भारत की खोज हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन


इस दवा का इतिहास रोमांचक भी है और अकल्पनीय भी। आमतौर पर सोशल मीडिया के जरिये मिलने वाली जानकारी को सत्य से कोसों दूर माना जाता है लेकिन इस सम्बन्ध में जो जानकारियां प्राप्त हुई हैं उनकी सत्यता इतिहास लेखन और देश के संसदीय इतिहास से भी पुष्ट हुई है। इन जानकारियों का सार यही है कि हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन नामक इस दावा का आविष्कार भारत में ही और भारत के वैज्ञानिकों द्वारा अपनी स्वयं की रसायन प्रयोगशाला में ही किया गया है।



कोरोना वायरस के वैश्विक आतंक के सन्दर्भ में कोविड-19 नामक संक्रामक रोग के उपचार में जिस हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन (HCL) नामक दवाई को कारगर माना जा रहा है और दुनिया के सैकड़ों देश भारत से इस दवाई की आस लगाए बैठे हैं,उसकी कहानी भारत के सन्दर्भ में बहुत महत्वपूर्ण ही नहीं है बल्कि भारत के लिए यह गर्व का विषय भी है कि वैश्विक संकट के इस दौर में अमेरिका जैसी महाशक्ति के साथ ही यूरोप और एशिया के तमाम देश इसके लिए भारत की तरफ टकटकी लगाए हुए हैं। 

इस दवा का इतिहास रोमांचक भी है और अकल्पनीय भी। आमतौर पर सोशल मीडिया के जरिये मिलने वाली जानकारी को सत्य से कोसों दूर माना जाता है लेकिन इस सम्बन्ध में जो जानकारियां सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त हुई हैं उनकी सत्यता इतिहास लेखन और देश के संसदीय इतिहास से भी पुष्ट हुई है। इन जानकारियों का सार यही है कि हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन नामक इस दावा का आविष्कार भारत में ही और भारत के वैज्ञानिकों द्वारा अपनी स्वयं की रसायन प्रयोगशाला में ही किया गया है। सातवें दशक में भारत की संसद ने ही इस बारे में एक क़ानून बना कर इसके भारत में निर्माण का पेटेंट अपने नाम किया था।भारत के इसी क़ानून ने भारत की दो कंपनियों को इसके भारत में निर्माण की अनुमति दी थी। 

इससे पहले अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ही इसके निर्माण की इजाजत थी और वो अपनी सुविधा के अनूसार इसका निर्माण और वितरण का काम करती थीं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की यह सुविधा इसके निर्माण और बिक्री से होने वाले आर्थिक लाभ पर ही निर्भर करती थी इसलिए ये कंपनियां मनमाने दाम पर जरूरतमंद देशों को इसकी बिक्री और आपूर्ति किया करती थीं। इसीलिए जब 1970 में देश की तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इस आशय का क़ानून बनाने के लिए संसद से विधेयक पारित करवाया था तो इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इसका जबरदस्त विरोध भी किया था।

उल्लेखनीय है कि 1970 के उसी भारतीय पेटेंट अधिनियम में संशोधन कर बाद की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने इस योग्य बनाया कि आज भारत इसके निर्यात का अधिकृत वैश्विक निर्यातक देश बन गया है। इसी वजह से विश्व के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को आज भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस दवा को मंगवाने के लिए निवेदन करना पड़ा। प्रसंगवश यह भी एक महत्वपूर्ण पहलू है कि आज अमेरिका कोविड 19 से सर्वाधिक प्रभावित देशों की सूची में शामिल है।  

इस अधिनियम के पारित होने से भारतीय फार्मा कंपनियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एकाधिकार तोड़कर बड़े प्रमाण में दवाओं के उत्पादन में सक्षम हुईं और विदेशों से दवाओं के आयात पर निर्भरता खत्म हुई। देश दवाओं के निर्माण में स्वावलंबी हुआ और पिछले अनेक बरसों से भारत पूरे विश्व को उच्च गुणवत्ता की दवाओं की आपूर्ति किफायती दरों पर कर रहा है। इस दवा को भारत में बनाने और निर्यात करने वाली भारतीय कंपनियों के नाम हैं IPCA और Cadilla है। ये कंपनियां पिछले 60 साल से दुनिया के सौ से अधिक देशों को इस दवा का निर्यात कर रही हैं। ख़ास बात यह है कि अगर 1970 में इस दवा के निर्माण और निर्यात का यह पेटेंट कानून नहीं बना होता तो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विरोध के चलते आज भारत भी इसका एक निर्यातक देश न होकर अमेरिका की तरह किसी दूसरे देश या उसकी बहुराष्ट्रीय कंपनी के आगे गिडगिडा कर इसकी मांग कर रहा होता।

इस दवा के इतिहास के सन्दर्भ में एक महत्वपूण तथ्य यह भी है कि हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन नामक जिस दव की आज सर्वत्र चर्चा हो रही है उसका आविष्कार भारत के ही एक रसायन विज्ञानी प्रफुल्ल चन्द्र रॉय ने अपनी ही संस्था, “बंगाल केमिकल्स और फार्मास्यूटिकल” की रसायन प्रयोगशाला में किया था।

प्रफुल्ल चन्द्र रॉय अपने समय के महान विज्ञानी और वैज्ञानिक सोच के प्रतिभाशाली नायक थे। देश के प्रोफेसर सत्येन्द्र नाथ बोस,मेघनाथ साहा,ज्ञानेन्द्र नाथ मुख़र्जी और ज्ञान चन्द्र घोष जैसे महान वैज्ञानिक जिन्होंने बाद में पूरी दुनिया को अपने वैज्ञानिक शोध से चमत्कृत किया था, प्रफुल्ल चन्द्र रॉय के ही शिष्य थे। प्रफुल्ल चन्द्र रॉय अपनी वैज्ञानिक सोच के साथ ही भारत के आम नागरिक की संकुचित धार्मिक मनोदशा को भी अच्छी तरह से समझते थे। इसी सन्दर्भ में एक बार उन्होंने कहा भी था,“मैंने कक्षा में इतना कुछ पढ़ाया और बताया भी था कि जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है,तब चंद्रग्रहण होता है। मेरी बात को उन्होंने पढ़ा भी और समझा भी, पढ़ कर परीक्षा में अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण भी हुए लेकिन जब पृथ्वी पर चंद्रग्रहण की छाया पड़ी तो वही छात्र,“चन्द्रमा को राहु निगल गया कहते हुए ढोल,ताशे, घंटे,घड़ियाल और शंख बजाते हुए सड़क पर आ गए थे।”

इस बीच कोरोना वायरस के प्रसार और हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार ने कुछ स्पष्टीकरण भी जारी किया है। जहां एक तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह मानना है कि भारत में अभी इसका फैलाव समुदाय के स्तर पर नहीं हुआ है बल्कि पैबन्दों की शक्ल में समाज के कुछ हिस्सों तक ही इसका फैलाव हुआ है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही इस वैश्विक संस्था ने इसके भारत में फैलाव को लेकर इसके सामुदायिक संक्रमण की बात कही थी। लेकिन अब अपनी सोच में बदलाव किया है। उधर भारत सरकार ने एक बार फिर हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन स्टॉक को सार्वजनिक करने से मना किया है।  

(लेखक दैनिक भास्कर के संपादक हैं।)