद ट्रंप के पक्ष में जो बाइडेन की जीत को रद्द करने के समर्थन में थे। लेकिन ट्रंप समर्थकों की हिंसा ने उन्हें रक्षात्मक कर दिया। रिपब्लिकन सांसदों में ट्रंप का समर्थन साफ बताता है कि रिपब्लिकन पार्टी पर ट्रंप का प्रभाव है।

दरअसल ट्रंप समर्थकों के हंगामे ने रिपब्लिकन पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे को बेनकाब किया। हथियार लॉबी से भारी चंदा लेने वाली रिपब्लिकन पार्टी अमेरिका में गन कल्चर की समर्थक है। अमेरिका में गन लॉबी का सलाना कारोबार लगभग 25 अरब डालर है। दिलचस्प बात है कि चुनावों के दौरान एकाएक अमेरिका में गन की बिक्री तेज हो गई थी और लाखों लोगों ने चुनाव प्रचार के दौरान गन खरीदे थे।

दरअसल ट्रंप ने रिपब्लिकन पॉलिटिक्स की दाल में तड़का लगाया है। ट्रंप लगातार कह रहे है कि 7 करोड़ 40 लाख वोट उन्हें मिले है। 2020 में उन्हें 2016 से ज्यादा वोट मिले। वैसे में निश्चित तौर पर रिपब्लिकन पार्टी के अंदर उनके प्रभाव बढा है। रिपब्लिकन पार्टी के सांसद उनके दबाव में है। निचले स्तर पर रिपब्लिकन पार्टी में विभाजिन है।

हालांकि एक सच्चाई यह भी है ट्रंप अपनी लोकप्रियता को काफी बढ़ाकर बता रहे है। क्योंकि पहले भी रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद पर उम्मीदवार रहे जार्ज बुश, जॉन मैक्केन और मिट रोमनी को 6 करोड़ से ज्यादा वोट हासिल हुए थे।

लेकिन ट्रंप ने खुद 2016 से के चुनाव से ज्यादा वोट पाकर अपनी अमेरिकी राजनीतिक दलों को संदेश दिया है कि पिछले चुनावों के मुकाबले उनकी लोकप्रियता बढ़ी है। निश्चित तौर अमेरिकी राजनीति में ध्रुवीकरण और तेज होगा। आने वाले समय में नस्ल के आधार पर अमेरिका में और तेज विभाजन होगा। बाइडेन आखिर इन समस्याओं से कैसे निपटेंगे, यह समय बताएगा।

पूरी दुनिया में हेट और फेक न्यूज फैलाने के जिम्मेवार फेसबुक, व्हाट्सएप और टिवटर अब अमेरिकी सोसायटी में हेट और फेक न्यूज से मिलने वाली चुनौतियों का सामना कैसी करेंगी, यह समय बताएगा। जो बाइडेन की चुनौती यह है कि अमेरिकी कारपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने जो कुछ पूरी दुनिया में जो बोया है, उसका शिकार अब खुद अमेरिका हो रहा है।