बापू लौट के न आना इस देस!


बापूजी! बहुत कुछ बदला है।चांद पर भी पंहुचे हैं हम।मंगल पर भी।थोड़ा खुश हो जाओ न! लेकिन आपका गंवई रामलाल, बुधिया व सलमान पूरे मुल्क में वही 74 साल पहले वाली जहालत में जी रहा है।


वीरेंद्र सेंगर
मत-विमत Updated On :

राष्ट्रपिता की शहादत की वार्षिकी पर वरिष्ठ पत्रकार विरेन्द्र सेंगर का बापू के नाम पत्र:

हे बापूजी! आज आपकी पुण्य तिथि है। शहादत स्मृति है। सादर नमन ! सोचा आपसे कुछ संवाद ही कर लूं।कुछ शांति ही मिलेगी। राजघाट के स्मृति स्थल पर आज दिन भर वीआई पी रस्मी फेरा लगाने आंएगे। फोटो सेशन होंगे। आप तो मूक ही रहोगे। वे अपने को धन्य कर लौट जांएगे। बापू ! अगर आप आज भी हाड़ मास वाले होते, तो आपको बहुत पीड़ा होती। आप खुद स्थाई मौन व्रत लेना ही पसंद करते।आपको भी आईटी सेल वाले बख्शते नहीं। राष्ट्रवादी होने का प्रमाण पत्र रखना होता। लंगोटी चश्मे के साथ एक तिरंगा झण्डा भी।

ऐसा भी नहीं है कि ये परिदृश्य महज छह सालों का है। ऐसा मानना अर्ध सत्य होगा। आपके सरनेम धारियों ने भी धतकर्म कम नहीं किए।आपको नोटों में बैठाकर वोट बैंक का दशकों तक बैलेंस बढ़ाते रहे। हां,कुछ लोकलाज मानते भी रहे।जब पीर पर्वत सी हो गयी, तो जन गण ने निजाम बदल डाला। सपना दिखाया था कि बापू के असली सपनों का भारत अब बनेगा।

मदारी का डमरू खूब बजा। बजता गया। पहले कहा गया, नया भारत बनेगा। कुछ त्याग करो। कहा, कमीज उतारो जादू का इंतजार होता रहा। कहा गया इसमें स्मार्ट नहीं लगते हो। न्यु इंडिया बनाना है तो पीछे देखो। पुरातन महान संस्कृति को जीवंत करो। फिर हम विश्वगुरू बनेंगे।पूरी दुनिया देखेगी। डमरू बजता रहा। बज रहा है। आप तो कुछ सुनते ही नहीं। महात्मा जो हो। हम तो ठहरे साधारण मानुष ! साधारण ढंग से सोचते हैं।

आप तो पूरे राष्ट्र के श्रद्धेय हो। जिस वैचारिकी ने आपकी निर्मम हत्या की थी। उस असहिष्णु वैचारिकी से लदे प्रभु गण भी चबूतरे पर सिर नवाते हैं।अद्भुत है ये कमाल। क्योंकि सत्ता की चाभी, आपको भजे बगैर नहीं मिलती।सो आप सबके हो। उनके भी, जो आपके हत्यारे को भी खलनायक नहीं मानते। वैसे आप भी जीवित होते तो उससे कहां बैर रखते? ये भी आपके रास्ते पर हैं। कुछ ज्यादा उदार हैं। आपकी भी श्रद्धा और उससे भी अपनापा। कुछ जादुई लोकलाज के साथ।

बापूजी ! बहुत कुछ बदला है। चांद पर भी पंहुचे हैं हम। मंगल पर भी।थोड़ा खुश हो जाओ न ! लेकिन आपका गंवई रामलाल, बुधिया व सलमान पूरे मुल्क में वही 74 साल पहले वाली जहालत में जी रहा है। जब आप भी सुनते बोलते थे।आप तो एक दो सांप्रदायिक दंगों से बेचैन हो गये थे। अपनी जान देने को तैयार थे। अब पूरे देश में सरेआम दंगों की सियासी पाठशालाएं नुमा फैक्ट्री चलती हैं। चुनाव जो जीतने होते हैं।

आप के समय का ये पिछड़ा भारत नहीं है। शुचिता और ईमानदारी की बातें सिर्फ भाषणों में शोभा देती हैं। सब खोलकर बता नहीं सकता।क्योंकि मैं अभी हाड़मास वाला हूं। तमाम उपलब्धियां भी हैं। ताजा खबर बता दूं। वैश्विक करप्शन इंडेक्श में देश ने पिछले साल के मुताबिक़ छह की और आमद बढ़ा ली है। राहत यही कि पाकिस्तान से जरुर बेहतर हैं। लेकिन आप को तो इससे भी कष्ट होगा।

बस,आखिरी बात। आप भले दर्जा प्राप्त वैश्विक महात्मा हों, लेकिन सत्ता प्रभुओं ने आपको भी चतुर बनिया बता डाला। आपने ही सिखाया था, सच बोलो। वे नंगा सच ही तो बोल गये। आपको बुरा तो नहीं लगा? अरे आप तो महात्मा हैं। बुरा कैसे लग सकता है? आप ने एक बिटिया को अपना सरनेम तक दे डाला था। इसकी पूंछ पकड़कर ही एक कुनबा दशकों तक सत्ता की वैतरिणी पार करता रहा।

फिलहाल, वो अच्छे दिन फिरने के इंतजार में है। अच्छे दिन देने वाले इस फेर में हैं कि जनगण, राष्ट्रवादी डमरु की तान को ही अच्छे दिन मान ले। इस पर लफड़ा है बापू ! लोगों की चाहतें बढ़ रही हैं। यही लोचा है। आपको और क्या क्या बोलूं? संकोच होता है। डर भी। कोई देशद्रोह न मान ले। बस,यही विनती है कि फिर न लौटना इस देस! कहीं पुरानी याददाश्त लौटने का केमिकल लोचा हो गया, तो बहुत पीड़ा होगी आपको। मौन ही रहो। चबूतरे के पत्थर के नीचे। देश के सत्ता प्रभुओं को सद्गति देते रहें। चाहे मानें या ठेंगा दिखांए !
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)