कठिन काल के बड़े फैसले ! विकास के रास्ते चालू रहने ही चाहिए


यह पहली बार होगा कि राज्य में उद्योगों के लिए ‘प्लग एण्ड प्ले’ मॉडल को अपनाया जाएगा, जिसका लाभ रेडीमेड कपड़ों, हस्तशिल्प या औद्योगिक विकास प्राधिकरणों द्वारा मंजूर की गयी अन्य गैर-प्रदूषणकारी विनिर्माण इकाइयां उठा सकती हैं। एक फ्लैटेड फैक्टरी परिसर में न्यूनतम चार मंजिला भवन ब्लॉक में केवल एक प्रकार की मैन्यूफख्रिंग इकाइयों को अनुमति दी जाएगी।


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हेमंत तिवारी

लखनऊ। कोरोना संकट, नीचे गिरते राजस्व और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के बीच उत्तर प्रदेश की सरकार ने दनादन बड़े फैसलों से विकास की डगर नापनी शुरु कर दी है। लॉकडाउन खत्म होने के तुरंत बाद से प्रदेश की कई मेगा परियोजनाओं पर ताबड़तोड़ फैसलों और आर्थिक विकास की राह आसान करने के साथ ही कई जनकल्याणकारी कदमों ने यूपी को खड़ा करने की तरफ कदम बढ़ा दिया है। 

गंगा एक्सप्रेस वे, बहुमंजिला इमारतों में कारखाने, गन्ना किसानों का त्वरित भुगतान, किसान केंद्र, एक्सप्रेस वे के दोनों ओर औद्योगिक गलियारे का निर्माण और प्रवासी मजदूरों के लिए किराए पर सस्ते मकान जैसी तमाम बड़ी परियोजनाओं व फैसलों पर अमल इसी कोरोना काल में तेजी से हुआ है। शायद यही वजह है कि योगी आदित्यनाथ की मेहनत और फैसले की रफ्तार के सब कायल हैं।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर देश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा उत्तर प्रदेश सरकार की सार्वजनिक तारीफ करते हैं। 

उत्तर प्रदेश के आर्थिक विकास के लिए गेमचेंजर साबित होने जा रही प्रदेश ही नहीं देश में एक्सप्रेस वे की सबसे बड़ी परियोजना गंगा एक्सप्रेस वे पर काम अगले महीने से शुरु हो जाएगा। इस 600 किलोमीटर लंबे और 30000 करोड़ रुपये की लागत वाले एक्सप्रेस वे को वाराणसी के मल्टी मोडल टर्मिनल से भी जोड़ा जाएगा।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरु करने के निर्देश दिए हैं। उनका कहना है कि गंगा एक्सप्रेस-वे के निर्माण की कार्रवाही को तेजी से आगे बढ़ाया जाए। एक्सप्रेस-वे के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को शुरु करते हुए इसे भविष्य में वाराणसी में मल्टी मोडल टर्मिनल से जोड़ने की सभावनाओं का अध्ययन कर, आवश्यक कार्यवाही की जाए।

यह निर्देश भी दिए गए हैं कि गंगा एक्सप्रेस-वे के लिए ट्रांजेक्शन एडवाइज़र की नियुक्ति के सबन्ध में सभी विकल्पों पर विचार करते हुए एक सप्ताह में ठोस प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाए। एक्सप्रेस-वे निर्माण के लिए अनुभवी और कुशल प्रोफेशनल नियुक्त करके आसपास के क्षेत्रों को औद्योगिक विकास एवं व्यावसायिक उपयोग के रूप में पहले से ही चिन्हित करने की तैयारी है। 

गौरतलब है कि गंगा एक्सप्रेस-वे के लिए कैबिनेट की सैद्धान्तिक सहमति प्राप्त हो चुकी है। इसका डीपीआर भी तैयार कर लिया गया है। यह एक्सप्रेस-वे दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे से प्रारभ होकर प्रयागराज जिले में एनएच-19 के बाईपास पर सोरांव तक जाएगा। इसकी कुल अनुमानित लबाई 602.13 किमी होगी। शुरु में 6 लेन का एक्सप्रेस-वे बनाया जाएगा, जिसका 8 लेन में विस्तार किया जा सकेगा। एक्सप्रेस-वे के सभी स्ट्रख्र 8 लेन के बनाए जाएंगे।

एक्सप्रेस-वे के निर्माण पर लगभग 37,350 करोड़ रुपए का व्यय होने का अनुमान है। इसमें से भूमि अधिग्रहण की अनुमानित लागत 9,500 करोड़ रुपए है। एक्सप्रेस-वे का निर्माण 12 पैकेज में किया जाएगा। एक्सप्रेस-वे के निर्माण से दिल्ली-प्रयागराज की सड़क मार्ग से यात्रा लगभग 6 घण्टे में की जा सकेगी, जिसमें फिलहाल 11-12 घण्टे लगते हैं। 

एक्सप्रेस-वे के रास्ते में मेरठ, गाजियाबाद, बुलन्दशहर, हापुड़, अमरोहा, संभल, बदायूं, शाहजहांपुर, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़ एवं प्रयागराज जिले पड़ेंगे। उत्तर प्रदेश में कोरोना संकट और अर्थव्यवस्था की मंदी के बीच योगी सरकार ने गन्ना किसानों को भुगतान के लिए बीते हफ्ते ही 418 करोड़ रुपये जारी कर दिए। गन्ना किसानों को यह बकाया भुगतान आनलाइन उनके खातों में ट्रांसफर किया गया है।

गन्ना किसानों के बहुरे दिन 

विपरीत परिस्थितियों में कोरोना संकट के दौरान चीनी कि बिक्री न के बराबर रहने के बाद भी उत्तर प्रदेश में बीते तीन माह में किसानों को 5953 करोड़ रुपये भुगतान किया गया। योगी सरकार ने बीते तीन सालों 2017-2020 के दौरान गन्ना किसानों को एक लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया है। किसी भी सरकार ने इतना भुगतान अपने 5 साल के कार्यकाल में भी नहीं किया। इसके पूर्व के तीन सालों में तत्कालीन प्रदेश सरकारों ने समिलित गन्ना मूल्य भुगतान 53367 करोड़ रुपये किया था। इस तरह से उनकी सरकार ने पिछली सरकारों से 46633 करोड़ रुपये ज्यादा गन्ना बकाया मूल्य का भुगतान किया है।

गौरतलब है कि 2007 से 2012 तक प्रदेश में 19 चीनी मिलें बंद हुई थीं, जबकि 2012 से 2017 तक 10 मिले बंद हुईं। लेकिन तीन साल में भाजपा सरकार ने डेढ़ दर्जन से ज्यादा मिलों की क्षमता बढ़ाई गई और नई मिलों को चालू किया लॉकडाउन के दौरान भी 119 चीनी मिलें प्रदेश में चलती रहीं। हर मिल से 25 से 40 हजार किसान जुड़े हुए हैं। हर मिल 8 से 10 हजार लोगों को रोजगार देती है। लॉकडाउन के दौरान इन मिलों के चलते रहने से इनकी आजीविका में कहीं कोई दिक्कत नहीं आई। इसका नतीजा है कि समय उत्तर प्रदेश गन्ना उत्पादन और चीनी उत्पादन में देश में पहले स्थान पर है। 

किसानों के लिए इसी संकटकाल में एक और महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए योगी सरकार ने फैसला लिया कि उत्तर प्रदेश के हर ब्लाक में अब किसान केंद्र खुलेंगे। इन किसान केंद्रों पर कृषि निवेश, उन्नत खेती के प्रशिक्षण और डीबीटी की सुविधा मिलेगी। राष्ट्रीय कृषि योजना की स्टेट लेवल सैंक्शनिंग कमेटी (एसएलसीसी) की बैठक में इसकी मंजूरी दी गयी है। इसके तहत प्रदेश के 100 विकास खंडों (ब्लाक) में 100 किसान केंद्र खुलेंगे। इस परियोजना पर कुल 80.14 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। 

प्रदेश में जैविक खेती का दायरा बढ़ाने के लिए  एक कार्ययोजना तैयार की जा रही है। जिसमें प्रत्येक जिले में 200 एकड़ क्षेत्रफल चिन्हित किए जाएंगे। गंगा के किनारे भी जैविक नर्सरी लगाये जाने के लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।

कोरोना काल में ही योगी सरकार ने औद्योगिक विकास के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए जगह की कमी और बढ़ती मांग को देखते हुए अब उत्तर प्रदेश में खासकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के नोयडा, ग्रेटर नोयडा व गाजियाबाद में बहुमंजिला इमारतों में औद्योगिक ईकाईयां लगाना तय किया है।  इतना ही नहीं पहले से चल रहीं औद्योगिक ईकाईयों की सरप्लस जमीन वापस लेकर दूसरे उद्यमियों को दी जाएगी। 

यह पहली बार होगा कि राज्य में उद्योगों के लिए ‘प्लग एण्ड प्ले’ मॉडल को अपनाया जाएगा, जिसका लाभ रेडीमेड कपड़ों, हस्तशिल्प या औद्योगिक विकास प्राधिकरणों द्वारा मंजूर की गयी अन्य गैर-प्रदूषणकारी विनिर्माण इकाइयां उठा सकती हैं। एक फ्लैटेड फैक्टरी परिसर में न्यूनतम चार मंजिला भवन ब्लॉक में केवल एक प्रकार की मैन्यूफख्रिंग इकाइयों को अनुमति दी जाएगी। इकाई के बहुमंजिली फैक्टरी में परिवर्तन के प्रस्ताव को संबंधित विकास प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित किया जाएगा। नीति के तहत एक घोषित बीमार रुग्ण इकाई के किसी भी इच्छुक कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम स्थापित करने का प्राविधान भी है। बहुमंजिली फैक्टरी में परिवर्तन हेतु प्रस्तावित न्यूनतम भूखण्ड क्षेत्र 5 एकड़ से कम नहीं होगा।

कोरोना काल के ही एक अन्य फैसले के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार पूर्वांचल एक्सप्रेस वे से जुड़ रहे गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे के दोनो और औद्योगिक गलियारा बनाएगी। गोरखपुर एक्सप्रेस वे के दोनो ओर के औद्योगिक गलियारे में खाद्य प्रसंस्करण, कृषि उत्पादों व टेक्सटाइल के साथ की दवा की ईकाईयां खुलेंगी। प्रदेश सरकार एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत एक्सप्रेस वे दोनो ओर दो-दो किलोमीटर की जमीन को औद्योगिक क्षेत्र के लिए आरक्षित करेगी।

गोरखपुर को निर्माणाधीन पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे से जोड़ने के लिए 91.352 किमी लंबाई में गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना की कु लागत 5794.79 करोड़ रूपये है जिसे 36 महीने में पूरा कर लिया जाएगा। इस परियोजना से गोरखपुर, संतकबीर नगर तथा अबेडकर नगर जनपद लाभान्वित होंगे। गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे की नोडल एजेंसी यूपिडा है। चालू वित्त वर्ष के बजट में प्रदेश सरकार ने इस परियोजना के लिए 200 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। परियोजना के लिए 70 फीसदी से ज्यादा जमीन का अधिग्रहण किया जा चुका है।

प्रवासी कामगार !

उत्तर प्रदेश में प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने की सबसे बड़ी चुनौती पूर्वांचल और अवध में है । दशकों तक राजनीतिक नेतृत्व की दृष्टि से पीछे रहा यह इलाका उद्योग और रोजगार के लिहाज से भी दयनीय दशा में रहा है। यह भी संयोग है कि अब देश की सियासी अगुवाई यही क्षेत्र कर रहा है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाराणसी तो मूख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर का प्रतिनिधित्व करते हैं।

योगी सरकार ने प्रवासी  कामगारों को उनके अपने गृह जिले में ही रोजगार देने के लिए जिला स्तर पर स्किल मैपिंग कराई है। 21 जून तक 35.38 लाख से अधिक श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। इनमें गोंडा व बहराइच सहित 10 जिले ऐसे हैं जहां एक लाख से भी अधिक लोग आए हैं। जौनपुर, सिद्धार्थनगर व आजमगढ़ में तो यह आंकड़ा दो लाख पार कर गया है। 15 जिले ऐसे हैं जहां 1 लाख से कम लेकिन 50 हजार से अधिक प्रवासी हैं। रोजगार की जरूरत इन्हीं 25 जिलों में अधिक है।     

पूर्वांचल में प्रदेश के एक तिहाई से ज्यादा जिले आते हैं जबकि अर्थव्यवस्था में इसकी हिस्सेदारी  सिर्फ चौथाई है। प्रदेश के 75 में से 28 जिलों को मिलाकर पूर्वांचल के रूप में चिह्नित किया गया है जिसमे ज्यादातर अवध क्षेत्र के हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार पूर्वांचल में राज्य की जनसंख्या के 40.23 प्रतिशत लोग रहते हैं, लेकिन सकल जिला घरेलू उत्पाद के अनुमानों में राज्य की अर्थव्यवस्था में पूर्वांचल का योगदान 26.77 प्रतिशत  है। 

पश्चिमांचल में गाजियाबाद, नोएडा व ग्रेटर नोएडा रोजगार का बड़ा केंद्र हैं, लेकिन अवध व पूर्वांचल में ऐसे उद्योग-धंधे न के बराबर हैं। यहां कुछ जिलों में उद्योग के रूप में चीनी मिले हैं। जहां अधिकतम कार्य सीजनल है। अब चीनी मिलें बंद हैं। फिर अतिरिक्त वर्क फोर्स खपाने की गुंजाइश न के बराबर है। इसी तरह पर्यटन, लघु उद्योग व हस्तशिल्प स्थानीय रोजगार के बड़े साधन हैं, लेकिन महामारी से पर्यटन सेक्टर पर बुरा असर पड़ा है। ऐसे में इन क्षेत्रों की वर्क फोर्स को काम देना चुनौती है।  

प्रवासी मजदूरों के लाखों की तादाद में यूपी आने के बाद उनके रोजगार व पुन्रवास की समस्या से निपटने के लिए ठोस रणनीति भी बनायी गयी है। मंदी से निपटने के लिए अब उत्तर प्रदेश में रियल्टी कंपनियां पहले आओ पहले पाओ, लंबी किश्तों की अवधि के साथ किराया क्रय पद्धति के मकान तैयार करेंगी। इसकी शुरुआत सरकारी आवासीय संस्थाओं आवास विकास परिषद व विकास प्राधिकरणों से होगी।

उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में खाली पड़े मकानों को बेंचने के लिए लाटरी की जगह पहले आओ पहले पाओ के आधार पर बिक्री पहले से ही की जा रही है। अब खरीददारों को राहत देने के लिए उन्हें लंबी अवधि की किश्त की सुविधा देने पर भी विचार किया जा रहा है। कोरोना संकट के चलते बड़ी तादादा में बाहर से लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए किराया क्रय पद्धति के सस्ते मकान बनाने का आदेश प्रदेश सरकार पहले ही दे चुकी है।

प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अकेले आवास विकास परिषद के 10044 और लखनऊ विकास प्राधिकरण में लगभग 3200 फ्लैट्स के साथ ही प्रदेश के अन्य विकास प्राधिकरणों में करीब 25000 फ्लैट्स-मकान खाली हैं।

दूसरी तरफ प्रदेश सरकार की ओर से किराया क्रय पद्धति के मकान बनाने की भी कवायद शुरु कर दी गयी है। फिलहाल इसका जिमा स्थानीय निकायों को दिया गया है। निकाय सस्ते सरकारी किराए के मकान भी बनाएंगे। मुयमंत्री ने प्रवासी मजदूरों को सस्ते मकाने किराए पर उपलब्ध कराने के लिए सरकार व नजूल की जमीन को भी देने के लिए कहा है।