BUDGET-2021-22 : किसानों को बदनाम करनेवाला बजट

मुगल रहे हों या अंग्रेज, भारत में उनके अलोकप्रिय होने का एक प्रमुख कारण किसानों के साथ किया जानेवाला छल कपट ही था। मोदी जिस तरह से किसानों और मजदूरों से लगातार छल कपट कर रहे हैं क्या वो अपनी लोकप्रियता बचाकर रख पायेंगे? 

1991 के उदारीकरण के बाद से ही अब भारत में प्रस्तुत होने वाले बजट का उद्देश्य क्या होता है इसे समझने के लिए बहुत बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरूरत नहीं है। 1991 के उदारीकरण ने भारत के दरवाजे देसी और विदेशी कंपनियों के लिए पूरी तरह से खोल दिए थे।

बीते 30 सालों में साल दर साल प्रस्तुत होने वाले बजट हमें सिर्फ यह बताते हैं कि हमने कॉरपोरेट घरानों के लिए और कौन सी सुविधा और कौन सी सहूलियत प्रदान कर दी है।

भारत में जिसे आम आदमी कहा जाता है वह केंद्र सरकार के बजटीय प्रावधानों में सिर्फ छुटपुट सब्सिडी  का हकदार हो कर रह गया है। जो सरकार आम आदमी के लिए एक सुरक्षा प्रहरी की तरह केंद्र में बैठी होनी चाहिए वह कंपनियों, कारपोरेट घरानों और विश्व की व्यवसायिक शक्तियों का एजेंट बनकर रह गयी है।

इसलिए भारत में जो बजट प्रस्तुत किए जाते हैं उनके मुख्य रूप से दो उद्देश्य होते हैं, पहला सरकारी खर्चे का हिसाब किताब और दूसरा निजी घरानों और कंपनियों को दी जाने वाली सहूलियत का ब्यौरा।

साल 2021 का यह बजट भी यही दो मानक पूरे करता है। मोदी की दृष्टि बिल्कुल स्पष्ट है वह व्यापार के सबसे बड़े हिमायती हैं। उन्हें लगता है कि पूरे भारत को संपूर्ण रूप से बाजार में परिवर्तित कर देने से भारत मोक्ष को प्राप्त हो जाएगा। उनकी दृष्टि में भारत की मोक्ष प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा भारत के वह विकेंद्रित किसान और छोटे उत्पादक है जो व्यापार का बंटवारा करते हैं।

अगर सब कुछ केंद्रित हो जाए और देश के कुछ पूंजीपतियों के हाथ में सारा व्यापार सौंप दिया जाए तो ना केवल टैक्स का दायरा बढ़ेगा बल्कि उसी टैक्स से आम आदमी के लिए कल्याणकारी योजनाएं भी चलाई जा सकेंगी। मोदी का ऐसा सोचना अन्यथा नहीं है।

विश्व भर की पूंजीवादी शक्तियां इसी तरह से सोचती हैं। उन्हें लगता है कि अगर सरकार का काम टैक्स वसूल कर कल्याणकारी योजनाएं चलाना ही है तो क्यों ना सारे व्यापार को कुछ चुनिंदा पूंजीपतियों के हवाले सौंप दिया जाए और उन्हीं से टैक्स लेकर कल्याणकारी योजनाओं को चलाया जाए।

वैसे तो भारत बीते 30 सालों से इसी दिशा में आगे बढ रहा है लेकिन कथित आर्थिक सुधार की इस गति को मोदी ने जो गति दिया है वह गति कांग्रेस की सरकार कभी नहीं दे पायी।

बीते 6 सालों में मोदी भारत को इसी दिशा में लेकर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। वह एक ऐसे राष्ट्र को मजबूत कर रहे हैं जिसका जन निर्धन होगा। 2021 के बजट में उन्होंने उसी निर्धन जन के मजबूत राष्ट्र की ओर एक कदम और बढ़ाया है।

बजट के बाद नियमित प्रेस ब्रीफिंग में निर्मला सीतारमण ने कहा कि उनकी सरकार किसानों के लिए पूरी तरह से समर्पित है और इसीलिए उन्होंने डीजल और पेट्रोल पर किसान सेस की घोषणा की है।

मोदी का यह किसान सेस कितना किसानों के लिए कल्याणकारी है इसे सिर्फ एक बात से समझ लीजिए कि पेट्रोल पर ढाई रुपया और डीजल पर रुपया4 सेस बढ़ाया गया है। हो सकता है आपको विश्वास ना हो कि डीजल पर रुपया4 किसान सेस लगाकर मोदी कौन सा किसान हित करना चाहते हैं लेकिन उनका तरीका यही है।

खेती और किसानी में आज लगभग संपूर्ण यंत्रीकरण हो चुका है ऐसे में डीजल का सर्वाधिक उपयोग किसान, माल ढुलाई तथा जन परिवहन में ही होता है फिर भला मोदी ने कौन सी दूरदृष्टि दिखाकर पेट्रोल से ज्यादा सेस डीजल पर लगाया है? किसान को फायदा पहुंचाने के लिए किसान से ही अतिरिक्त कर वसूली का क्या औचित्य है?

निर्मला सीतारमण कहती हैं कि यह जो अतिरिक्त सेस लगाया गया है इससे डीजल पेट्रोल की कीमतों पर तत्काल कोई असर नहीं पड़ेगा। उनका कहना बिल्कुल सही है। असल में केंद्र सरकार इस समय डीजल और पेट्रोल पर क्रमशः रुपया 32 और रुपया 33 कर वसूल रही है। यह कर घटाने का प्रस्ताव पेट्रोलियम मंत्रालय पहले ही कर चुका है।

पेट्रोलियम मंत्रालय ने अपनी सिफारिश में पीएमओ से कहा था कि अगर सरकार चाहे तो हम प्रति लीटर रुपया 5 कर में कटौती कर सकते हैं। यह कटौती न करनी पड़े इसलिए मोदी ने उसे अतिरिक्त किसान शेष का नाम दे दिया और डीजल पेट्रोल पर जारी एक्साइज ड्यूटी को जस का तस बरकरार रखा।

अब भारत में शहरी मध्यवर्ग को या तथाकथित आर्थिक विशेषज्ञों को यही लगेगा कि इस देश के किसान मुफ्तखोरी कर रहे हैं और जिसका खामियाजा शहरी मध्यवर्ग को उठाना पड़ रहा है लेकिन वो कभी नहीं समझ पाएंगे कि मोदी ने एक ट्रिक के जरिए किसान को बिना कोई फायदा पहुंचा है उसे बदनाम कर दिया।

यह किसान मजदूर और कारीगर के प्रति मोदी की अपनी कल्याण दृष्टि है जो पिछले 6 वर्षों से इसी तरह क्रमशः लागू की जा रही है। इसे ना तो आज तक किसान समझ पाएगा है और ना ही मजदूर समझ पाया है।

किसान, मजदूर और कारीगर किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं। उनके साथ छल करके कुछ तात्कालिक लाभ तो लिये जा सकते हैं लेकिन लंबे समय में आखिरकार यही छल कपट विद्रोह का कारण बनते हैं।

मुगल रहे हों या अंग्रेज, भारत में उनके अलोकप्रिय होने का एक प्रमुख कारण किसानों के साथ किया जानेवाला छल कपट ही था। मोदी जिस तरह से किसानों और मजदूरों से लगातार छल कपट कर रहे हैं क्या वो अपनी लोकप्रियता बचाकर रख पायेंगे?

First Published on: February 1, 2021 5:31 PM
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