अफगानियों को तालिबान की दया पर छोड़ गया अमेरिका

अफगानिस्तान में जिन लोगों ने रूस का साथ दिया था उन्हें उनके हाल पर रूस छोड़ गया था।

अफगानिस्तान के लिबरल, उदरवादियों की किस्मत हमेशा ख़राब रही है। अफगानिस्तान में जिन लोगों ने रूस का साथ दिया था उन्हें उनके हाल पर रूस छोड़ गया था। आज अमेरिका ने वही किया है,जो किसी ज़माने में रूस ने किया था। जिन अफगानियों ने अमेरिका के साथ स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप की उन्हें तालिबान की दया पर अमेरिका छोड़ गया है।

बस अंतर यही है कि अमेरिका के खास अशरफ गनी काबुल से निकलने में सफल रहे। जबकि रूस के खास नाजिबुल्लाह को रूस ने उनके हाल पर काबुल में छोड़ दिया था। नाजिबुल्लाह के साथ क्या हुआ इसे सारी दुनिया जानती है। अफगानिस्तान की घटना से भारत को सीख लेनी चाहिए कि क्या अमेरिका के साथ स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप की जा सकती है? क्या अमेरिका भरोसे लायक है?

हामिद करजाई काबुल में है। वो देश छोड़ कर नहीं भागे। हामिद करजाई अमेरिका के खास स्ट्रेटजिक पार्टनर रहे है। उनके राष्ट्रपति रहते तालिबान के खिलाफ अमेरिकी करवाई अफगानिस्तान मे होती रही। फिर आखिर वे किसके भरोसे दिलेरी से काबुल में डटे है? हामिद करजाई वही है जो सरेआम पाकिस्तान की आलोचना करते रहे है। अफगानिस्तान में पाकिस्तान के डोमिनेंस के विरोधी रहे है। यही नहीं हामिद करजाई पिछले दो सालों से भारत को तालिबान से बातचीत शुरू करने की सलाह देते रहे है। वो ये भी कहते रहे है कि तालिबान साऊथ एशिया रीजन में भारत के महत्व को समझता है।

हामिद करजाई के इस आत्मविश्वास के वाज़िब कारण है। करजाई के आत्मविश्वास का कारण तालिबान का नंबर दो मुल्ला अब्दुल गनी बरादार है। मुल्ला बरादार दुर्रानी कन्फड्रेशन के पोपलजाई कबीले से संबधित है, जिससे हामिद करजाई सम्बंधित है। दोनों के लम्बे समय से बहुत ही अच्छे सम्बन्ध है। इस अच्छे सम्बन्ध का आधार कबीलाई बॉन्डिंग है।

अफगानिस्तान में तालिबान पर अमेरिकी हमले के बाद लगातार मुल्ला बरादार को करजाई की मदद मिलती रही है । मुल्ला बरादार और करजाई के अच्छे सम्बन्ध से पाकिस्तानी आईएसआई काफ़ी परेशान रहा है। दरअसल करजाई और मुल्ला बरादार के मधुर संबंधों से नाराज पाकिस्तान ने 2010 में बरादार को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था। 8 साल जेल में रहने के बाद अमेरिकी प्रेशर में बरादार को पकिस्तान ने जेल से रिहा किया था।

अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच चल रही दोहा वार्ता में बरादार ही अभी तक महवपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। बरादार के साथ ही चीन का स्टेब्लिशमेंट बात कर रहा है। रूस भी बरादार से ही बात रहा है। तालिबान के संस्थापक सदस्यों में से एक मुल्ला बरादार तालिबान के चीफ रहे मुल्ला उमर का करीबी रिश्तेदार है। अब चुकी अफगानिस्तान में तालिबान आ चुका है, मुल्ला बरादार की तालिबान शासन में भूमिका महत्वपूर्ण होगी।

मुल्ला उमर तालिबान के उन लीडरों में शामिल है जो पाकिस्तान से स्वतंत्र हों कर अफगानिस्तान को चलाना चाहते है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा रेखा डुरंड लाइन का भी विरोध करता है।वैसे में पाकिस्तान मुल्ला बरादार के बराबर हक्कानी नेटवर्क के सिराजुद्दीन हक्कानी को खड़ा रखेगा जो पाकिस्तानी स्टेब्लिशमेंट के बेहद नजदीक है। पाकिस्तान को पता है की हामिद करजाई भारत के नजदीक है और मुल्ला बरादार करजाई के नजदीक है।

चीन तालिबान के प्रति काफ़ी साफ्ट है, पर अंदर से परेशान है। अमेरिकी एग्जिट को चीन संदेह के नजरिये से देख रहा है। चीन को शक है की अमेरिका अफगानिस्तान में फिर से अशांति लाकर पूरे रीजन को डिस्टर्ब करना चाहता है, ताकि चीन के बेल्ट एंड रोड पहल प्रोजेक्ट में हो रहे इन्वेस्टमेंट को नुकसान हो।

चीन 35 अरब डालर का इन्वेस्टमेंट पाकिस्तान में कर चुका है। अगर अफगानिस्तान में अशांति होगी तो चीन का पाकिस्तान मे हुए निवेश पर सीधा असर होगा। यही नहीं चीन को यह पता है की तालिबान में अमेरिकी घुसपैठ भी है। चीन को यह भी पता है कि चीन के शिन्जीयांग में सक्रिय चीन विरोधी उइगर मुसलमानो के साथ तालिबान के अच्छे सम्बन्ध है। उइगर आतंकवादियों के साथ अच्छे रिश्ते तालिबान के शुरू से रहे है। तालिबान के प्रभाव वाले इलाके में उइगर आतंकवादियों को ट्रेनिंग मिलती रही है।

हालांकि तालिबान ने चीन को भरोसा दिलाया है कि अफगानिस्तान की धरती से उइगर मुसलमानो को कोई समर्थन नहीं मिलेगा। पर चीन को तालिबान पर भरोसा नहीं है। हाल ही में खैबर पखतूंखवा के कोहिस्तान में हुए बम ब्लास्ट में कई चीनी नागरिक मारे गए थे। ये पाकिस्तान में चीन के निवेश से बन रहे हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे। इसलिए अफगानिस्तान को लेकर बहुत कुछ पक्का कहना अँधेरे में तीर मारने वाली बात होगी। चीन -अफगान सीमा पर आज भी उइगर आतंकवादी गुटों की सक्रियता है।

First Published on: August 17, 2021 11:00 PM
Exit mobile version