
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में एक स्थान है रालेगन सिद्धी। यह स्थान वैसे तो अहमदनगर जैसे ऐतिहासिक जिले का हिस्सा होने की वजह से चर्चा में रहता ही है लेकिन पिछले कुछ दशक से एक और वजह से भी यह स्थान चर्चा में रहने लगा है। इसी रालेगन सिद्धी में 15 जून 1937 को एक शख्स का जन्म हुआ जिसका नाम अन्ना हजारे है। कह सकते हैं कि इस स्थान को हिंदुस्तान के कोने-कोने तक पहुंचाने में अन्ना हजारे का भी बहुत बड़ा योगदान है।
आज से आठ साल पहले ही तो अन्ना हजारे ने केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर में कई दिन तक लोकपाल की मांग को लेकर धरना दिया था। इसी धरने ने बाद में आप जैसी एक क्षेत्रीय पार्टी को जन्म दिया था जो 2013 से ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार में काबिज है। अन्ना आन्दोलन में शामिल उस समय के कई नेता जो तब दर-दर की ठोकरें खाया करते थे आज या तो यूपीए के स्थान पर सत्ता में आई केंद्र की एनडीए सरकार में मंत्री या पूर्व मंत्री हैं या फिर केंद्र सरकार की कृपा से कई राज्यों के राज्यपाल सरीखे अनेक महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर विराजमान हैं।
अन्ना के आन्दोलन से दिल्ली में भी सरकार बदल गई। कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई और केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मजबूत राष्ट्रीय जनतांत्रिक सरकार का गठन हो गया। अन्ना आन्दोलन के बाद दिल्ली और केंद्र में चुनाव के बाद एक और बार आप और राजग सरकार की वापसी हो गई। सरकारें बदल गईं पूरा राजनीतिक दृश्य बदल गया लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों के उच्च सरकारी पदों से भ्रष्टाचार के समूल विनाश के लिए लोकपाल गठन की जिस मांग को लेकर अन्ना ने यह आन्दोलन किया था, वह मांग आज तक भी पूरी नहीं हुई है। वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन देश को ऐसा लोकपाल नहीं मिल सका जो भ्रष्टाचार के मामले में प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यों के मंत्रियों समेत सभी उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार के मामलों पर नजर रख सके।
2012 का अन्ना आन्दोलन तो कुछ महीने चलने बाद ख़त्म हो गया, अन्ना वापस अपने गाँव रालेगन सिद्धी चले गए, वहाँ के एक मंदिर के 12 फुट चौड़े और16 फुट एक छोटे से कमरे में अन्ना रहते हैं। इस पूरे घटनाक्रम के बाद देश में और कुछ हुआ हो या न हुआ हो अन्ना और उनका मराठी गाँव वैश्विक स्तर पर चर्चा में जरूर आ गया था। आज भी इस गाँव, समाज और यहाँ के नागरिक के रूप में अन्ना हजारे की चर्चा होती ही रहती है। हां ये बात अलग है कि लोकपाल की नियुक्ति का मामला कहीं अधर में भटक सा गया है।
अन्ना को भी अब उसकी जरूरत महसूस नहीं होते क्योंकि एक ख़ास विचारधारा की सरकार को गिराने के जिस मकसद से अन्ना ने जंतर-मंतर में तब 2012 में आन्दोलन किया था वो अब पूरा हो गया है। उनके चेले सेट हो गए हैं। दिल्ली से लेकर केंद्र और देश के अनेक राज्यों में उनके चेले मुख्यमंत्री, मंत्री और राज्यपाल सरीखे महत्वपूर्ण पदों पर तैनात हैं। अन्ना के कुछ अघोषित शिष्य हैं जो अपनी मौजूदा व्यवस्था से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं इसलिए समय-समय पर अन्ना को कोई न कोई सन्देश भेजते रहते हैं।
अन्ना के एक ऐसे ही अघोषित शिष्य हैं दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष आदेश गुप्ता। सुर्ख़ियों में बने रहने की गरज से इन्हीं आदेश गुप्ता ने अन्ना हजारे को पत्र लिख कर उनसे अनुरोध किया है कि वो एक बार फिर दिल्ली आकर दिल्ली की आप सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन करें। अन्ना हजारे को यह पत्र मिला है या नहीं यह तो किसी को नहीं मालूम लेकिन कथित रूप से अन्ना को भेजा गया यह पत्र मीडिया की सुर्ख़ियों में जरूर आ गया और मीडिया के हवाले से ही अन्ना ने आदेश गुप्ता को आदेश देने के लहजे में ही पत्र का जवाब देते हुए कहा है कि वो 83 साल के एक बुजुर्ग से जो रालेगन सिद्धी के एक मंदिर के छोटे से कमरे में रह कर अपना गुजर-बसर कर रहा है, इस उम्र में किसी भी तरह के आन्दोलन की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? इस लिहाज से कह सकते हैं कि दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष का पत्र उनको ही भारी पड़ गया।
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने विगत शुक्रवार 28 अगस्त 2020 को दिए अपने दो टूक जवाब में भाजपा नेता से ही यह पूछ लिया कि दिल्ली भाजपा को आप (AAP) सरकार के खिलाफ अपने आंदोलन में उन्हें (अन्ना को) शामिल होने के लिए कहना ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है। ऐसा दिल्ली भाजपा तब कर रही है, जब उसके पास खुद का बड़ा कैडर है और केंद्र में सत्ता है। अन्ना ने माना है कि यह पत्र पढ़ कर उनको अफ़सोस हुआ कि भाजपा को आप के खिलाफ आन्दोलन करने के लिए भी उनकी जरूरत पड़ रही है।
अन्ना के ही शब्दों में कहें तो कह सकते हैं। “आपकी भारतीय जनता पार्टी देश की सत्ता पिछले छह साल से अधिक समय से संभाल रही है। युवाशक्ति एक राष्ट्रशक्ति है। आपके पार्टी में बड़ी संख्या में युवक होते हुए और विश्व में सबसे ज्यादा पार्टी सदस्य होने का दावा करनेवाले पार्टी के नेता 83 साल के मंदिर में 10 बाय 12 फीट के कमरे में रहनेवाले अन्ना हजारे जैसे फकीर आदमी को जिसके पास धन नहीं, दौलत नहीं, सत्ता नहीं ऐसे आदमी को दिल्ली में आंदोलन करने के लिए बुला रहे है इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात और क्या हो सकती है।
गौरतलब है कि विगत 24 अगस्त को मीडिया के जरिये मिले इस पत्र के जवाब में अन्ना हजारे आदेश गुप्ता से इसके अलावा और कुछ कह भी नहीं सकते थे क्योंकि उनके घोषित एजेंडा में आप और भाजपा शासित सरकारों के खिलाफ आन्दोलन करने की बात कहीं है ही नहीं। अन्ना खुल कर यह बात नहीं कह सकते कि भ्रष्टाचार और लोकपाल का नाम लेकर केंद्र की पिछली सरकार के खिलाफ आन्दोलन करना उनके एक निश्चित एजेंडे का हिस्सा था। अगर आठ साल पहले वह आन्दोलन किसी एजेंडे के तहत न किया होता तो अन्ना इसी मुद्दे को लेकर केंद्र की मौजूदा सरकार के खिलाफ भी आन्दोलन जरूर करते पर ऐसा हुआ नहीं हुआ।
एक गरीब मराठा किसान परिवार में जन्मे अन्ना हजारे के पिता का नाम बाबूराव हजारे और माँ का नाम लक्ष्मीबाई हजारे था। पिता मजदूर थे तथा दादा सेना में थे। कहना गलत नहीं होगा कि अन्ना ने बचपन से ही गरीबी देखी थी और गरीबी पर भ्रष्टाचार के पड़ते कुप्रभाव से भी वो पूरी तरह परिचित हैं इसलिए 1990 के बाद से ही उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए उन्होंने 1993 से ही महाराष्ट्र की तत्कालीन शिवसेना -भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलन किया और इस सरकार के भ्रष्ट मंत्रियों को इस्तीफा देने पर भी मजबूर किया।
अपनी इसी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए केंद्र और राज्यों में लोकपाल और लोकायुक्त का पड़ सृजन करने की मांग को मजबूत बनाने के लिए आन्दोलन करने के साथ ही सूचना के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए भी अन्ना ने बहुत काम किया। पर दुखद स्थिति यह है कि 2005 में केंद्र की सरकार जो सूचना का अधिकार क़ानून लेकर आई थी, वो इस सरकार के आने के बाद धीरे-धीरे शिथिल होते-होते 2020 में वापस भी ले लिया गया उस पर अन अन्ना ने एक शब्द भी क्यों नहीं कहा, यह सच हैरान करने वाला है।
1991 में अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप जैसे कुछ भ्रष्ट मंत्रियों पर अन्ना ने आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाया था। सरकार ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अंतत: उन्हें दागी मंत्रियों को हटाना ही पड़ा, घोलाप ने अन्ना के खिलाफ़ मानहानि का मुकदमा दायर दिया। अन्ना अपने आरोप के समर्थन में न्यायालय में कोई साक्ष्य पेश नहीं कर पाए और उन्हें तीन महीने की जेल हो गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने उन्हें एक दिन की हिरासत के बाद छोड़ दिया। एक जाँच आयोग ने शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को निर्दोष बताया। लेकिन अन्ना हजारे ने कई शिवसेना और भाजपा नेताओं पर भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए।
1997 में अन्ना हजारे ने सूचना का अधिकार अधिनियम के समर्थन में मुंबई के आजाद मैदान से अपना अभियान शुरु किया। 9 अगस्त 2003 को मुंबई के आजाद मैदान में ही अन्ना हजारे आमरण अनशन पर बैठ गए। 12 दिन तक चले आमरण अनशन के दौरान अन्ना हजारे और सूचना का अधिकार आंदोलन को देशव्यापी समर्थन मिला। आख़िरकार 2003 में ही महाराष्ट्र सरकार को इस अधिनियम के एक मज़बूत और कड़े विधेयक को पारित करना पड़ा। बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया। इसके परिणामस्वरूप 12 अक्टूबर 2005 को भारतीय संसद ने भी सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया। अगस्त 2006, में सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ अन्ना ने 11 दिन तक आमरण अनशन किया, जिसे देशभर में समर्थन मिला। इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने संशोधन का इरादा बदल दिया।
2003 में अन्ना ने कांग्रेस और एनसीपी सरकार के चार मंत्रियों; सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल को भ्रष्ट बताकर उनके ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गए। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जाँच आयोग का गठन किया। नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। आयोग ने जब सुरेश जैन के ख़िलाफ़ आरोप तय किए तो उन्हें भी त्यागपत्र देना पड़ा। महाराष्ट्र के बाद अन्ना हजारे ने अपनी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का रुख केंद्र सरकार की तरफ किया और लोकपाल के गठन की मांग को लेकर 5 अप्रैल 2011 से दिल्ली के जंतर मंतर में एतिहासिक आन्दोलन शुरू किया था।
अन्ना हजारे एवं उनके साथियों के अनशन के साथ शुरू हुए इस आन्दोलन का प्रभाव समूचे भारत में फैल गया और इसके समर्थन में लोग सड़कों पर भी उतरने लगे। इन्होंने भारत सरकार से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माँग की थी और अपनी माँग के अनुरूप सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी दिया था। किंतु मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने इसके प्रति नकारात्मक रवैया दिखाया और इसकी उपेक्षा की। इसके परिणामस्वरूप शुरु हुए अनशन के प्रति भी उनका रवैया उपेक्षा पूर्ण ही रहा।आश्चर्य है कि लोकपाल को लेकर आज भी कमोबेस वैसी ही स्थिति बनी हुई है लेकिन अन्ना हजारे चुप्पी साधे हुए हैं।