स्कूल के दिनों में कृषि विज्ञान की किताबों में पढ़ा था कि किसान दिन-रात खेत में अपनी गाढ़ी मेहनत करके और पसीना बहा कर जो फसल तैयार करता है उसे कई बार तो बाढ़, अनावृष्टि, भूस्खलन और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं चौपट कर जाती हैं या फिर जंगली भालू, हाथी, सुंअर जैसे जानवर चौपट कर जाते हैं। कभी कभी पक्षियों से भी खेती की फसल को भी नुक्सान पहुंचता है तो कई जगह खेतों में अपने बिल बना कर चूहे भी किसान को बर्बाद करने से पीछे नहीं रहते। किसान को केचुएं जैसे प्राणी फायदा भी पहुंचाते हैं। इस आधार पर किसान को फायदा पहुंचाने वाले प्राणी उसके मित्र और नुक्सान पहुंचाने वाले प्राणियों की गिनती उसके मित्र प्राणियों में की जाती है।
कुछ पतंगे भी किसान की फसल को बहुत नुक्सान पहुंचाते हैं, इनमें एक नाम टिड्डियों का भी है। टिड्डियों से ज्यादा नुक्सान इसलिए भी होता है कि ये अकेले में नहीं बल्कि एक साथ लाखों के झुण्ड में ही एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते हैं। टिड्डियों का यह दल जब उड़ान भरता है तो आसमान को देख कर कुछ ऐसा लगाने लगता है मानो भूरे रंग का कोई बड़ा सा बादल का टुकड़ा चादर समेटे उड़ रहा हो। टिड्डियों का यह दल जिस राह से गुजरता है वहाँ सूर्य के रोशनी भी छन- छन कर ही आती है। यही टिड्डी दल जब किसी खेत पर हमला करता है तो फसल एकदम चौपट कर देता है।
टिड्डियों के दल ने ऐसा ही हमला इस बार भी देश के कई राज्यों में कर दिया है। एक तरफ कोरोना से बचाव की तैयारी उस पर टिड्डी दलों के इस हमले से देश की जनता और सरकार दोनों ही परेशान हैं। शहरी नागरिकों को तो टिड्डी दलों के हमले का अहसास नहीं हो पाता लेकिन खेत खलिहान के पास बसे ग्रामीण समुदाय को टिड्डियों के इस हमले की वजह से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस बार भी स्थिति कुछ ऐसी बन गई है कि केंद्र सरकार को देश के 16 राज्यों को टिड्डियों के हमले से बचाव करने की चेतावनी देनी पड़ गई है।
बताया जा रहा है कि इस साल टिड्डी दल का प्रकोप 26 साल में सबसे भयावह है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार राजस्थान के 21 जिले, मध्य प्रदेश के 18 जिले, गुजरात के दो जिले और पंजाब के एक जिले में अब तक टिड्डी दल पर काबू पाने के लिए कदम उठाये गये हैं। राजस्थान के कृषि विभाग ने जयपुर जिले में टिड्डियों को नियंत्रित करने के लिये कीटनाशक के छिड़काव के लिये एक ड्रोन की मदद ली है। जानकारी के मुताबिक एक छोटा टिड्डी दल दिनभर में दस हाथियों के बराबर खाना खा जाता है। गरीबी और खाद्य संकट से जूझ रहे अफ्रीकी देशों में पहले ही इनका आतंक देखा जा चुका है।
कल्पना ही की जा सकती है कि जब पहले से ही कोई देश कोरोना की वजह से आर्थिक मंदी के मुहाने पर खड़ा हो और उसे टिड्डियों से हो सकने वाले इस तरह के नुक्सान का भी सामना करना पड़े तो उस देश की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करना कितना मुश्किल काम हो जाएगा। यह सन्दर्भ इसलिए भी जरूरी है क्योंकि एक तो टिड्डियों की रफ़्तार बहुत तेज होती है। एक अनुमान के मुताबिक़ टिड्डियां 15 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ती हैं दूसरा ये टिड्डियां एक दिन में 150 किलोमीटर तक की दूरी नापने में सक्षम होती हैं और तीसरी बात यह कि ये टिड्डियां करोड़ के झुंड में फसलों पर कर हमला करने की ताकत भी रखती हैं।
इसलिए इनके हमले से किसी देश को गंभीर खाद्यान संकट का सामना भी करना पड़ सकता है। इससे जुड़े कुछ ऐसे तथ्य भी हैं जिनको समझते हुए टिड्डियों से समय रहते बचाव करना निहायत जरूरी भी है। मसलन एक टिड्डी 2 ग्राम फसल खाने की क्षमता रखती है,1 वर्ग किलोमीटर बड़े दल में चार करोड़ टिड्डियां मौजूद होती हैं और टिड्डियों का यह बड़ा दल एक दिन में 35 हजार लोग, 20 ऊंट, 10 और हाथी के बराबर फसल चट कर सकता है।
टिड्डी की उम्र महज 90 दिन होती है। एक टिड्डी एक दिन में अपने वजन के बराबर खाना खाती है। हवा में 5000 फीट की ऊंचाई तक उड़ सकती है। खाड़ी देशों में टिड्डी से कई रेसिपी बनाई जाती हैं। टिड्डी की बिरयानी भी वहां लोग चाव से खाते हैं। संयुक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइज़ेशन के मुताबिक़, चार करोड़ की संख्या वाला टिड्डियों का एक दल 35 हज़ार लोगों के लिए पर्याप्त खाद्य को समाप्त कर सकता है।
राजस्थान की राजधानी जयपुर के रिहायशी इलाक़ों में भी टिड्डियों की भरमार देखने को मिली।टिड्डियों को भगाने के लिए लोगों ने अलग-अलग तरीके अपनाए। कुछ ने कीटनाशक का छिड़काव किया तो किसी ने बर्तन बजाकर टिड्डियों को भगाने की कोशिश की। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जून में यह स्थिति और गंभीर हो सकती है।संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारी बारिश और चक्रवात ने पिछले साल की शुरुआत में टिड्डियों के प्रजनन में बढ़ोत्तरी की और इस वजह से अरब प्रायद्वीप पर टिड्डियों की आबादी में काफ़ी तेज़ी से वृद्धि हुई। भारत ने साल 1993 के बाद से अब तक कभी भी इतने बड़े स्तर पर टिड्डों का हमला नहीं देखा था।संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, साल 2003-05 के बीच में भी टिड्डों की संख्या में ऐसी ही बढ़ोतरी देखी गई थी जिससे पश्चिमी अफ्रीका की खेती को ढाई अरब डॉलर का नुकसान हुआ था।